Sengol: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 28 मई को देश के नए संसद भवन का उद्घाटन करेंगे। इस दौरान पीएम मोदी मोदी तमिलनाडु के विद्वान सेंगोल (Sengol) सौंपेंगे। जिसे प्रधानमंत्री नए संसद भवन के अंदर स्पीकर की सीट के पास स्थापित करेंगे। इस सेंगोल का इतिहास देश की आजादी से जुड़ा है। 15 अगस्त 1947 को जब देश आजाद हुआ तो सेंगोल को पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को सौंपा गया था।
नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह से कांग्रेस समेत 19 दलों ने बहिष्कार किया है। राष्ट्रपति के हाथों नई संसद का उद्घाटन न कराए जाने को लेकर विपक्षी दलों ने बीजेपी और केंद्र सरकार पर देश के सर्वोच्च पद का अपमान करने का आरोप लगाया है। फिलहाल, मोदी सरकार ने पंडित नेहरू का नाम आगे बढ़ाकर कांग्रेस को घेर लिया है। साथ ही सेंगोल के जरिए हिंदुत्व को भी धार देने की कोशिश की है।
अब आइए जानते हैं सेंगोल का मतलब क्या है? इसकी अहमियत क्या है? तमिलनाडु से क्या संबंध है? अब तक सेंगोल कहां था? खोज कैसे हुई? हिंदुत्व से क्या संबंध है? इससे पहले जानते हैं कि अमित शाह ने क्या कहा?
The ‘Sengol’, represents the values of fair and equitable governance.
It will shine near the Lok Sabha Speaker's podium as a national symbol of the Amrit Kaal, an era that will witness the new India taking its rightful place in the world.#SengolAtNewParliament pic.twitter.com/4BCMkLZ3fm
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शाह बोले- ऐतिहासिक परंपरा होगी पुनर्जीवित
अमित शाह ने सेंगोल की तस्वीर ट्वीट करते हुए लिखा कि सेंगोल निष्पक्ष और न्यायसंगत शासन के मूल्यों का प्रतिनिधित्व करता है। यह अमृत काल के राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में लोकसभा अध्यक्ष के आसन के पास चमकेगा। उन्होंने बुधवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए कहा कि सेंगोल की स्थापना के लिए संसद भवन से उपयुक्त और पवित्र स्थान कोई और हो ही नहीं सकता। इसलिए जिस दिन नए संसद भवन को देश को समर्पित किया जाएगा। एक ऐतिहासिक परंपरा पुनर्जीवित होगी। इसके पीछे युगों से जुड़ी हुई एक परंपरा है।
वजन 800 ग्राम, ऊंचाई 5 फीट और शीर्ष पर नंदी विराजमान
ऐतिहासिक राजदंड यानी ‘सेंगोल’, एक तमिल शब्द सेम्मई से आया है। जिसका अर्थ धार्मिकता है। इसका वजन 800 ग्राम है और इस पर सोना चढ़ाया गया है। इसकी ऊंचाई पांच फीट है और इसके ऊपर एक ‘नंदी’ (भगवान शिव का बैल) है, जो न्याय का प्रतीक है।
आजादी से 15 मिनट पहले नेहरु को सौंपा गया राजदंड
15 अगस्त 1947 को जब अंग्रेजों ने अपनी सत्ता हस्तांतरित की तो सेंगोल को भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को सौंपा गया था। इसके अस्तित्व में आने की कहानी भी दिलचस्प है। ब्रिटिश भारत के अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने पंडित नेहरू से पूछा कि जब देश को अंग्रेजों से आजादी मिलेगी तो इसके लिए क्या चिन्ह दिया जाए, जो हमेशा याद किया जाए। नेहरू ने भारत के अंतिम गवर्नर जनरल सी राजगोपालाचारी से सलाह ली।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, राजगोपालाचारी ने नेहरू को सेंगोल के बारे में बताया था। उन्होंने कहा कि तमिल परंपरा के अनुसार जब राजा गद्दी संभालता है तो सर्वोच्च पुजारी नए राजा को राजदंड सौंपता है। यह परंपरा चोलों के शासनकाल से चली आ रही है और राजदंड सत्ता के हस्तांतरण को चिह्नित करने के लिए एकदम सही होगा।
आखिरकार 14 अगस्त 1947 को रात 11:45 बजे यानी आजादी मिलने से 15 मिनट पहले थिरुवदुथुरै अधीनम मठ के राजगुरु ने राजदंड माउंटबेटन को दिया। इसके बाद राजदंड की पूजा पाठ हुई। विधिवत पूजन के बाद राजदंड सेंगोल को पहले पीएम नेहरू को सौंपा गया।
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प्रयागराज के संग्रहालय में मिला सेंगल
सत्ता हस्तांतरण के बाद सेंगोल को इलाहाबाद के आनंद भवन में रख दिया गया था। यह नेहरु का घर था। 60 के दशक में आनंद भवन को संग्रहालय में तब्दील कर दिया गया। 1978 में कांचीपुरम मठ प्रमुख ने सेंगोल और उसके आसपास की पूरी घटना पर एक किताब लिखी। करीब डेढ़ साल पहले पीएम मोदी को सेंगल और इतिहास में इसके महत्व के बारे में बताया गया। तब तक कोई नहीं जानता था कि सेंगोल को कहां रखा गया है।
इसकी पड़ताल कराई गई। संग्रहालयों से लेकर महलों तक हर जगह तलाशी ली गई। सेंगोल को खोजने में तीन से चार महीने लग गए। ऐतिहासिक राजदंड की तलाश तब खत्म हुई जब इलाहाबाद संग्रहालय ने सरकार से संपर्क किया और उसके पास होने की जानकारी दी।
अधीनम संप्रदाय के 20 पुजारी पहुंचेंगे दिल्ली
गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि नई संसद में स्पीकर की सीट के पास सेंगोल स्थापित किया जाएगा, क्योंकि यह सांस्कृतिक परंपराओं को आधुनिकता से जोड़ेगा। उन्होंने यह भी कहा कि नई संसद में राजदंड स्थापित होने से इसके ऐतिहासिक महत्व को भी लोग जान सकेंगे। नई संसद के उद्घाटन समारोह में भाग लेने के लिए 28 मई को अधीनम संप्रदाय के कुल 20 पुजारी राजधानी दिल्ली पहुंचेंगे।
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