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Mahabharat Katha: द्रौपदी के लिए क्यों नहीं हुई पांचों पांडवों में लड़ाई? द्रौपदी कैसे निभाती थी अपना पति धर्म?

Mahabharat Katha: पांचों पांडवों में बहुत प्रेम था लेकिन जब द्रौपदी से उनकी शादी हुई तो नारद मुनि चिंतित हो उठे और एक दिन इंद्रप्रस्थ की राजसभा में आ पहुंचे। राजसभा में उन्होंने पांडवों से द्रौपदी को लेकर एक नियम बताया। नारद जी ने कहा इस नियम के पालन करने से तुम पांचों भाइयों में एक स्त्री यानि द्रौपदी को लेकर कभी भी मनमुटाव नहीं होगा। इतिहास गवाह रहा है कि स्त्री के कारण मजबूत से मजबूत रिश्ता ख़त्म हो जाता है। आइये जानते हैं, देवर्षि नारद ने ऐसा कौन सा नियम पांडवों को बताया जिसकी वजह से वे आपस में नहीं लड़े?

Edited By : Nishit Mishra | Updated: Sep 21, 2024 20:58
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Mahabharat Katha: महाभारत के अनुसार द्रौपदी ने स्वयंवर में अर्जुन का वरण किया था, लेकिन माता कुंती के वचन के कारण उसे पांचों पांडवों से विवाह करना पड़ा। जब द्रौपदी और पांचों पड़ावों का विवाह हुआ तो वे वन में भटक रहे थे। इधर हस्तिनापुर में जब पितामह भीष्म को पता चला कि पांचों पांडव पुत्र और कुंती जीवित हैं तो उन्होंने राजा धृतराष्ट्र से उन्हें  वापस हस्तिनापुर लाने को कहा। उसके बाद कुंती सहित पांचों पांडव हस्तिनापुर लौट आए। फिर भीष्म के कहने पर हस्तिनापुर का विभाजन कर दिया गया।

खांडवप्रस्थ का निर्माण

विभाजन के बाद पांडवों को नया राज्य खांडवप्रस्थ मिला। खांडवप्रस्थ के निर्माण के बाद एक दिन जब  पांचों भाई राजसभा में बैठे थे तो वहां नारद मुनि आए। देवर्षि को देखकर युधिष्ठिर ने उन्हें अपना राज सिंहासन बैठने को दिया, परन्तु नारद ने बैठने से मना कर दिया। फिर नारद जी युधिष्ठिर से बोले हे राजन ! मैं यहां एक प्रयोजन से आया हूं। मैं चाहता हूं कि आप पांचों भाई द्रौपदी को लेकर एक नियम बना लें ताकि भविष्य में कभी भी आपस में लड़ाई न हो।

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देवर्षि की बातें सुनकर युधिष्ठिर बोले हे देवर्षि ! आप ऐसा क्यों कह रहे हैं? द्रौपदी को लेकर हम पांचों  भाई क्यों लड़ेंगे? वे हम सभी के साथ समान व्यवहार करती है। तब नारद जी ने कहा हे धर्मराज ! इतिहास गवाह है कि स्त्री के कारण भाई-भाई लड़कर मर-कट गए।  मैं इससे जुड़ी एक कथा आपको सुनाता हूं।

सुन्द-उपसुन्द की कथा 

बहुत समय पहले कि बात है सुन्द-उपसुन्द नाम के दो असुर भाई हुआ करते थे। दोनों में बड़ा ही प्रेम था। लोग कहते थे की इन दोनों भाइयों के कहने को शरीर दो हैं, लेकिन प्राण एक ही शरीर में बसता है। दोनों भाई जब बड़े हुए तो उसने ब्रह्माजी जी की घोर तपस्या आरम्भ कर दी। कई सालों की तपस्या के बाद ब्रह्मा जी प्रसन्न होकर दोनों भाइयों के सामने प्रकट हुए। ब्रह्माजी ने उनसे वर मांगने को कहा। तब सुन्द-उपसुन्द  दोनों भाइयों ने वर मांगते हुए कहा हे ब्रह्मदेव हमें यह वरदान दीजिए कि केवल हम दोनों भाई ही एक दूसरे को मार सकते हैं। ब्रह्माजी ने दोनों को यह वरदान दे दिया और वहां से अंतर्ध्यान हो गए वरदान मिलने के बाद दोनों भाई ऋषि-मुनियों और मनुष्यों पर अत्याचार करने लगे। सुन्द-उपसुन्द  के अत्याचार से धरतीलोक पर हाहाकार मच गया। फिर ऋषि मुनियों  ने ब्रह्मदेव से कहा इन दोनों भाइयों का कुछ उपाय कीजिए नहीं तो सृष्टि का विनाश निश्चित है। तब ब्रह्माजी ने तिलोत्तमा नाम की अप्सरा को दोनों भाइयों के पास भेजा।

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दोनों भाइयों का अंत  

तिलोत्तमा की सुंदरता देख दोनों भाई उस पर मोहित हो गए और मन ही मन उसे पत्नी मान लिया। फिर एक दिन सुन्द, उपसुन्द से बोला ये सुंदरी तुम्हारी मां समान हैं क्योंकि मैंने इसे अपना पत्नी मान लिया है। भाई की बातें सुनकर उपसुन्द बोला नहीं ऐसा नहीं हो सकता, मैंने इस सुंदरी से विवाह करने का निर्णय कर लिया है और मैं अपना निर्णय नहीं बदल सकता। उपसुन्द की बातें सुनकर सुन्द क्रोधित हो उठा। फिर दोनों भाई आपस में लड़ने लगे और अंत में दोनों ने एक दूसरे का वध कर दिया। कथा के बाद नारद जी ने पांचों भाइयों से कहा द्रौपदी के लिए एक नियम बना लो  उसके बाद पांचों पांडवों ने नियम बनाया कि एक समय में कोई एक भाई ही द्रौपदी के साथ रहेगा। यही कारण है कि द्रौपदी के लिए पांचों भाइयों में कभी भी लड़ाई नहीं हुई।

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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक शास्त्र की मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।

 

 

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Edited By

Nishit Mishra

First published on: Sep 21, 2024 08:58 PM

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