भारत में बड़ों के पैर छूना एक परंपरा है जो श्रद्धा, संस्कार और सम्मान का प्रतीक मानी जाती है। कई बार लोगों के मन में यह सवाल उठता है कि पैर छूने के बाद हाथ धोना चाहिए या नहीं? क्या ऐसा करने से पुण्य का नाश हो जाता है? इस पर हाल ही में वृंदावन-मथुरा के प्रसिद्ध संत प्रेमानंद महाराज ने एक सत्संग के दौरान बहुत सरल और गूढ़ उत्तर दिया, जो काफी प्रेरणादायक है।
महिला का सवाल जो बना चर्चा का विषय
एक महिला ने प्रेमानंद महाराज से पूछा, ‘मैं गृहस्थ जीवन में हूं और रोज बड़ों के पैर छूती हूं। लेकिन मैं पैर छूने के बाद हाथ धो लेती हूं। क्या इससे पुण्य नष्ट हो जाते हैं?’
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प्रेमानंद महाराज का व्यावहारिक उत्तर
महाराज जी ने कहा कि, ‘पैर छूना हमारी मर्यादा और संस्कृति है, और जब भी पैर छूएं, भगवत भाव से छूएं। लेकिन हाथ धोना भी उतना ही जरूरी है।’ उन्होंने बताया कि अगर आप ठाकुर जी की सेवा करने जा रहे हैं, भोग लगाना है या कोई और पूजा-पाठ करना है, तो पैर छूने के बाद हाथ धोना शुद्धता का प्रतीक है, न कि पुण्य नष्ट करने वाला कर्म।
पुण्य का हाथ धोने से कोई संबंध नहीं
प्रेमानंद जी ने कहा कि, ‘हाथ धोने से न तो पुण्य खत्म होता है और न ही पाप लगता है। यह एक धार्मिक और शुद्ध आचरण है, जिससे हमारी सेवा की पवित्रता बनी रहती है।’ उन्होंने यह भी जोड़ा कि, ‘अगर हम उन्हीं हाथों से ठाकुर जी को भोग लगाएंगे, तो वह भोग स्वीकार नहीं करेंगे। इसलिए शुद्धता बनाए रखना जरूरी है।’
क्यों जरूरी है हाथ धोना?
शुद्धता बनाए रखने के लिए: धार्मिक कार्यों में बाह्य और आंतरिक दोनों शुद्धता आवश्यक मानी जाती है।
ठाकुर सेवा की मर्यादा के लिए: जिस हाथ से पैर छुए हों, उनसे भगवान को स्पर्श करना उचित नहीं माना जाता।
आस्था और मर्यादा दोनों का संतुलन: यह प्रक्रिया परंपरा और व्यावहारिकता दोनों को संतुलित करती है।
पैर छूने का भाव ही सबसे बड़ा पुण्य
प्रेमानंद महाराज के अनुसार, पैर छूने का मुख्य उद्देश्य बड़ों से आशीर्वाद लेना और अपने अहंकार को मिटाना है। यह भावना ही असली पुण्य का कारण है। हाथ धोने का कार्य एक सावधानी और शुद्धता का संकेत है, न कि पुण्य का नाश।
शुद्धता और श्रद्धा दोनों रखें बरकरार
उन्होंने यह भी कहा कि बड़ों के चरण स्पर्श करना हमारी संस्कृति की अमूल्य धरोहर है। लेकिन इसके बाद हाथ धोना भी एक प्रकार से धार्मिक शुचिता का पालन है। प्रेमानंद महाराज का उत्तर हमें यह सिखाता है कि सिर्फ परंपरा का पालन ही नहीं, बल्कि उसके पीछे की भावना और व्यवहारिकता को भी समझना चाहिए।
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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी ज्योतिष शास्त्र की मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।