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पत्नी के अलावा एक पराई स्त्री संग संबंध बनाना पाप नहीं! यमराज की इस कथा में है उल्लेख

Devrishi Narad Yamraj Katha: क्या अपनी पत्नी के अलावा किसी पराई स्त्री के साथ संबंध बनाने से पाप नहीं लगता है? चलिए जानते हैं इसी सवाल का जवाब एक कथा के माध्यम से।

Edited By : Nidhi Jain | Updated: Jul 4, 2024 17:41
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Devrishi Narad Yamraj Katha

Devrishi Narad Yamraj Katha: हिंदू धर्म में पति-पत्नी के रिश्ते को एक पवित्र बंधन माना जाता है, जिसकी अपनी मर्यादा होती है। पति-पत्नी में से अगर कोई एक व्यक्ति भी इस मर्यादा को पार करता है, तो उसे पाप लगता है। इसके अलावा स्वर्ग लोक में मौजूद उसके पूर्वज भी उससे नाराज हो जाते हैं। शास्त्रों में बताया गया है कि शादीशुदा व्यक्ति को केवल अपनी पत्नी के साथ शारीरिक संबंध बनाने चाहिए। अगर व्यक्ति किसी पराई स्त्री के साथ संबंध बनाता है, तो उसे पाप लगता है। लेकिन आज हम आपको शास्त्रों में बताई गई एक कथा के माध्यम से उस एक परिस्थिति के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसके अनुसार व्यक्ति अपनी पत्नी के अलावा भी केवल एक स्त्री से संबंध बना सकता है। इससे न तो उसे पाप लगेगा और न ही उसके पूर्वज उससे नाराज होंगे।

क्या पराई स्त्री संग भी बना सकते हैं संबंध?

विष्णु जी के परम भक्त देवर्षि नारद मुनि एक बार मृत्यु के देवता यमराज के पास गए और उनसे कहा कि हे यमराज आप तो नरक और मृत्यु के स्वामी हैं। आप व्यक्ति को उसके कर्मों के अनुसार दंड और फल देते हैं, लेकिन आज मैं आपके पास एक सवाल लेकर आया हूं। इसके बाद देवर्षि नारद मुनि यमराज से कहते हैं कि शास्त्रों के अनुसार एक पुरुष को केवल एक स्त्री के साथ शादी करनी चाहिए और उससे ही संबंध बनाने चाहिए, लेकिन आपने देखा होगा कि कुछ लोग अनेक विवाह करते हैं और अनेक स्त्रियों के साथ संबंध बनाते हैं तो क्या ये पाप है? क्या इसकी वजह से उस व्यक्ति को मरने के बाद नरक में जाना पड़ता है? इस पर शास्त्र क्या कहते हैं कृपया मेरे इस प्रश्न का उत्तर दीजिए।

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देव ऋषि नारद मुनि के प्रश्न का जवाब देते हुए यमराज कहते हैं कि नारद मुनि मानव जीवन के कल्याण के लिए आपने एक अच्छा प्रश्न पूछा है, लेकिन मैं आपको इस प्रश्न का जवाब एक कथा के माध्यम से दूंगा, जिसे सुनने के बाद आपको अपने सभी सवालों के जवाब मिल जाएंगे।

Devrishi Narad Yamraj Katha

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राजा-रानी को किस बात का दुख था?

यमराज कहते हैं कि प्राचीन काल की बात थी। एक गांव में एक राजा थे, जो बहुत ज्यादा दयालु थे। वो अपनी प्रजा की हर एक छोटी से छोटी जरूरत का ख्याल रखते थे और उनकी प्रजा भी उनसे अत्यंत संतुष्ट रहती थी। राजा का विवाह भी हो गया था और उनकी पत्नी भी बहुत सुंदर थी। इसके अलावा उनका व्यवहार भी बहुत ज्यादा दयालु था। राजा-रानी का जीवन अत्यंत सुखमय था, लेकिन उनको सिर्फ एक चीज का दुख रहता था कि उन्हें कोई संतान नही थी। राजा-रानी और गांव की प्रजा को इस बात की चिंता था कि राजा के बाद उनके साम्राज्य को कौन संभालेगा?

राजा दूसरा विवाह क्यों नहीं करना चाहते थे?

राजा-रानी ने अनेक वैद्य से अलग-अलग उपचार कराए थे। इसके अलावा व्रत, दान-पुण्य, यज्ञ और संतान प्राप्ति के लिए कई उपाय भी किए थे, लेकिन उसके बाद भी उन्हें पुत्र की प्राप्ति नहीं हो रही थी। ऐसे में दुखी प्रजा ने राजा को सलाह दी कि उन्हें दूसरा विवाह कर लेना चाहिए ताकि उनका वंश आगे बढ़ सके और गांव को एक नया राजा मिल सके। लेकिन महाराज अपनी पत्नी से अत्यंत प्रेम करते थे, जिसके कारण उन्होंने दूसरा विवाह करने के लिए मना कर दिया। इसके अलावा उन्हें शास्त्रों का भी ज्ञान था, जिसमें बताया गया था कि एक पुरुष को केवल एक विवाह ही करना चाहिए। शादीशुदा होते हुए किसी और स्त्री के साथ संबंध बनाने से पाप लगता है।

जब महाराज नहीं माने, तो तब प्रजा रानी के पास गई और उन्होंने उनसे निवेदन किया कि वह महाराज को समझाएं कि वो दूसरा विवाह कर लें, क्योंकि भविष्य में उनके साम्राज्य को एक राजा की जरूरत पड़ेगी। लेकिन राजा ने रानी की बात मानने से भी मना कर दिया।

पूर्वज राजा से क्यों नाराज थे?

स्वर्ग लोक से राजा के पूर्वज यह सब देख रहे थे और उन्हें चिंता थी कि अगर राजा को पुत्र नहीं हुआ, तो उनका वंश आगे नहीं बढ़ेगा। इसी भय के कारण सभी पूर्वज दुखी हो जाते हैं और एक दिन राजा के सपने में आते हैं। पूर्वज राजा से कहते हैं कि तुम्हारी वजह से हमारे कुल का नाश हो रहा है। इसलिए हम तुमसे बहुत नाराज है। तब राजा कहते हैं कि ऐसा मैंने क्या पाप कर दिया, जिसकी वजह से आपको दुख हो रहा है? कृपया मुझे बताएं। तब पूर्वज राजा से कहते हैं कि पुत्र हमारी मुक्ति का केवल एक ही उपाय है और वह है तुम्हारी संतान। जब तक तुम एक पुत्र को जन्म नहीं दोगे। हमारा क्रोध शांत नहीं होगा। क्योंकि हमारा संपूर्ण कुल नष्ट हो जाएगा। इसलिए हम तुमसे विनती करते हैं कि तुम दूसरा विवाह कर लो, लेकिन राजा अपने पूर्वजों की बात को भी इनकार कर देते हैं।

यमराज ने राजा को क्या समझाया?

जब राजा नहीं मानते हैं, तो तब सभी पूर्वज यमराज के पास जाते हैं और उन्हें पूरी परिस्थिति के बारे में बताते हैं। पूर्वजों की विनती पर यमराज धरती पर आते हैं और एक साधु का रूप धारण करके राजा के दरबार में जाते हैं। राजा साधु को देखकर अत्यंत खुश होता है और उन्हें भोजन कराता है और उनसे पूछता है कि आपके यहां आने की वजह क्या है। साधु राजा से कहते हैं कि मैं यमराज हूं। जो तुम्हारे पूर्वजों के कहने पर तुमसे मिलने आया हूं।

यमराज राजा से कहते हैं कि तुमने अपने पूर्वजों को नाराज कर दिया है, जिसके कारण तुम्हारे कुल का विनाश हो जाएगा। मरने के बाद तुम्हारी दुर्गति होगी और तुम्हारी आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति भी नहीं होगी। तुम्हारी आत्मा जीवनभर यहां-वहां भटकती रहेगी। तब राज यमराज से कहते हैं कि मैं विवश हूं, क्योंकि शास्त्रों में बताया गया कि एक व्यक्ति को केवल एक बार ही विवाह करना चाहिए और उसे अपनी पत्नी के अलावा किसी पराई स्त्री के साथ शारीरिक संबंध नहीं बनाने चाहिए। ये सब जानते हुए अगर मैं दूसरा विवाह करता हूं, तो मुझे पाप लगेगा। पाप का भागी बनने से अच्छा है कि मैं जीवनभर पुत्रहीन होकर रहूं।

Devrishi Narad Yamraj Katha

क्या राजा यमराज की बात मान गए?

इसके बाद यमराज कहते हैं कि हे पुत्र एक पुरुष दूसरा विवाह कर सकता है, लेकिन उसमें उसकी पत्नी की रजामंदी होनी चाहिए। अगर पत्नी अपने पति को दूसरा विवाह करने की इजाजत देती है, तो ऐसे में व्यक्ति दूसरा विवाह कर सकता है और उसे पाप भी नहीं लगता है। शास्त्रों में भी बताया गया है कि अगर किसी पुरुष को पुत्र की प्राप्ति नहीं हो रही है और उसकी पत्नी उसे दूसरा विवाह करने की इजाजत देती है ताकि उन्हें संतान की प्राप्ति हो सके। तो इस परिस्थिति में व्यक्ति को पाप नहीं लगता है।

राजा नें दूसरा विवाह किया या नहीं?

यमराज की बात सुनकर राजा का मन प्रसन्न होता है और वह उनका आशीर्वाद लेकर अपनी पत्नी के पास जाता है। राजा अपनी पत्नी से दूसरा विवाह करने की अनुमति मांगता है। जब रानी राजा को दूसरा विवाह करने की इजाजत दे देती है, तो वह शीघ्र ही दूसरा विवाह कर लेते हैं, जिससे उन्हें पुत्र की प्राप्ति होती है। राजा के इस फैसले को देखकर रानी, प्रजा और स्वर्ग लोक में मौजूद राजा के पूर्वज भी प्रसन्न हो जाते हैं और यमराज का धन्यवाद करते हैं। इस कथा के माध्यम से यमराज देवर्षि नारद मुनि को बताते हैं कि किस एक परिस्थिति में व्यक्ति दूसरा व्यवहार कर सकता है और उसे पाप भी नहीं लगता है।

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Edited By

Nidhi Jain

First published on: Jul 04, 2024 05:41 PM

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