फीचर डेस्क: कभी सोने की चिड़िया कहलाने वाली हमारी भारत भूमि पर जुल्म करने में विदेशी आक्रांताओं ने कोई कसर नहीं छोड़ी। हमारे अनेक वीरों ने अपने-अपने अंदाज में इस जबर-जुल्म को टक्कर दी। नतीजतन 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजी हुकूमत को हमारी यह धररा छोड़कर जाना पड़ा और आज हम आजाद आब-ओ-हवा में सांस ले रहे हैं। इसी कुर्बानी, खुशहाली और शांति का प्रतीक है हमारा राष्ट्र ध्वज, जिसे हम शान से विजयी विश्व तिरंगा कहते हैं। अब आजादी के 76 वर्ष पूरे हो चले हैं और इस विशेष अवसर को समस्त भारतवर्ष में ‘राष्ट्र पहले, हमेशा पहले’ (Nation First, Always First) थीम के तहत मनाया जाना है। इस शुभावसर पर News 24 हिंदी राष्ट्र ध्वज के उन्नति पथ में आए अहम पड़ावों का स्मरण करा रहा है। जानें, कैसा रहा आजादी के उत्सव के साक्षी हमारे राष्ट्र ध्वज का रंगों का सफर…
यह बात हर कोई जानता और मानता है कि किसी भी विशेष अभियान को एक अंजाम तक पहुंचाने के लिए उससे जुड़े जनसमूह को भावनात्मक रूप से बांधे रखना बेहद जरूरी होता है। भारतीय स्वाधीनता संग्राम के लिए ध्वज के रूप में एक विशेष चिह्न का निर्धारण करना भी इसी प्रक्रिया का है।
कमल के 8 फूल थे पहले हमारे राष्ट्र ध्वज में
आजादी की भावना को लेकर 1906 में कलकत्ता में भारत का जो पहला राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया था, उसकी संरचना मौजूदा समय में हमारे दिलों पर राज कर रहे तिरंगे से कहीं भिन्न थी। इस झंडे में हरे, पीले और लाल रंग की पट्टियां थी। ऊपर की हरी पट्टी में सफेद रंग के कमल के 8 फूल थे। बीच की पीली पट्टी में नीले रंग से वन्दे मातरम् लिखा हुआ था। सबसे नीचे की लाल पट्टी में सफेद रंग से चांद और सूरज बने थे।
ऐसा था निर्वासित क्रांतिकारियों द्वारा पेरिस में फहराए गए झंडे का रूप
निर्वासित कर दिए गए मैडम भीकाजी कामा और उनके कुछ क्रांतिकारी साथियों ने वर्ष 1907 में भारतीय स्वाधीनता संग्राम का दूसरा नया झंडा प्रस्तावित किया। पेरिस में फहराए गए भारतीय राष्ट्र ध्वज के इस दूसरे स्वरूप में केसरिया, पीले और हरे रंग की तीन पट्टियां थी। बीच में वन्दे मातरम् लिखा था, वहीं इसमें चांद और सूरज के साथ 8 सितारे भी शामिल किए गए।
1917 में एनी बेसेंट और लोकमान्य तिलक ने फहराया था यूनियन जैक वाला झंडा
10 साल बाद 1917 में देश के लिए एक और नया झंडा प्रस्तावित किया गया। डॉ. एनी बेसेंट और लोकमान्य तिलक द्वारा फहराए गए इस झंडे में लाल रंग की पांच और बीच-बीच में हरे रंग की चार पट्टियां थी। झंडे की दाईं ओर काले रंग में त्रिकोण बना थी। वहीं, बाईं तरफ के कोने में यूनियन जैक भी था। इसके अलावा चांद और एक तारे के साथ, इसमें सप्तऋषियों को दर्शाते सात तारे भी शामिल किए गए।
1921 में महात्मा गांधी ने दिया नया राष्ट्र ध्वज
साल 1921 में एक बार फिर भारत के राष्ट्रीय ध्वज में बदलाव किए गए। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सत्र के दौरान बेजवाड़ा (अब विजयवाड़ा) में आंध्र प्रदेश के एक व्यक्ति ने महात्मा गांधी को एक झंडा दिया, जो हरे और लाल रंग का था। गांधीजी को यह झंडा पसंद आया, लेकिन उन्होंने इसमें थोड़ा बदलाव करते हुए सबसे ऊपर सफेद रंग की एक पट्टी और जुड़वा दी। साथ ही देश के विकास को दर्शाने के लिए बीच में चलता हुआ चरखा भी दर्शाया गया।
1931 में फिर चौथी बार बदला राष्ट्रीय ध्वज का प्रारूप
1931 में प्रस्तावित स्वाधीनता संग्राम के प्रतीक ध्वज का पांचवां स्वरूप कुछ अलग ही था। इसमें सबसे ऊपर केसरिया, बीच में सफेद और नीचे हरे रंग की पट्टी थी तो बीच की सफेद पट्टी में राष्ट्र की प्रगति का प्रतीक चरखे का पूरा चित्र छोटे आकार में चरखा दर्शाया गया। इंडियन नेशनल कांग्रेस ने झंडे के इस नए रूप को आधिकारिक तौर पर अपनाया था।
ये है 22 जुलाई 1947 में संविधान सभा की बैठक में स्वीकार्य आजाद भारत का राष्ट्र ध्वज