Sanjeev kumar Death Anniversary: 70-80s के जाने-माने अभिनेता संजीव कुमार आज भले ही हमारे बीच नहीं हैं लेकिन, गुजरे जमाने में सिनेमाघरों में उनका सिक्का चलता था. उनका अभिनय हर दौर में मिसाल माना जाता है. वह ऐसे एक्टर थे, जो किसी भी भाव को आसानी से दिखा सकते थे. उन्होंने पर्दे पर हर तरह के रोल निभाए हैं. इसमें रोमांटिक, से लेकर पिता और कॉमिक रोल तक शामिल हैं. उन्होंने उम्रदराज रोल भी प्ले किए. मौत से पहले भी अभिनेता काम करते रहे थे, जिस दिन उनका निधन हुआ वह उसके अगले दिन लंदन जाने वाले थे. लेकिन, किस्मत को तो कुछ और ही मंजूर था. वह 6 नवंबर, 1985 को दुनिया को अलविदा कह गए. ऐसे में आज उनकी पुण्यतिथि है. इस मौके पर आपको उनकी उस आखिरी रात के बारे में बता रहे हैं कि क्या-क्या हुआ.
संजीव कुमार का जन्म 9 जुलाई 1938 को गुजरात के सूरत में हुआ था. उनका असली नाम हरिहर जेठालाल जरीवाला था. उन्हें बचपन से ही एक्टिंग का शौक था और कम उम्र में ही फिल्मों में करियर बनाने का ठान लिया था. वह अपने काम के प्रति काफी ईमानदार थे और जिद्दी थे. मौत से दो दिन पहले ही एक्टर ने अपनी फिल्म ‘राही’ की डबिंग की थी. उन्होंने डायरेक्टर रमन कुमार से इसके लिए जिद्द की थी क्योंकि वह राजी नहीं थे. टीवी किस्सा के अनुसार, रमन ने बताया था कि वह इसकी डबिंग के लिए तैयार नहीं थे लेकिन, संजीव कुमार खुद जिद्द पर अड़ गए थे तो उन्हें झुकना पड़ा था. हालांकि, इस फिल्म को संजीव के निधन के दो साल बाद 29 मई, 1987 को रिलीज किया गया.
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संजीव कुमार ने छोटी बहन को किया था आखिरी फोन कॉल
किस्सा टीवी के अनुसार, संजीव कुमार ने निधन से करीब 8 दिन पहले ही बहन गायत्री से फोन पर बात की थी. वह इस दौरान काफी इमोशनल दिखे थे, दोनों के बीच करीब आधे घंटे की बात हुई थी. गायत्री के साथ उनके ये आखिरी बात थी. हालांकि, अब वह भी इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन, उन्होंने अपने एक इटरव्यू में बताया था कि उनके भाई बहुत इमोशनल थे. उन्होंने बहन को सलाह दी थी कि वह अपनी सेहत और परिवार का ध्यान रखें. उन्हें ये भी कहा था कि वह दूसरे पर डिपेंड ना रहें. क्योंकि उनका मानना था कि कब ऐसा वक्त आ जाए कि दुनिया का सामना अकेले करना पड़े.
संजीव कुमार की आखिरी लाइन…
निधन से एक दिन पहले ही संजीव कुमार ने 5 नवंबर, 1985 को आर.के.नैय्यर की फिल्म ‘कत्ल’ की डबिंग पूरी की थी. इसकी डबिंग जुहू के सुमित थिएटर में की गई थी. इसके बाद उन्होंने प्रकाश मेहरा से उनकी अगली फिल्म ‘इंसान की औलाद’ पर भी चर्चा की थी. फिर रात के करीब साढ़े सात बजे तक उन्होंने अपनी डबिंग पूरी की थी. इस दौरान उनकी आखिरी लाइन ‘कब्र के सिरहाने घास नहीं उगती बरखुरदार’ थी. इसके अगले दिन यानी कि 6 नवंबर को वो घर पर ही रहना चाहते थे क्योंकि उनकी मां की पुण्यतिथि थी. इसलिए वह 6 नवंबर को घर पर ही थे.
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6 नवंबर, 1985 को क्या-क्या हुआ…?
इसके बाद 6 नवंबर का वो दिन भी संजीव कुमार की जिंदगी में आ गया, जिसे आज तक मनहूस माना जाता है. उस दिन वह सुबह 7 बजे ही उठ गए थे. वह विचारों में खोए हुए थे. वह अपनी मां को याद कर रहे थे. बचपने को याद कर रहे थे. उनका उस समय कुछ खाने का मन नहीं था. उनका नौकर, जिसे वह पंडित कहते थे. पंडित के काफी कहने पर एक्टर ने चाय और बिस्किट खाए. थोड़ी देर बाद उनसे मिलने के लिए के गुरू और मेंटोर पी.डी.शिनॉय आ गए थे. उनको कुछ रुपये लौटाने थे. इसके बाद उनका मूड कुछ अच्छा हुआ. फिर कुछ देर बाद सुभाष गई भी पहुंच गए थे. लंदन जाने पर चर्चा की. चूंकि लंदन जाना था तो पंडित को 2 हजार रुपये दिए ताकि उसे कोई समस्या ना हो. अब संजीव कुमार की बात खत्म हो चुकी थी. लेकिन, इसी के साथ ही उनकी तबीयत बिगड़ने लगी थी. उनका जी मचलने लगा. करीब 12.30 बजे उनको उल्टी हुई.
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बाथरूम में गिरे पड़े थे संजीव कुमार
संजीव कुमार की बिगड़ती तबीयत को देखकर उनके सेक्रेटरी ने डॉ. गांधी को फोन लगाया. हालांकि वह कहते रहे कि उनकी तबीयत ठीक है. उन्होंने कहा कि उन्हें बस नहाना है क्योंकि उन्होंने बताया था कि सचिन पिलगांवकर आने वाले थे. इतना कहने के बाद वह अपने बेडरूम में चले गए. फिर सचिन और डायरेक्टर सतपाल भी पहुंच गए. काफी देर हो गई सभी पहुंच गए थे. डॉक्टर गांधी भी आ गए थे. उन्हें बाथरूम में 45 मिनट गुजर गए थे. फिर सचिन को किसी अनहोनी का शक हुआ. संजीव को डॉक्टर्स ने कभी दरवाजा बंद ना करने की सलाह दी थी तो उनके बाथरूम का दरवाजा खुला था. सचिन ने उनके बाथरूम में झांका तो वह फर्श पर पड़े थे. इसे देखकर वह चीख पड़े. इसी दौरान डॉक्टर ने चैक किया और उन्होंने वहीं मृत घोषित कर दिया.
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