Shaheed Diwas 2024: भारत में 23 मार्च की तारीख शहीद दिवस के तौर पर मनाई जाती है। साल 1931 में इसी तारीख को लाहौर सेंट्रल जेल में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी पर चढ़ा दिया गया था। तीनों क्रांतिकारियों को ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन सांडर्स की हत्या करने के लिए मौत की सजा सुनाई गई थी। इस मौके पर आज हम आपको भगत सिंह से जुड़ा एक किस्सा बताने जा रहे हैं, जो आपको हैरान कर देगा।
On this Shaheed Diwas, let’s honor the unmatched courage and sacrifice of Bhagat Singh, Shivaram Rajguru, and Sukhdev Thapar, who laid down their lives for the freedom of our nation. Their legacy continues to ignite the flames of patriotism in our hearts🕯️🇮🇳 pic.twitter.com/zVaN1r0YNi
---विज्ञापन---— Rishabh Pant (@RishabhPant17) March 23, 2024
दरअसल, जब भगत सिंह के खिलाफ मुकदमा चल रहा था तब उनके पिता किशन सिंह ने बेटे को माफी देने के लिए स्पेशल ट्रिब्यूनल को एक दया याचिका लिखी थी। इसमें उन्होंने लिखा था कि भगत सिंह बेकसूर हैं इसलिए उन्हें माफी दे दी जानी चाहिए। लेकिन क्रांतिकारी भगत सिंह इसके लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं थे। उन्होंने इसे लेकर अपने पिता को एक चिट्ठी लिख डाली थी जिसमें उन्होंने कठोर शब्दों में उन्हें डांट लगाई थी।
पहले संसद में बम फेंकने के केस में अरेस्ट
भगत सिंह को सबसे पहले तत्कालीन भारतीय संसद के अंदर बम फेंकने के लिए गिरफ्तार किया गया था। इस दौरान भगत सिंह और उनके साथी बटुकेश्वर दत्त ने नारा लगाया था कि ‘बहरों को सुनाने के लिए तेज आवाज जरूरी है’। उन्होंने कहा था कि हम संसद में किसी को मारना नहीं चाहते थे। हम केवल अपनी बात रखना चाहते थे जिसे कोई नहीं सुन रहा। दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया था और उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी।
“If the deaf are to hear, the sound has to be very loud” 💥
Remembering Bhagat Singh, Sukhdev & Rajguru on Shaheed Diwas🙏 pic.twitter.com/4FJbiGwF4e
— Prachyam (@prachyam7) March 23, 2024
जॉन सांडर्स की हत्या में फिर हुई गिरफ्तारी
इसके बाद लाहौर साजिश मामले में भगत सिंह को फिर से गिरफ्तार किया गया था। दिसंबर 1928 को सिंह और राजगुरु ने ब्रिटिश अधिकारी जॉन सांडर्स की गोली मारकर हत्या कर दी थी। ये लोग मारना चाहते थे ब्रिटिश सुपरिटेंडेंट जेम्स स्कॉट को लेकर पहचानने में गलती होने से उनका शिकार सांडर्स बन गया था। बता दें कि साइमन कमीशन के विरोध में प्रदर्शन के दौरान हुई लाला लाजपत राय की मौत में स्कॉट का बड़ा हाथ था।
तत्कालीन वायसराय इरविन ने इस मामले में ट्रायल तेजी से पूरा करने के लिए एक स्पेशल ट्रिब्यूनल का गठन किया था। 7 अक्टूबर 1930 को ट्रिब्यूनल ने 300 पन्नों का आदेश जारी किया था जिसमें भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी की सजा सुनाई गई थी। उल्लेखनीय है कि इस विवादित ट्रायल की भारत के साथ-साथ ब्रिटेन में भी खासी आलोचना हुई थी। इसके बाद 23 मार्च 1931 को तीनों क्रांतिकारियों को फांसी दे दी गई थी।
India is observing ‘Shaheed Diwas’ today to mark the death anniversary of Bhagat Singh, Shivaram Hari Rajguru & Sukhdev Thapar, the revolutionary leaders who were hang€d at the Lahore Central Jail on March 23, 1931. These brave men sacrificed their lives for the country. 🙏 pic.twitter.com/Edvofpmq0W
— PunFact (@pun_fact) March 23, 2024
पिता ने दी दया याचिका तो क्या बोले भगत
ट्रायल के दौरान जब भगत सिंह के पिता ने उन्हें माफ कराने के लिए दया याचिका लिखी तो उनका बेटा इससे खुश नहीं हुआ। उल्टे भगत सिंह ने इसे लेकर पिता को एक चिट्ठी लिखी। इसमें उन्होंने लिखा था कि मैं यह जानकर हैरान हूं कि आपने मेरे बचाव में स्पेशल ट्रिब्यूनल के सदस्यों को एक दया याचिका लिखी है। भगत सिंह ने अपनी चिट्ठी में यह भी लिखा था कि मेरा पिता होने के बाद भी आपको यह फैसला लेने का अधिकार नहीं है।
भगत सिंह ने लिखा था कि मुझे ऐसा लग रहा है जैसे किसी ने मेरी पीठ में चाकू घोंप दिया हो। मेरा हमेशा से यही विचार रहा है कि सभी राजनीतिक कार्यकर्ताओं को अदालती जंग की परवाह नहीं करनी चाहिए। उन्हें जो भी सजा सुनाई जाए चाहे वह कितनी भी सख्त हो, उसे साहस का परिचय देते हुए स्वीकार करना चाहिए। मेरा जीवन इतना कीमती नहीं है कि इसे बचाने के लिए मुझे अपने सिद्धांत बेचने पड़ जाएं। मेरे सिद्धांत सबसे ऊपर हैं।
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