महाराष्ट्र में सत्ता में आने के एक साल बाद भाजपा स्थानीय निकाय चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. भाजपा ने 288 स्थानीय निकायों में से 129 पर जीत हासिल की है. सत्ताधारी महायुति गठबंधन ने 200 का आंकड़ा पार कर लिया, जिसमें शिवसेना (शिंदे गुट) ने 51 और एनसीपी (अजित पवार) ने 33 स्थानीय निकायों में जीत दर्ज की. वहीं, विपक्षी महा विकास अघाड़ी (MVA) ने बमुश्किल 50 का आंकड़ा छूआ. इसमें कांग्रेस ने 35 सीटें जीतीं और शिवसेना (UBT) और एनसीपी (शरदचंद्र पवार) आठ-आठ सीटों तक ही सीमित रहीं.
BJP के लिए खुशखबरी
15 जनवरी को बीएमसी चुनाव होने वाले हैं. उससे पहले स्थानीय निकाय चुनाव में जीत, भाजपा के लिए खुशखबरी लेकर आई है. पिछले तीन दशक से शिवसेना(यूबीटी) बीएमसी पर काबिज है. लेकिन इस बार भाजपा की कोशिश है कि वह बीएमसी चुनाव में परचम लहराए. स्थानीय निकाय चुनाव भी भाजपा ने ऐसे लड़ा था, जैसे यह लोकसभा या विधानसभा चुनाव हो. इस जीत से भाजपा कार्यकर्ताओं में एक जोश देखने को मिला, जिसका फायदा पार्टी को बीएमसी चुनाव में भी मिल सकता है.
BJP सहयोगियों के लिए मुश्किल
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने चुनाव से पहले राज्य भर में 38 रैलियों को संबोधित किया था. यह सीएम की पार्टी को जमीनी स्तर पर मजबूत करने की अग्निपरीक्षा थी. इसमें वह कामयाब भी रहे. इन नतीजों ने यह दिखा दिया कि भाजपा आने वाले समय में महाराष्ट्र में अपने दम पर भी सरकार बना सकती है. भाजपा चाहती है कि उसे महाराष्ट्र में सहयोगियों की जरूरत ना पड़े. स्थानीय चुनाव में जीत भाजपा के उस लक्ष्य की ओर एक अहम कदम है. भाजपा के लिए इस जीत के जैसे मायने हैं, उसके सहयोगियों के लिए उसके उलट है.
भाजपा की सहयोगी शिवसेना (शिंदे गुट) ने 51 और एनसीपी (अजित पवार) ने 33 स्थानीय निकाय जीती हैं. ऐसे में उनके लिए साफ मैसेज है कि आने वाले समय में उन्हें ग्राउंड लेवल पर बहुत काम करना होगा. शिवसेना (शिंदे गुट) और एनसीपी (अजित पवार) का भाजपा के साथ तनाव की खबरें भी आती रहती हैं, ऐसे में भाजपा का सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरना, सहयोगियों के लिए सही संकेत नजर नहीं आ रहे.
MVA के लिए क्या मायने
इन नतीजों ने दिखा दिया कि पिछले साल विधानसभा चुनाव में हार के बाद भी विपक्षी पार्टियों ने खुद को मजबूत करने के लिए कोई काम नहीं किया. BMC चुनाव से पहले विपक्ष के लिए ये संकेत बिल्कुल ठीक नहीं है. क्योंकि पिछले तीन दशक से बीएमसी पर शिवसेना (UBT) काबिज है, ऐसे में इसे बरकरार रखना विपक्ष के लिए मुश्किल हो सकता है. क्योंकि भाजपा अपनी पूरी ताकत बीएमसी में जीत के लिए लगा देगी.
शिवसेना (UBT) और एनसीपी (SP) दोनों ही पार्टियां दहाई के अंक तक को नहीं छू पाईं. दोनों पार्टियों के लिए इस हार से उनके जमीनी स्तर के ढांचों को बनाए रखना मुश्किल हो सकता है. दोनों पार्टियां बंट जाने के बाद ग्राउंड लेवल पर कमजोर हो गई थीं. इसका असर स्थानीय निकाय चुनाव में साफ दिखा. वहीं, कांग्रेस ने आरोप लगाया कि विपक्ष के खराब प्रदर्शन के लिए महायुति सरकार द्वारा प्रशासनिक मशीनरी का उपयोग जिम्मेदार था.










