Mahabharata Story: महाभारत केवल कौरवों की हार और पांडवों की विजय की गाथा नहीं है, बल्कि कई प्रतिशोध और अभिशाप की कथा भी है। लेकिन महाभारत का एक सबसे अच्छा पहलू यह है कि इसकी हर कथा कुछ न कुछ संदेश देती है। शाप और प्रतिशोध की इन कहानियों में सबके लिए जीवन सीख भी है। महाभारत के युद्ध में द्रौपदी के प्रतिशोध के बारे में तो सभी जानते हैं, उसके प्रण ने पूरा महाभारत युद्ध करवा दिया था, जिसमें कौरवों का नाश हो गया। लेकिन उनके अलावा कुछ और भी महिलाएं थी जिन्होंने अपना बदला पूरा किया था। आइए जानते है, महाभारत की इन महिलाओं के प्रतिशोध की कहानी।
द्रौपदी का चीरहरण
महाभारत युद्ध होने के चाहे अनेक कारण थे, लेकिन इसका अधिक स्पष्ट कारण था द्रौपदी का चीरहरण और उसका अपमान। यह ऐसी घटना थी जो महाभारत का निर्णायक मोड़ है। द्रौपदी का चीरहरण एक ऐसा अपमान था जिसे पांडवों ने सहन नहीं किया। इस घटना ने युद्ध की आग में घी डालने का काम किया। द्रौपदी के चीरहरण के समय भीम ने प्रण किया था कि वह दुर्योधन की जंघाएं तोड़कर इस अपमान का प्रतिशोध लेंगे। द्रौपदी ने भी कसम खाई थी कि जब तक वह दुशासन के रक्त से अपने बाल नहीं धोएगी, तब तक अपना जूड़ा नहीं बांधेगी। कहते हैं, द्रौपदी ने 13 साल तक अपने बाल नहीं बांधे थे।
जब कृष्ण को मिला शाप!
यदि महाभारत के युद्ध में सबसे चर्चित प्रतिशोध द्रौपदी का है, तो गांधारी के शाप को कम आंकना एक भूल होगी, जो महाभारत युद्ध में उसके 100 पुत्रों के मारे जाने का दुःख था। उन्होंने कृष्ण को शाप दिया था कि उनका यादव वंश वैसे ही आपस में लड़कर नष्ट हो जाएगा, जैसे कौरव मारे गए। यह श्राप गांधारी के कृष्ण पर गुस्सा का परिणाम था। कहते हैं, गांधारी के शाप से कृष्ण ने अपने सामने अपने खानदान के सभी लोगों को मरते देखा था।
भानुमति का शाप
भानुमति दुर्योधन की पत्नी थी जो अपने समय की महासुंदरी थी। वह कांबोज के राजा चंद्रवर्मा की पुत्री थी। राजा ने उसके विवाह के लिए स्वयंवर रखा था। लेकिन कर्ण की सहायता से दुर्योधन ने स्वयंवर से उसका हरण कर उससे विवाह किया था। इससे वह कभी खुश नहीं रही। उसने दुर्योधन को शाप दिया था कि वह केवल जीवित में ही नहीं मरने के बाद भी अपयश भागी होगा। यही कारण है कि आज भी दुर्योधन की निंदा की जाती है।
अंबा का प्रतिशोध
महाभारत की कथा में अंबा का प्रतिशोध कभी न भूलने वाली घटना है। अंबा, अंबिका और अंबालिका काशी के राजा की कन्याएं थीं, जिनके स्वयंवर में जाकर भीष्म ने तीनों बहनों का हरण इसलिए किया था कि उनका विवाह वे अपने सौतेले भाई विचित्रवीर्य से करवा सकें। अंबिका और अंबालिका ने विचित्रवीर्य को पति मान लिया लेकिन अंबा ने भीष्म से विवाह करना चाहा। इस पर भीष्म ने कहा कि वे आजीवन ब्रह्मचारी रहने के वचन से बंधे है, इसलिए विवाह नहीं कर सकते। क्रोधित, क्षुब्ध और दुखी अंबा ने भीष्म से प्रतिशोध लेने के लिए भगवान शिव की तपस्या से मारने का वरदान पाया और अगले जन्म में ‘शिखंडी’ बने और भीष्म की मृत्यु का कारण बने।
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