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Religion

Dussehra 2024: रावण ने मंदोदरी के साथ इस मंदिर में लिए थे 7 फेरे, रावण दहन पर मनाया जाता है शोक

Dussehra 2024: दशहरा और रावण दहन के मौके पर जहां लोग खुशी और उल्लास जताते हैं, वहीं भारत में एक जगह एक जगह खास समुदाय के लोग, जो खुद को रावण का वंशज मानते है, इस मौके पर शोक मनाते हैं। मान्यता है कि यहां रावण और मंदोदरी का विवाह हुआ था। आइए जानते हैं, इससे जुड़ी रावण की कथा क्या है?

Author Edited By : Shyamnandan Updated: Oct 12, 2024 13:29
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Dussehra 2024: आज असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक दशहरा आज पूरे देश में मनाया जा रहा है। आज शाम में रावण का दहन किया जाएगा इस दिन पूरा देश जहां खुशी मनाता है, वहीं सूर्यनगरी जोधपुर में कुछ लोग ऐसे हैं, जो बाकायदा दशानन के दहन का शोक मनाते हैं। ये लोग खुद को रावण का वंशज मानते हैं।

मान्यता है कि जोधपुर वह पौराणिक जगह है, जहां मंदोदरी के साथ रावण का विवाह हुआ था। कहते हैं, उस समय बारात में आए रावण के कुछ अपने कुटुंब और खानदान के लोग यहीं यहीं बस गए थे। जोधपुर में दशानन लंकेश रावण और उसकी पत्नी मंदोदरी का मंदिर है। मान्यता है कि रावण का यह मंदिर रावण के वंशजों ने बनाया है। वे लोग आज भी यहां नियमित रूप से रावण की पूजा करते हैं।

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जोधपुर के मेहरानगढ़ फोर्ट की तलहटी में रावण और मंदोदरी का मंदिर है। इस मंदिर को दवे गोदा गोत्र के ब्राह्मण समुदाय ने मंदिर बनवाया है। मंदिर के गर्भगृह में रावण और मंदोदरी की अलग-अलग विशाल प्रतिमा स्थापित है। दोनों को भगवान शिव की पूजा करते हुए दर्शाया गया है।

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रावण से लेते हैं अच्छे गुणों का आशीर्वाद

रावण के विवाह के समय यहां बस जाने वाले रावण के वंशज पहले रावण की तस्वीर की पूजा करते थे। लेकिन वर्ष 2008 में इस मंदिर का निर्माण करवाया गया। उन लोगों का कहां है कि हम लोग रावण की पूजा कर उनके अच्छे गुणों को लेने का प्रयास करते हैं। रावण महान संगीतज्ञ होने के साथ ही वेदों के ज्ञाता थे। ऐसे में कई संगीतज्ञ और वेद का अध्ययन करने वाले छात्र रावण का आशीर्वाद लेने इस मंदिर में आते हैं।

यहां शोक का प्रतीक है दशहरा

वे लोग बताते हैं कि दशहरा उनके लिए शोक का प्रतीक है और इस दिन उनके गोत्र से कोई रावण दहन देखने नहीं जाते हैं। केवल इतना ही नहीं, बल्कि शोक (सूतक) मनाते हैं और शाम को स्नान कर जनेऊ को बदला जाता है। रावण के दर्शन करने के बाद भोजन किया जाता है।

अप्सरा की बेटी थी मंदोदरी

कहा जाता है कि असुरों के राजा मयासुर का दिल हेमा नाम की एक अप्सरा पर आ गया था। उसने हेमा को प्रसन्न करने के लिए उसने जोधपुर शहर के निकट मंडोर का निर्माण किया। मयासुर और हेमा की बहुत सुंदर पुत्री का जन्म हुआ और उसका नाम मंदोदरी रखा गया। एक बार मयासुर का देवताओं के राजा इंद्र के साथ विवाद हो गया और उसे मंडोर छोड़कर भागना पड़ा।

उसके जाने के बाद मंडूक ऋषि ने मंदोदरी की देखभाल की अप्सरा की बेटी होने के कारण मंदोदरी बहुत सुंदर थी। ऐसे रूपवती कन्या के लिए कोई योग्य वर नहीं मिल रहा था। आखिरकार उनकी खोज उस समय के सबसे बलशाली और पराक्रमी होने के साथ विद्वान राजा रावण पर जाकर पूरी हुई।

मंदोदरी को देखते ही मोहित हो गए रावण

मंडूक ऋषि ने रावण के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा। कहते हैं कि मंदोदरी को देखते ही रावण उस पर मोहित हो गए और विवाह के लिए तैयार हो गए। एक शुभ मुहूर्त में रावण बारात लेकर शादी करने के लिए मंडोर पहुंचे। मंडोर की पहाड़ी पर अभी भी एक स्थान को लोग रावण की चवरी (जहां पर वर-वधू फेरे लेते है) कहते हैं।

बाद में मंडोर को राठौड़ राजवंश ने मारवाड़ की राजधानी बनाया और सदियों तक शासन किया। साल 1458 मैं राठौड़ राजवंश में जोधपुर की स्थापना के बाद अपनी राजधानी को बदल दिया। आज भी मंडोर में विशाल गार्डन और रावण-मंदोदरी का मंदिर आकर्षक का केंद्र है

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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक शास्त्र की मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।

First published on: Oct 12, 2024 01:29 PM

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