Gujarat high court big comment: अहमदाबाद स्थित गुजरात उच्च न्यायालय ने एक मामले में बड़ी टिप्पणी की है। न्यायालय ने कहा है कि स्कूल लीविंग सर्टीफिकेट किसी भी आपराधिक केस में आरोपी की उम्र को स्थापित करने का साक्ष्य नहीं माना जा सकता है। यह ऐसे साक्ष्य के तौर पर काफी कम महत्व रखता है। टिप्पणी सरकार की ओर से दायर मामले पर सुनवाई के दौरान की गई।
सरकार 27 साल पहले के रेप मामले में आरोपी के बरी होने के फैसले के खिलाफ चुनौती दे रही है। व्यक्ति पर आरोप है कि 1994 में उसने 12 साल की लड़की को बरगलाया और फिर रेप किया। लेकिन 1996 में उसे छोड़ दिया गया। क्योंकि आरोपी के खिलाफ अभियोजन पर्याप्त सबूत पेश नहीं कर सका था। कोर्ट ने माना था कि पीड़िता ने पुलिस की रटी-रटाई कहानी अदालत को बताई।
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आरोपी को छोड़ दिया गया, क्योंकि पीड़िता की उम्र क्लीयर नहीं हो सकी। उसके पिता की ओर से स्कूल लीविंग सर्टीफिकेट पेश किया गया था, जिसमें उसकी उम्र एक जनवरी 1982 दर्शाई गई थी। लेकिन अदालत ने इस पर संदेह जताया। पिता ने कोर्ट को बताया कि बेटी के जन्म के बाद पंजीकरण करवाया था। लेकिन अफसरों ने इसे प्रस्तुत नहीं किया। जिसके बाद कोर्ट ने मामले को संदिग्ध माना।
आरोपी के मामले में कोर्ट का हस्तक्षेप से इन्कार
न्यायमूर्ति एएस सुपेहिया और एमआर मेंगडे की पीठ ने आरोपी को बरी करने के मामले में कोई हस्तक्षेप से इन्कार कर दिया। पीड़िता की ऐज के बारे में कोर्ट ने कहा कि स्कूल लीविंग सर्टीफिकेट धारा 35 के तहत तो सबूत माना जा सकता है। लेकिन ठोस सबूतों के अभाव में अगर यही साक्ष्य है, तो इसकी स्वीकार्यता का खास महत्व नहीं रह जाता है।