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खंड-खंड उत्तराखंड, जोशीमठ ही नहीं उत्तरकाशी और नैनीताल में बजी खतरे की घंटी, दरकते पहाड़, धंस सकती है जमीन

नई दिल्ली: उत्तराखंड के पहाड़ खंड-खंड़ कर दिए गए हैं। इंसानों ने अपनी लालच में देवभूमि का छलनी कर दिया। सड़क-सुरंग बनाने के लिए पहाड़ों का बेहिसाब दोहन किया जा रहा है। लेकिन शायद ये पहाड़ में इसानों के लालच को और बर्दाश्त करने के मूड में नहीं है। तभी तो आए दिन उत्तराखंड से […]

Edited By : Gyanendra Sharma | Updated: Jan 9, 2023 12:15
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नई दिल्ली: उत्तराखंड के पहाड़ खंड-खंड़ कर दिए गए हैं। इंसानों ने अपनी लालच में देवभूमि का छलनी कर दिया। सड़क-सुरंग बनाने के लिए पहाड़ों का बेहिसाब दोहन किया जा रहा है। लेकिन शायद ये पहाड़ में इसानों के लालच को और बर्दाश्त करने के मूड में नहीं है। तभी तो आए दिन उत्तराखंड से लैंडस्लाइड और हिमस्खलन की खबरें आ रही हैं। आत्याधमिक और धार्मिक शहर जोशीमठ डूब रहा है। इस शहर में त्रासदी आई है जिसे खुद मानव जाति ने बुलया है।

उत्तरकाशी और नैनीताल पर भी मंडराया खतरा

जोशीमठ अकेला शहर नहीं है जो डूबने के कगार पर है। विशेषज्ञों का कहना है कि उत्तरकाशी, नैनीताल पर भी डूबने का खतरा है। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि यह कोई अकेली घटना नहीं है। जोशीमठ की तरह हिमालय की तलहटी में कई अन्य कस्बों में भू-धंसाव का खतरा है।

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अंधाधुन कंस्ट्रक्शन ने इको सिस्टम बिगाड़ा

भू-धंसाव सबसे बड़े अनदेखे पर्यावरणीय परिणामों में से एक है क्योंकि स्थानीय क्षेत्र के भूविज्ञान की परवाह किए बिना अंधाधुन कंस्ट्रक्शन किया गया। जोशीमठ कई पावर प्लांट लगाए जा रहे हैं। शहर के नीच सुरंग बनाए जा रहे है। कई ब्लास्ट हुए। जोशीामठ बद्रीनाथ, हेमकुंड साहिब और शंकराचार्य मंदिर की ओर जाने वाले पर्यटकों का केंद्र है। इसके मद्देनजर बड़े पैमाने पर इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट का काम हुआ। वैज्ञानिकों को कहना है कि समस्या सिर्फ इतनी नहीं है कि इन गतिविधियों को अंजाम दिया गया है बल्कि यह भी है कि ये काम अनप्लान्ड और अक्सर अवैज्ञानिक तरीके से किए गए।

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जोशीमठ ढीली मिट्टी पर बसा हुआ है

जोशीमठ भूस्खलन से जमा हुई मिट्टी पर बसा हुआ है। शहर के नीचे के मिट्टी ढीली है। ग्लेशियोलॉजिस्ट डीपी डोभाल कहते हैं कि यह क्षेत्र कभी ग्लेशियरों के अधीन था। इसलिए यहां की मिट्टी बड़े निर्माणों को सपोर्ट नहीं करती है। हालाँकि, स्थिति में इस अचानक ट्रिगर के पीछे मुख्य कारण मेन सेंट्रल थ्रस्ट (MCT-2) का पुनर्सक्रियन है। यह भूवैज्ञानिक दोष है जहां भारतीय प्लेट ने हिमालय के साथ-साथ यूरेशियन प्लेट के नीचे धकेल दिया है।

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खंडर न बन जाए नैनीताल 

जोशीमठ के अलावा उत्तराखंड के कई और शहर पर खतरे की घंटी बज रही है। जोशीमठ की तरह नैनीताल भी निर्माण के अनियंत्रित प्रवाह के साथ पर्यटन के भारी मुकाबलों का अनुभव कर रहा है। यह शहर कुमाऊं लघु हिमालय में स्थित है और 2016 की एक रिपोर्ट बताती है कि टाउनशिप का आधा क्षेत्र भूस्खलन से उत्पन्न मलबे से ढका हुआ है। वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ जियोलॉजी एंड ग्राफिक एरा हिल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं द्वारा नैनीताल के आसपास एक भूवैज्ञानिक अध्ययन में भी 2016 में इसी तरह के बात कही गई थी। अध्ययन में पाया गया था कि क्षेत्र में मुख्य रूप से शेल और स्लेट के साथ चूना पत्थर शामिल हैं जो नैनीताल की उपस्थिति के कारण अत्यधिक कुचले और अपक्षयित हैं। अध्ययन में पाया गया, “इन चट्टानों और ऊपरी मिट्टी में बहुत कम ताकत है।

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Written By

Gyanendra Sharma

Edited By

Manish Shukla

First published on: Jan 08, 2023 09:27 PM

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