Netaji Subhash Chandra Bose 127th birth anniversary Parakram Diwas how escaped Germany Soviet Union: आज 23 दिसंबर को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 127वीं जयंती है जिसे देश पराक्रम दिवस के रूप में मना रहा है। नेताजी की जिंदगी के बारे में समझाने के लिए कई फिल्में बनी हैं और किताबें लिखी गईं। देश आज नेताजी को याद करके उन्हें पुष्पांजलि अर्पित कर रहा है। क्या आपको पता है कि अंग्रेजों को चकमा देने के लिए सुभाष चंद्र बोस ने कौन सी कार का इस्तेमाल किया और यह अभी तक कहां रखी है।
नेताजी को कोलकाता में नजरबंद करके रखा गया था। वे अपनी जर्मन कार वांडरर सीडान से गोमो पहुंचे थे। यह कार कोलकाता के एक म्यूजियम में अभी भी रखी हुई है। यह कार कोलकाता के एल्गिन रोड स्थित नेताजी के पैतृक आवास पर आज भी रखी है।
सुभाष चंद्र बोस का जीवन और विचार करोड़ो युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है। सुभाष चंद्र बोस और उनकी इंडियन नेशनल आर्मी के बारे में हर कोई जानना चाहता है। कांग्रेस से अलग रास्ते पर जाने के बावजूद उनका मकसद एक ही था। देश की आजादी में उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता।
सुभाष चंद्र बोस को जैसे ही ऐसा लगने लगा कि भारत में रहकर देश के लिए ज्यादा कुछ नहीं कर पा रहे हैं तो उन्होंने देश से बाहर जाने का फैसला किया। इसके बाद वे सोवियत यूनियन (अब का रूस) पहुंच गए। लेकिन वहां जाकर भी उन्हें निराशा ही हाथ लगी। इसके बाद वे जर्मनी की राजधानी बर्लिन पहुंचे। जर्मनी में इस समय हिटलर का शासन था।
पूरे यूरोप में जर्मनी का प्रभाव बढ़ रहा था। वहां उन्हें काफी सम्मान मिला। इसके बाद उन्होंने भारत के लोगों तक वहां से अपना संदेश पहुंचाया। सुभाष चंद्र बोस चाहते थे कि जर्मनी की मदद लेकर भारत को अंग्रेजों से आजाद कराया जाए। वहां उन्होंने हिटलर से भी मुलाकात की। हिटलर से बोस की मुलाकात पर इतिहासकारों की अलग-अलग राय है।
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कैसे निकले पाए देश से बाहर
17 जनवरी 1941 को सुभाष चंद्र बोस ने देश छोड़ दिया। उस समय उन्हें कड़ी सुरक्षा में नजरबंद करके रखा गया था। बावजूद इसके उन्होंने अंग्रेजों को चकमा देकर देश छोड़ दिया। पठान की वेशभूषा धारण करके उन्होंने अपना घर छोड़ दिया। कोलकाता से वे पेशावर पहुंचे जो कि अब पाकिस्तान में है। यहां से अफगानिस्तान और मध्य एशिया होते हुए इटली और जर्मनी को क्रास करके वे सोवियत यूनियन की राजधानी मॉस्को पहुंच गए।
अंग्रेजों को चकमा देने के लिए उन्होंने दाढ़ी बड़ी कर ली थी। कोई उनपर शक न कर सके इससे बचने के लिए उन्होंने ऐसा व्यवहार किया ताकि लोगों को लगे कि वे बोल और सुन नहीं पाते हैं। बोस ने गुंगा-बहरा बनने का नाटक किया और देश से बाहर निकलने में सफल रहे।
Greetings to the people of India on Parakram Diwas. Today on his Jayanti, we honour the life and courage of Netaji Subhas Chandra Bose. His unwavering dedication to our nation's freedom continues to inspire. pic.twitter.com/OZP6cJBgeC
— Narendra Modi (@narendramodi) January 23, 2024
राष्ट्रपति ने अर्पित की श्रद्धांजलि
राष्ट्रपति द्रौपदी मूर्मू ने भी नेताजी को उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित की है। उन्होंने कहा, पराक्रम दिवस के रूप में मनाई जा रही नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती पर मैं अपनी सादर श्रद्धांजलि अर्पित करती हूं। नेताजी ने भारत की स्वतंत्रता के लक्ष्य के लिए असाधारण प्रतिबद्धता प्रदर्शित की थी। उनके अद्वितीय साहस और करिश्माई व्यक्तित्व ने भारतवासियों को औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध निडरता से लड़ने के लिए प्रेरित किया। उनके ओजस्वी व्यक्तित्व का हमारे स्वतंत्रता संग्राम पर गहरा प्रभाव पड़ा। हमारे देशवासी नेताजी को कृतज्ञतापूर्वक सदैव याद रखेंगे।
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