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कितना सोना है जगन्नाथ मंदिर में, चौंधिया जाएंगी लोगों की आंखें, जब खुलेगा पुरी के खजाने का पट!

Puri Ratna Bhandar: पुरी के जगन्नाथ मंदिर में कितना सोना, चांदी, जवाहरात और बेशकीमती सामान है, इसे लेकर लोगों में हमेशा उत्सुकता बनी रही है। लेकिन यह तीन दिनों बाद यानी 14 जुलाई को समाप्त हो जाएगी। मंदिर कमिटी और सरकार दोनों मंदिर के रत्न भंडार के सभी आभूषण, उपहार आदि को सूचीबद्ध करने पर सहमत हो गए हैं।

Edited By : Shyam Nandan | Updated: Jul 12, 2024 12:21
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पुरी का रत्न भंडार

Puri Ratna Bhandar: अभी महाप्रभु भगवान जगन्नाथ अपने रहने के मुख्य मंदिर से दूर मौसी के घर गुंडिचा मंदिर में मौसी के व्यंजनों और सेवाओं का लाभ उठा रहे हैं। यहां वे 15 जुलाई तक रहेंगे, 16 जुलाई को फिर जगन्नाथ मंदिर लौटेंगे और 17 जुलाई को विधिवत मंदिर में प्रवेश करेंगे। जब भगवान जगन्नाथ मुख्य मंदिर से दूर रहेंगे तब उनकी अनुपस्थिति में मंदिर के रत्न भंडार को खोला जाएगा, जिसे लेकर लोगों में बहुत उत्सुकता है।

बता दें, सरकार ने मंदिर के खजाने (रत्न भंडार) को खोलने का निर्णय पिछले वर्ष ही लिया था कि जब भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा मंदिर से दूर रहेंगे, तब खजाने को 14 जुलाई को खोला जाएगा। इसे लेकर मंदिर प्रबंधन कमिटी की मंजूरी मिल चुकी है। भगवान जगन्नाथ पुरी मंदिर खजाने को पिछले कई सालों चर्चा में रहा है। कोई नहीं जानता कि यहां कितना सोना है, क्योंकि यहां सदियों से हीरे, सोना, चांदी, जवाहरात और अन्य कीमती वस्तुएं चढ़ाई जा रही हैं। इन सबकी कीमत कितनी होगी यह भी किसी नहीं पता है?

क्यों नहीं खोला जाता है पुरी का रत्न भंडार?

पुरी के रत्न भंडार को लेकर धार्मिक मान्यताएं हैं कि रत्न भंडार भगवान जगन्नाथ का निजी खजाना है, इसे खोलने से देवता नाराज हो सकते हैं। इसे लेकर लोगों में अभिशाप का भी डर है, लोगों का मानना ​​है कि रत्न भंडार पर श्राप है और इसे खोलने से बुरी घटनाएं हो सकती हैं। वहीं, एक डर यह है जताया जाता रहा है कि मंदिर रत्न भंडार में इतने अमूल्य रत्न और आभूषण हैं कि लोगों की आंखें चौंधिया जाएंगी, कुछ लोगों के दिल में लालच पैदा हो सकता है। वहीं, कुछ लोगों को डर है कि इसे खोलने से चोरी या क्षति हो सकती है।

रत्न भंडार क्या है?

जगन्नाथ मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में हुआ था। तभी से एक विशेष कक्ष, जिसे रत्न भंडार कहते हैं, में भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र तथा देवी सुभद्रा के बहुमूल्य आभूषण और उपहार जमा हैं। इस रत्न भंडार कक्ष के भी दो हैं, भीतरी भंडार और बाह्य भंडार। बाहरी कक्ष को प्रमुख अनुष्ठानों एवं त्योहारों के दौरान देवताओं के आभूषण लाने हेतु नियमित रूप से खोला जाता है, जबकि आंतरिक कक्ष को विगत 45 वर्षों में नहीं खोला गया है। बताया जा रहा था कि चाबियां गुम हो गई थी। आखिरी बार यहां 1978 में उपहारों और सामग्रियों की लिस्ट बनाई गई थी।

कितना सोना है जगन्नाथ मंदिर में?

सन 1978 में तैयार की गई लिस्ट के अनुसार जब रत्न भंडार पिछली बार खोला गया था, तो इसमें 12,838 ‘भरी’ सोना और 22,153 ‘भरी’ चांदी थी। जबकि रत्न भंडार में और भी बेशकीमती सामान, जैसे महंगे पत्थर, चांदी के बर्तन आदि हैं, जिसकी कीमत किसी को पता नहीं है। बता दें, एक ‘भरी’ 11.66 ग्राम के बराबर होता है, भरी को तोला भी कहते हैं। लेकिन बाद में इसमें कितनी बढ़ोतरी हुई है, कोई नहीं जानता है। 1978 में जब लिस्ट बनाई गई थी तब जगन्नाथ मंदिर बैंक में 600 करोड़ रुपये का डिपॉजिट था, वहीं भगवान जगन्नाथ के नाम पर ओडिशा में 60,426 एकड़ जमीन और दूसरे 6 राज्यों में 395.2 एकड़ जमीन दर्ज थी।

ये है मंदिर के खजाने का इतिहास

महाप्रभु भगवान जगन्नाथ की भक्ति ने कई राजवंशों चाहे वह केशरी, गंग या भोई राजवंश के राजा हों और यहां तक ​​कि नेपाल के शासक, सभी ने भगवान जगन्नाथ को सोना, चांदी, हीरे, अन्य कीमती रत्न और शालग्राम जैसी बहुमूल्य वस्तुएं दान कीं।

मंदिर के इतिहास, मदाला पंजी में भी दान के बारे में बताया गया है। मंदिर के जया-विजय द्वार पर एक शिलालेख में उल्लेख है कि गजपति राजा कपिलेंद्र देव ने दक्षिणी राज्यों पर विजय प्राप्त करने के बाद 16 हाथियों की पीठ पर अपने साथ लाए गए सभी धन और रत्नों को मंदिर को दान कर दिया था।

तीनों देवताओं की सुना बेशा या स्वर्ण पोशाक कपिलेंद्र देव के शासनकाल के दौरान शुरू हुई थी। साथ ही यहां एक कुआं है, जिसमें सोने की सीढ़ियां लगी हैं। इसे केरल के राजा ने दान में दिया था।

ब्रिटिश शासन ने तैयार करवायी थी पहली रिपोर्ट

ओडिशा में ब्रिटिश शासन के दौरान रत्न भंडार का पहला आधिकारिक विवरण ‘जगन्नाथ मंदिर पर रिपोर्ट’ में दर्ज किया गया था, जिसे पुरी के तत्कालीन कलेक्टर चार्ल्स ग्रोम ने तैयार किया था। रिपोर्ट में सोने और चांदी के 64 आभूषणों की गिनती की गई थी, सोने के सिक्के 128, अलग-अलग तरह के सोने के 24 मोहर, चांदी के 1,297 सिक्के, तांबे के 106 सिक्के और 1,333 तरह के कपड़े थे। इसके बाद 1926 में पुरी के राजा द्वारा स्वीकार किए गए आभूषणों की एक सूची पुरी कलेक्टरेट के रिकॉर्ड रूम में रखी गई थी।

1952 में जब मंदिर के प्रशासन को अपने हाथ में लेने के लिए श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन अधिनियम और श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन नियम बनाए गए थे तब रत्न भंडार के बाहरी कक्ष में 150 सोने के आभूषण और 180 तरह के आभूषण (जिनमें से कुछ का वजन 100 तोला से अधिक था और प्रत्येक तोला 11.6638 ग्राम के बराबर था) और वही भीतरी भंडार में 146 चांदी की वस्तुओं का उल्लेख है।

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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक शास्त्र की मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।

First published on: Jul 11, 2024 08:16 PM

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