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भगत सिंह ने क्यों कहा- हमारी पार्टी को नेता नहीं चाहिए, क्या सच होगा उनका सपना?

भारत की आजादी के लिए न जाने कितने क्रांतिकारियों ने अपने प्राणों की आहूति दी थी। इनमें से भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ऐसे क्रांतिकारी थे, जिन्होंने भारत को आजाद करने में मुख्य भूमिका निभाई थी। इनके बलिदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता है। इन्हें 23 मार्च 1931 को फांसी पर लटका दिया गया था। आइए जानते हैं इनके जीवन जुड़े कुछ पहलुओं के बारे में।

Author Edited By : Satyadev Kumar Updated: Mar 23, 2025 08:59
bhagat singh rajguru sukhdev

आज 23 मार्च है। यह दिन भारत के लिए काफी महत्वपूर्ण है, इस दिन को देश शहीदी दिवस के रूप में मनाता है। इसी दिन सन 1931 में स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को अंग्रेजी हुकूमत ने फांसी दी थी। देश की आजादी के लिए लड़ने वाले भारत माता के इन वीर सपूतों को सदैव याद किया जाएगा। शहीद दिवस के मौके पर आज हम आपको भगत सिंह से जुड़े कुछ अहम पहलू के बारे में बता रहे हैं।

धर्म और राजनीति से देश को अलग रखना चाहते थे भगत सिंह

भगत सिंह धर्म को देश और राजनीति से अलग रखना चाहते थे क्योंकि उन्हें धर्म को राजनीति से जोड़ने के दुष्परिणामों की जानकारी थी। उनकी नजर में देश सेवा सबसे बड़ा धर्म था। मार्च 1926 में उन्होंने लाहौर में (अभी पाकिस्तान) ‘नौजवान भारत सभा’ का गठन किया था। इसका सदस्य बनने से पहले सभी को इस बात की शपथ लेनी पड़ती थी कि वह देश के हितों को अपनी जाति और धर्म के हितों से बढ़कर मानेगा। वास्तव में देखा जाए तो आज देश में भगत सिंह के इस विचार की सबसे अधिक आवश्यकता है, जब धर्म और जाति के नाम पर भेदभाव देखने को मिल रहा है।

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भगत सिंह का धर्म भारतीयता था

भगत सिंह का जन्म भले ही एक सिख परिवार में हुआ था, लेकिन उनके जीवन को देखने से लगता है कि उन्होंने अपने आप को कभी भी एक सिख के रूप में नहीं देखा था। वह एक भारतीय थे और भारतीयता ही उनका धर्म था। ‘नौजवान भारत सभा’ का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य सांप्रदायिकता से परे सभी प्रकार के सामाजिक, आर्थिक और औद्योगिक संगठनों से सहानुभूति रखना था। यदि भारत को अपने अस्तित्व की रक्षा करनी है तो आज हमारे राष्ट्रीय नेताओं को भी इस बात पर ध्यान देना ही होगा कि सांप्रदायिक आधार पर बने सभी प्रकार के संगठनों पर रोक लगाई जाए, अन्यथा इसके दुष्परिणामों की कल्पना भी नहीं की जा सकती। राष्ट्र के भविष्य को सुनिश्चित रखने के लिए भगत सिंह के इस विचार से हमें प्रेरणा लेनी ही होगी।

इस पार्टी को नेता नहीं चाहिए

भगत सिंह काम करने में विश्वास करते थे, राजनीति में नहीं। देश का कल्याण इसी में है कि आज के राजनीतिक शख्स अपने आपको नेता न समझकर जनता के सेवक, एक कार्यकर्ता अथवा जनसेवक समझें। भारत में समाजवाद की स्थापना के उद्देश्य से क्रांतिकारियों ने ‘भारत समाजवादी गणतंत्र संघ’ की स्थापना की थी। इस बारे में भगत सिंह ने लिखा था- ‘मैं नौजवानों से कहना चाहता हूं कि वे इस काम में कार्यकर्ता के रूप में भाग लें, जहां तक नेताओं का सवाल है, उनकी संख्या पहले से ही ज्यादा हैं। हमारी पार्टी को नेता नहीं चाहिए। यदि आप सांसारिक प्राणी हैं, पारिवारिक प्राणी हैं, तो हमारे पास नहीं आएं, लेकिन यदि आप हमारे उद्देश्य से सहानुभति रखते हैं, तो दूसरी तरह से हमारी सहायता करें। केवल कड़े अनुशासन से रहने वाले लोग ही आंदोलन को आगे बढ़ा सकते हैं।’

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Edited By

Satyadev Kumar

First published on: Mar 23, 2025 07:18 AM

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