What kind of education system did Mahatma Gandhi want for India (अनुराधा प्रसाद, एडिटर इन चीफ): हर साल की तरह इस बार भी दो अक्टूबर को गांधी जयंती मनाई जाएगी। महात्मा गांधी के विचारों को याद किया जाएगा। आने वाली पीढ़ियों को उनके रास्ते आगे बढ़ते हुए बेहतर भविष्य और समरस समाज का सपना दिखाया जाएगा। लेकिन आज महात्मा गांधी होते तो देश की मौजूदा शिक्षा व्यवस्था को किस तरह से देखते? इसमें किस तरह के बदलावों की वकालत करते? हमारे देश में पढ़ाई दिनों-दिन इतनी महंगी क्यों हो चुकी है? भारत में ट्यूशन और कोचिंग का बिजनेस सुपरसोनिक रफ्तार से क्यों बढ़ रहा है?
क्या बिना महंगी कोचिंग के अच्छे इंजीनियरिंग या मेडिकल कॉलेजों में दाखिला संभव है? रोजाना दो हजार छात्र पढ़ाई के लिए देश से बाहर की फ्लाइट क्यों पकड़ रहे हैं? देश के सरकारी एजुकेशन सिस्टम का किसने किया बंटाधार? क्या गांधी जी के रास्ते चलते हुए समाज के आखिरी पायदान पर खड़े परिवार के बच्चे के लिए भी बेहतर और समान शिक्षा के लिए खिड़की दरवाजे खोले जा सकते हैं? ऐसे सभी सुलगते सवालों के जवाब जानिए भारत एक सोच के इस स्पेशल एपिसोड में एक देश, एक पढ़ाई कब?
सामाजिक और आर्थिक तरक्की का ताला सिर्फ बेहतर शिक्षा से ही खुलेगा
वैसे तो शिक्षा को संविधान की समवर्ती सूची यानी Concurrent List में रखा गया है, जिस पर संघीय सरकार और राज्य दोनों ही कानून बना सकते हैं। लेकिन, विशालकाय भारत में सबके लिए एक जैसी शिक्षा हासिल करना मुश्किल है। देश के आम-ओ-खास की समझ में एक बात अच्छी तरह आ चुकी है कि सामाजिक और आर्थिक तरक्की का ताला सिर्फ बेहतर शिक्षा से ही खुल सकता है। ऐसे में हर माता-पिता अपनी हैसियत से बढ़ कर अपने बच्चों को आला दर्जे की तालीम दिलाने के लिए खून-पसीना एक कर देते हैं। अगर आप किसी भी 12 से 15 साल के बच्चे के माता-पिता से बात करेंगे तो उनकी सबसे बड़ी टेंशन बच्चे के करियर को लेकर होगी। दिनों-दिन महंगी पढ़ाई को लेकर होगी।
एक जैसी शिक्षा का इंतजार देश की बड़ी आबादी कर रही
मान लीजिए कि अगर बच्चा अगले साल 10वीं बोर्ड परीक्षा में बैठने वाला होगा तो उसके मम्मी-पापा इस बात को लेकर परेशान होंगे कि किस बेहतर कोचिंग में दाखिला दिलवाएं। जिससे दो साल की तैयारी के बाद टॉप रैंकिंग वाले सरकारी इंजीनियरिंग या मेडिकल कॉलेज में दाखिला हो जाए। पिछले कुछ दशकों में देश के Education System के भीतर एक ऐसा Eco System बना है। जिसमें बगैर अच्छी ट्यूशन या कोचिंग के इंजीनियरिंग या मेडिकल में दाखिला असंभव जैसा माना जाने लगा है। भारत के नक्शे पर राजस्थान के कोटा शहर की पहचान कोचिंग हब के रूप में होती है। जहां इंजीनियरिंग या मेडिकल की तैयारी कराने के नाम पर कोचिंग इंस्टीट्यूट तीन से चार लाख रुपये तक चार्ज करते हैं। अगर टॉप रैंकिंग के सरकारी कॉलेज में दाखिला हो गया तो ठीक है लेकिन, किसी वजह से प्राइवेट में दाखिला लेने की नौबत आई तो ऊंची पढ़ाई के लिए बैंक से कर्ज लेने की नौबत आ जाती है। ऐसे में सबसे पहले ये समझते हैं कि देश में पढ़ाई किस तरह से महंगी होती जा रही है। ऐसे में सबके लिए एक जैसी शिक्षा का इंतजार देश की बड़ी आबादी कर रही है।
12 लाख भारतीय छात्र दुनिया के अलग-अलग देशों में पढ़ाई कर रहे
भारत में हर साल पढ़ाई 10 से 12 फीसदी महंगी होती जा रही है। अभी प्राइवेट में चार साल की इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए करीब 12 लाख रुपये की फीस भरनी होती है। भविष्यवाणी ये भी की जाने लगी है कि अगर मौजूदा रफ्तार से फीस बढ़ती रही तो 2033 में इंजीनियरिंग के कोर्स के लिए 25 से 30 लाख रुपये खर्च करने पड़ सकते हैं। भले ही सरकारी मेडिकल कॉलेज में बहुत कम फीस पर डॉक्टर बनने का सपना पूरा किया जा सकता है। वहीं, किसी प्राइवेट मेडिकल कॉलेज से डॉक्टरी की डिग्री हासिल करने के लिए 50 लाख से एक करोड़ रुपये तक की मोटी फीस चुकानी होती है। दूसरे कोर्सेज में भी एडमिशन के लिए देश की जानी-मानी यूनिवर्सिटीज में गिनती की सीटें हैं। ऐसे में अपर मिडिल क्लास परिवारों के ज्यादातर माता-पिता की सोच रहती है कि अगर उनके बच्चे का देश के भीतर टॉप रैंकिंग कॉलेजों दाखिला ना हो पाए तो किसी भी तरह से इंतजाम कर ऊंची पढ़ाई के लिए विदेश भेज दिया जाए। इससे उनके बच्चों को ना सिर्फ ऊंची डिग्री मिलेगी। बल्कि, भारत से बाहर की दुनिया का एक्सपोजर भी मिलेगा। हर साल ऊंची पढ़ाई के लिए विदेश जाने वाले छात्रों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। करीब 12 लाख भारतीय छात्र दुनिया के अलग-अलग देशों में पढ़ाई कर रहे हैं। पांच साल पहले ये तादाद करीब 5 लाख हुआ करती थी। सिर्फ 2022 में ही पढ़ाई के लिए दूसरे देशों की फ्लाइट पकड़ने वाले भारतीय छात्रों की संख्या करीब साढ़े सात लाख रही। यानी रोजाना दो हजार छात्रों ने ऊंची डिग्री के लिए दूसरे देश का रुख किया।
कुछ दिनों पहले की बात है। देश के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल एम्स के एक जाने-माने डॉक्टर ने बातचीत के दौरान कहा कि आज की तारीख में मैं अपने बच्चे की जितनी स्कूल फीस हर महीने भरता हूं। उससे कम खर्च में एम्स से MBBS की डिग्री हासिल कर ली थी। पिछले कुछ दशकों में जिस तरह से सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर गिरा है उसमें प्राइवेट स्कूलों के लिए नई संभावनाएं तैयार हुई हैं। जहां बच्चों को पढ़ाने के बदले माता-पिता को हर महीने मोटी फीस चुकानी पड़ती है। ऐसे में भारत के हर माता-पिता के लिए अपने बच्चों को बेहतर और समान शिक्षा दिलाना संभव नहीं है। जरा सोचिए, पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह से तेजी से पढ़ाई महंगी हुई है और सरकारी स्कूली शिक्षा कमजोर हुई है उसमें महीने का 15 या 20 हजार रुपये कमाने वाला एक पिता अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा कैसे दे पाएगा?
महात्मा गांधी ने शिक्षा को हर व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार माना
20वीं सदी में अगर भारतीय जनमानस या कहें पूरी दुनिया पर किसी एक शख्स का सबसे ज्यादा प्रभाव रहा है तो वो महात्मा गांधी हैं। 21वीं सदी में दुनिया के सामने मौजूद ज्यादातर चुनौतियों से निपटने का रास्ता महात्मा गांधी के दिखाए रास्तों में खोजा जा रहा है। उन्होंने दुनिया को न सिर्फ सत्य, अहिंसा और संतोष का पाठ सिखाया बल्कि, शिक्षा को हर व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार माना। शिक्षा को किसी भी मनुष्य के भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति के लिए उतना ही जरूरी मानते थे जितना की किसी बच्चे के शारीरिक विकास के लिए मां का दूध। यही वजह रही कि गांधी जी का एक तय उम्र तक सबके लिए समान और मुफ्त शिक्षा पर जोर था। वो ये भी जानते थे कि भारत की तरक्की का सूत्र मातृभाषा में शिक्षा के जरिए ही निकल सकता है। ऐसे में गांधी जी एक ऐसी समान शिक्षा व्यवस्था का सपना संजोए हुए थे, जिसमें किसी भी छात्र या इंसान की बुद्धि, हाथ और हृदय तीनों विकसित हो सके।
जिनकी जेब खाली है सपने और हौसले ऊंचे उन्हें परवाज कैसे मिलेगी?
महात्मा गांधी भारत की चुनौतियों को भी समझते थे और उनसे मुक्ति का मार्ग भी बेहतर और सबके लिए समान शिक्षा व्यवस्था में देख रहे थे। संभवत:, इसलिए उन्होंने अंग्रेजों के दौर की 3R यानी Reading, Writing & Arithmetic को 3H में बदल दिया- Hand, Head & Heart। मतलब, ऐसी शिक्षा व्यवस्था जिसमें हर कोई आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनने के लिए कुछ हुनर सीख सके, पढ़ाई-लिखाई के जरिए अपनी बुद्धि का विकास कर सके। साथ ही, उसके हृदय का विकास भी इस तरह से हो सके कि वो स्व से आगे समाज के लिए भी सोचे।
गांधी जी ने एक आदर्श शिक्षा प्रणाली में सबके कल्याण का सपना संजोया था लेकिन, आजादी अमृतकाल में ये भी एक अजीब विडंबना है कि भारत में स्कूली शिक्षा का जो सरकारी ढांचा है, उसमें पढ़ाई का स्तर इतना गिर चुका है कि ज्यादातर मां-बाप अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में भेजना नहीं चाहते और उच्च शिक्षा के लिए खड़े किए गए वर्ल्ड क्लास सरकारी संस्थानों में इतनी कम सीटें हैं, जहां दाखिला पाना एवरेस्ट फतह करने जैसा है। National Education Policy 2020 में Hand, Head & Heart तीनों के विकास पर जोर तो है। लेकिन, जिनकी जेब खाली है सपने और हौसले ऊंचे उन्हें परवाज कैसे मिलेगी? बहुत गरीब परिवार का बच्चा हो या किसी सामान्य मिडिल क्लास का, किसी किसान का बच्चा हो या फिर कारोबार के किंग का सबके लिए एक जैसी पढ़ाई का रास्ता कैसे निकले? गरीब-अमीर सबके बच्चों के लिए प्लेइंग लेबल एक जैसा कैसे बने। आजादी के अमृत काल में इस पर एक ईमानदार मंथन होना चाहिए। यही महात्मा गांधी को सच्ची पुष्पांजलि होगी।
स्क्रिप्ट-रिसर्च: विजय शंकर
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