Story Behind Bullet Train Explosion: जापानी एक्शन-थ्रिलर फिल्म बुलेट ट्रेन एक्सप्लोजन 1975 में रिलीज फिल्म द बुलेट ट्रेन की रीमेक और सीक्वल होने के साथ-साथ 1994 में आई फिल्म स्पीड से प्रेरित है। इस फिल्म में जापानी रेलवे कर्मचारियों का कोआर्डिनेशन, डेडिकेशन नजर आता है। वहीं, किरदारों की गहराई और सांसें रोक देने वाला क्लाईमैक्स दर्शकों को 2.5 घंटे की लंबी अवधि तक फिल्म से बांधे रखता है। यह नेटफ्लिक्स पर हिंदी डबिंग में उपलब्ध है।
बुलेट ट्रेन के इर्द-गिर्द घूमती है कहानी
फिल्म की कहानी जापात के शिन आओमोरी रेलवे स्टेशन से से टोक्यो जा रही बुलेट ट्रेन हायाबुसा नंबर 601E5 से शुरू होती है। ट्रेन के कंडक्टर कज़ुया ताकाइची और ड्राइवर चिका मात्सुमोतो के नेतृत्व में कुछ ही पल में ट्रेन 120 की रफ्तार पकड़ लेती है। जल्द ही जेआर ईस्ट मुख्यालय को एक अनाम कॉलर से फोन आता है। फोन पर ट्रेन में बम होने की धमकी देकर कहा जाता है कि बम ट्रेन के 100 किमी/घंटा से कम गति होने पर फट जाएगा। फोन करने वाला आतंकी 100 बिलियन येन (करीब 71 करोड़ USD) की फिरौती मांगते हुए एक अनोखी शर्त रखता है।
क्राउडफंडिंग के जरिए जुटाई जाए फिरौती
ट्रेन में बम की धमकी देने वाले फिरौती की मांग रखते समय शर्त रखता है कि 71 करोड़ USD न तो जापान सरकार से चाहिए और न ही रेलवे से, उसकी यह रकम जापान की जनता से क्राउडफंडिंग के जरिए जुटाई होनी चाहिए। कॉलर अपनी गंभीरता साबित करने के लिए एक मालगाड़ी को उड़ा देता है। जेआर ईस्ट तुरंत हायाबुसा 60 के रास्ते में आने वाली सभी ट्र्रेनों को रोक देता है, क्योंकि धमकी के चलते ट्रेन रास्ते में आने वाले स्टेशनों पर भी नहीं रुक पाएगी। ट्रेन चालक दल को 120 किमी/घंटा से अधिक गति बनाए रखने का आदेश दिया जाता है।
ऐसे चलता है बुलेट का रेस्क्यू ऑपरेशन
बुलेट में बम होने की जानकारी जैसे ही यात्रियों को मिलती है तो वहां अफरातफरी मच जाती है। उधर, टोक्यो की तरफ बढ़ती ट्रेन को बम से बचाने के लिए रेलवे कर्मी अलग-अलग योजनाओं पर काम करते हैं जो एक के बाद एक फेल होती रहती है। इसी दौरान ट्रेन में विभिन्न यात्रियों की कहानियां समानांतर चलती हैं। ये किरदार संकट के दौरान अलग-अलग प्रतिक्रियाएं देते हैं, कुछ स्वार्थी तो कुछ सहयोगी।
रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान बड़ा ट्विस्ट
बुलेट को बम से बचाने की योजना में सबसे बड़ा ट्विस्ट तब आता है, जब पता चलता है कि बुलेट में बम उसी ट्रेन में मौजूद एक किशोरी ने ही प्लांड करवाया है। उसके दिल के मॉनिटर ही बम का डेटोनेशन लिंक है। वह कहती है कि अगर उसका दिल रुक जाए तो बम डीएक्टिवेट हो जाएगा। दुविधा तब होती है जब कोई भी किशोरी को मारने के लिए तैयार नहीं होता। जबरदस्त क्लाईमैक्स के साथ कहानी का अंत होता है।