Health insurance sector companies cashless treatment in hospitals: हाल ही में एक ऐसा फैसला हुआ है जिससे स्वास्थ्य बीमा के क्षेत्र में क्रांति आ सकती है। यह फैसला किसी भी अस्पताल में कैशलेस इलाज का है। यानी अब मरीज को दर दर भटकना नहीं होगा। अगर बीमा है तो अस्पताल भर्ती करेगा ही। पॉलिसी होल्डर्स के हित में जनरल इंश्योरेंस काउंसिल (GIC) ने यह फैसला लिया है। आखिर क्या है यह फैसला और क्यों लिया गया इसे। इस बारे में आंकड़े क्या कहते हैं। क्यों इसे हेल्थ इंश्योरेंस के क्षेत्र में क्रांतिकारी कदम कहा जा रहा है।
भारत जैसे देश में अगर लोगों को सबसे ज्यादा परेशानी होती है तो वह बीमारी की स्थिति में इलाज कराने में। इसकी वजह यह है कि देश का एक बड़ा तबका गरीब है और महंगा इलाज अफोर्ड नहीं कर सकता है। बहुत से लोग इलाज के अभाव में दम तोड़ देते हैं। ठीक ठाक कमाई करने वाले परिवारों को भी गंभीर बीमारियां तोड़कर रख देती हैं। कभी कभी तो उनकी पूरी जमा पूंजी इलाज में समाप्त हो जाती है और परिवार भारी कर्ज के बोझ तले दब जाता है।
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100 प्रतिशत कैशलेस इलाज
कहा जा रहा है कि इस कदम से अगर आपके पास किसी भी तरह का हेल्थ इंश्योरेंस है तो अस्पताल में 100 प्रतिशत कैशलेस इलाज करा सकते हैं। हेल्थ इंश्योरेंस कपनियों ने तय किया कि 25 जनवरी से देशभर में 100 प्रतिशत कैशलेस इलाज होगा। यह पहल इंश्यूरेंस रेगुलेटरी एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (आईआरडीएआई) ने लिया है। अब सभी इंश्योरेंस कंपनियां इसे लागू करने जा रही हैं।
इलाज के बाद होगा भुगतान
इसके पहले इलाज कराने के लिए एडवांस पैसा देना होता था। लेकिन अब ऐसी दिक्कत नहीं आएगी। किसी भी अस्पताल में कैशलेस इलाज पर सहमति बनी है। बीमार होने पर आप अस्पताल जाकर इलाज करा सकते हैं और इलाज का पैसा अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद जितने पैसे का आपने इंश्योरेंस कराया होगा वह इंश्योरेंस कंपनी अस्पताल को देगी।
पहले क्या होती थी दिक्कत
मान लीजिए कि आपने जहां इलाज कराया वह अस्पताल कंपनी के नेटवर्क में नहीं है तो पॉलिसीहोल्डर पूरा पैसा भरेगा और बाद में बीमा कंपनी के सामने रीमबर्शमेंट कराना होगा। अस्पताल को अपने नेटवर्क में नहीं आने के बावजूद भी बीमा कंपनी को इलाज का भुगतान करना पड़ेगा। हालांकि इसके लिए कुछ नियम बनाए गए हैं।
इसके पहले पॉलिसि होल्डर्स तभी इस सुविधा का लाभ उठा सकते थे जब उनकी इंश्योरेंस कंपन के नेटवर्क में वह अस्पताल होता था जहां वे इलाज करा रहे हैं। ऐसे में उन्हें अपनी जेब से पैसा भरना होता था। ग्रामीण इलाकों के ज्यादातर अस्पतालों का इंश्योरेंश कंपनी के साथ टाईअप नहीं होता था जिससे लोगों को इलाज कराने में परेशानी होती थी।
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