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HAQ MOVIE REVIEW: तलाक तलाक तलाक! क्या ये तीन शब्द कहने से खत्म हो जाती है पति की जिम्मेदारी? महिलाओं के ‘हक’ करती है बात

Haq Movie Review: 'हक' मूवी रिव्यू: शाह बानो केस के प्रेरित हक साल की सबसे दमदार फिल्म है, महिलाओं का संघर्ष, धर्म और कानून तीनों का ऐसा मिश्रण को जो फिल्म को सनसनीखेज बनाने की बजाय संवेदनशील बनाता है.

Author Written By: Geetam Shrivastava Author Published By : Rahul Yadav Updated: Nov 5, 2025 15:10
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'हक' मूवी रिव्यू.
Movie name:Haq
Director:Suparn S Varma
Movie Cast:Emraan Hashmi, Yami Gautam

Haq Movie Review In Hindi: ‘कभी कभी सिर्फ मोहब्बत काफी नहीं होती, इज्जत भी जरूरी होती है…’, फिल्म ‘हक’ का ये डायलॉग मूवी का सार है, फिल्म का एक सीन है जब शाजिया बानो अपने शौहर अब्बास के घर शादी करके पहुंचती है तो देखती है कि घर में तीन कुकर हैं पूछने पर बताया जाता है कि घर में एक कुकर खराब हो जाए तो अब्बास दूसरा ले आते हैं किसी कुकर की रबड़ ठीक नहीं है तो किसी कुकर की सीटी ठीक नहीं है यह एक प्रतीक है इस बात का कि घर में अब्बास भी अपनी बीवी को इसी तरह से रखने वाला है.

‘हक’ सिर्फ एक फिल्म नहीं है ये आवाज है उन तमाम औरतों और लड़कियों कि जो अपनी हक की आवाज उठा रही हैं और सफल हुई हैं, फिल्म अपनी बात साफ और सीधी तरह से रखती है बिना किसी लागलपेट के.

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फिल्म की कहानी –

फिल्म शुरू होती है सांकी नाम के उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव से, कहानी शाजिया बानो की है जिसकी शादी अब्बास से हुई है, उसके तीन बच्चे हैं, शुरुआत में सब ठीक रहता है लेकिन कहानी में मोड़ तब आता है जब अब्बास दूसरी शादी करके नई दुल्हन को घर ले आता है. फिर मनमुटाव होता है और बात तलाक तक पर आ जाती है और यहां से शुरू होती है शाजिया बानो की असली लड़ाई, दो लोगों के बीच की लड़ाई कैसे घर से लेकर मोहल्ले और फिर कोर्टरूम तक पहुंचती है और कैसे शाजिया बानो अपनी लड़ाई में कामयाब होती है फिल्म इसी पर बात करती है.

कहानी सच्ची घटनाओं से प्रेरित–एक तलाक का मुद्दा कैसे सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले पर पहुंचता है. इसी पर कहानी अपने ढंग से कहती है. सबसे बड़ी बात ये कि कहनी ये भी बताती है कि धर्म और कानून दोनों एक ही बात कहता है लेकिन लोग सहूलियत के हिसाब से सिलेक्टिव हो जाते हैं.

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यामी गौतम ने की कमाल की एक्टिंग-

फिल्म ‘हक’ में यामी गौतम की एक्टिंग कमाल की है. उन्होंने अपने करियर की अब तक का सबसे शानदार परफॉर्मेंस दी है. फिल्म में शाजिया के किरदार को लेकर उनकी पकड़ और रिसर्च साफ परदे पर दिखती है. फिल्म में इमरान हाशमी ने भी बेहतरीन काम किया है, इसके अलावा वर्तिका सिंह, राहुल मित्रा, शीबा चड्डा, विजय विक्रम सिंह, दानिश हुसैन सबने अच्छा काम किया है.

क्लाइमेक्स है सबसे दमदार

फिल्म के क्लाइमेक्स में इमरान का किरदार कोर्ट हियरिंग के दौरान अपनी दलील पेश करता है. उसे सुनकर लगता है अब कहे जाने के लिए क्या ही बचता है लेकिन उसके बाद नेहले पर देहला पड़ता है यामी गौतम का डायलॉग और उस किरदार की दलील, ये पूरा सीन बहुत दमदार है. ये पूरा सीन हर लिहाज से बहुत दमदार है. अंत होते-होते ये फिल्म अंदर तक झकझोर देती है. खास बात ये है कि अब्बास के किरदार को बहुत बेलेंस रखा गया है, ग्रे शेड वाला ये टिपिकल विलेन नहीं है और यही ट्रीटमेंट वर्तिका सिंह के किरदार को दिया गया. जिन्होंने सायरा यानी अब्बास की दूसरी बीवी का किरदार निभाया है इसलिए फिल्म कई दफा खूबसूरत लगती है, खासतौर पर जब शाजिया को कोई भी सामान देने से इनकार कर देता है. तब सायरा का आना और शाजिया के दरवाजे पर सब्जी की टोकरी रख जाना जैसे सीन्स फिल्म में सौतन के इमोशन और इंसानियत के बीच के पुल को मजबूत करते हैं और इन्हीं वजहों से फिल्म क्लासिक और खूबसूरत बन जाती है.

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फिल्म का डायरेक्शन

फिल्म के डायरेक्टर सुपर्ण वर्मा ने इस बार असाधारण काम किया है, मुद्दा संवेदनशील है और बहुत परिपक्वता मांगता है ऐसे में अपनी बात मजबूती से रखना और किसी प्रोपेगैंडा का हावी ना होने देना ये कमाल है, उतनी ही तारीफ फिल्म की राइटर रेशू नाथ की भी की जानी चाहिए, फिल्म की स्क्रप्ट और स्क्रीनप्ले फिल्म को एक मजबूत नींव देती है जिससे फिल्म की मुद्दे की पकड़ मजबूत होती है.

कई लोग ऐसे हैं जो शाह बानो केस के बारे में सतही तौर पर जानते होंगे लेकिन फिल्म में छोटी से छोटी बात को बारिकी से बताया है, जब फिल्ममेकर कहानी कहने की कला को जानता है, तो उसे सनसनीखेज हथकंडो की जरूरत नहीं पड़ती, सुपर्ण वर्मा ने ये साबित कर दिया है.

फिल्म ‘हक’ बॉलीवुड के शानदार कोर्टरूम ड्रामे की लिस्ट में एक और नाम जोड़ती है. साथ ही फिल्म बिना किसी बेवजह के शोर के बड़ी सादगी से कई सवाल भी खड़े करती है जो 1985 में जितने प्रासंगिक थे आज भी उतने ही हैं. हक जैसी फिल्मों को अच्छी या बुरी से उठकर जरूरी फिल्मों की श्रेणी में रखा जाना चाहिए.

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First published on: Nov 05, 2025 02:50 PM

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