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भूंकप-सुनामी जैसी आपदा आने से पहले ही जान जाएगा भारत! वैज्ञानिकों ने किया कमाल, आज से काम पर लगी NISAR सैटेलाइट

NISAR सैटेलाइट ISRO और NASA के संयुक्त मिशन में बनाया गया है. जिसें 7 नवंबर यानी आज से ऑपरेशन कर दिया गया है. इसका लॉन्च 30 जुलाई को इसकी 30 जुलाई को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से किया गया था.

Author Written By: News24 हिंदी Author Published By : Versha Singh Updated: Nov 7, 2025 12:43

NISAR Satellite NASA-ISRO: NISAR सैटेलाइट ISRO और NASA के संयुक्त मिशन में बनाया गया है. जिसें 7 नवंबर यानी आज से ऑपरेशन कर दिया गया है. इसका लॉन्च 30 जुलाई को इसकी 30 जुलाई को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से किया गया था.

ऑपरेशनल होने के बाद से ही सैटेलाइट से वैज्ञानिकों को भूकंप, ज्वालामुखी, भूस्खलन, बर्फबारी, जंगलों और खेती में हो रहे बदलावों को भी समझने में मदद मिलेगी. यह उच्च-सटीकता वाला रडार उपग्रह, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) और अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी (NASA) का संयुक्त प्रकल्प है, जो पर्यावरण, कृषि और जलवायु निगरानी के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने जा रहा है. इसके साथ ही भारत वैश्विक रडार-आधारित पृथ्वी अवलोकन में एक प्रमुख योगदानकर्ता बन जाएगा. वहीं यह सैटेलाइट हर 12 दिन में पृथ्वी की पूरी तस्वीर लेगा.

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बता दें कि NISAR सैटेलाइट में भारत और अमेरिका दोनों की ही टेक्नोल़ॉजी का इस्तेमाल हुआ है. इसमें दो खास रडार L-बैंड NASA का और S-बैंड ISRO का लगा है, जो मिलकर धरती की बेहद साफ तस्वीरें भेजेंगे.

क्या है NISAR सैटेलाइट की खास बात?

  • NISAR सैटेलाइट का वजन 2400 किलो है और ये ISRO के 13K स्ट्रक्चर पर बना है.
  • NISAR सैटेलाइट में 12 मीटर का बड़ा एंटीना है, जो अंतरिक्ष में 9 मीटर लंबा बूम फैलाकर खुलेगा.
  • दोनों रडार तकनीक मिलकर 240 किलोमीटर चौड़ाई तक तस्वीरें ले सकती हैं.
  • यह मिशन 5 साल तक काम करेगा और इसका डेटा सभी के लिए मुफ्त रहेगा.

कौन-कौन सी जानकारियां देगा NISAR सैटेलाइट?

यह पृथ्वी की कक्षा में लॉन्च किया जाएगा जो हर 12 दिन में पूरी धरती और ग्लेशियर का एनालिसिस करेगा. इसके द्वारा भेजे गए डाटा से पता लगाया जाएगा कि जंगल और वेटलैंड में कार्बन के रेगुलेशन कितने अहम हैं. दरअसल, क्लाइमेट चेंज से निपटने के लिए जंगल और वेटलैंड काफी अहम है. इन्हीं के कारण पर्यावरण में ग्रीनहाउस गैसों का रेगुलेशन होता है.

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इसके साथ ही यह सैटेलाइट बवंडर, तूफान, ज्वालामुखी, भूकंप, ग्लेशियरों के पिघलने, समुद्री तूफान, जंगली आग, समुद्रों के जलस्तर में बढ़ोतरी, खेती, गीली धरती, बर्फ का कम होना आदि की पहले ही जानकारी दे देगा.

इस सैटेलाइट से धरती के चारों ओर जमा हो रहे कचरे और धरती की ओर अंतरिक्ष से आने वाले खतरों की भी जानकारी मिल सकेगी. NISAR से प्रकाश की कमी और इसमें बढ़ोतरी की भी जानकारी मिल पाएगी.

S-बैंड और L-बैंड रडार क्या है?

L-बैंड रडार घने जंगलों की छतरी के आर-पार डाटा एकत्र कर सकता है और इससे मिट्टी में नमी, घनी वनस्पति (फॉरेस्ट बायोमास) और जमीन व बर्फ की सतहों की गति मापी जा सकती है. वहीं S-बैंड रडार छोटे पौधों और घास के इलाकों की स्थिति को बेहतर ढंग से पकड़ सकता है. यह कृषि भूमि, घास वाले पारिस्थितिक तंत्र और बर्फ में नमी का अध्ययन करने में सक्षम है. दोनों रडार प्रणाली बादलों और बारिश के बीच दिन-रात किसी भी समय डाटा एकत्र कर सकते हैं.

NISAR सैटेलाइट भारत की सीमाओं पर कैसे रखेगा नजर?

मिली जानकारी के अनुसार, इस सैटेलाइट से मिलने वाली हाई-रिजोल्यूशन की तस्वीरें हिमालय में ग्लेशियरों की निगरानी में भारत और अमेरिका की सरकारों की मदद करेंगी. यह चीन और पाकिस्तान से लगी भारत की सीमाओं पर कड़ी नजर रखने में भी सरकार की मदद कर सकता है.

क्यों है NISAR सैटेलाइट भारत के लिए अहम?

इस मिशन का उद्देश्य बेहतर योजना, कृषि और मौसम से संबंधित स्पेस इनपुट हासिल करना है. निसार में सिंथेटिक अपर्चर रडार लगा है, जो देश के किसी भी अन्य उपग्रहों से मिलने वाली तस्वीरों की तुलना में अत्यधिक हाई रिजोल्यूशन की इमेज भेजेगा. इसमें बादलों के पीछे और अंधेरे में भी देखने की क्षमता है. ये सबसे महंगे अर्थ इमेजिंग उपग्रहों में से एक होगा.

जनवरी में होगा गगनयान मिशन का पहला मानव रहित परिक्षण

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के प्रमुख वी नारायणन ने कहा, अब तक मिला सभी डाटा बेहतरीन हैं. हर 12 दिन में पृथ्वी को स्कैन किया जा सकता है. यह उपग्रह बेहद उपयोगी साबित होगा. इसरो प्रमुख ने आगे बताया कि गगनयान मिशन का पहला मानव रहित परीक्षण जनवरी में किया जाएगा. ISRO का लक्ष्य है कि 2027 तक भारत के अंतरिक्ष यात्रियों को स्वदेशी रॉकेट से अंतरिक्ष में भेजा जाए.

उन्होंने बताया कि इस मिशन के लिए अब तक 8,000 से ज्यादा परीक्षण किए जा चुके हैं. ISRO पहले तीन मानव रहित उड़ानें संचालित करेगा, उसके बाद अंतरिक्ष यात्रियों को पृथ्वी की कक्षा में भेजा जाएगा.

नारायणन ने यह भी कहा कि भारत 2028 तक भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन का पहला मॉड्यूल लॉन्च करने की योजना बना रहा है और 2035 तक इसके पांचों मॉड्यूल पूरी तरह संचालित कर दिए जाएंगे. यह भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन 52 टन का होगा, जिसमें तीन से चार अंतरिक्ष यात्री लंबे समय तक और छह सदस्य तक कम अवधि के मिशनों के लिए रह सकेंगे.

First published on: Nov 07, 2025 12:35 PM

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