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Dhurandhar Movie Review: देश के जख्म और बहादुरी का सिनेमाई प्रमाण है ‘धुरंधर’

Dhurandhar Movie Review: रणवीर सिंह की फिल्म 'धुरंधर' की रिलीज का इंतजार खत्म हो गया है. मूवी सिनेमाघरों में आते ही छा गई है. ये फिल्म नहीं बल्कि देश के जख्म और बहादुरी का सिनेमाई प्रमाण है. अगर आप भी इस फिल्म को देखने का प्लान कर रहे हैं तो चलिए बताते हैं इसके बारे में.

Author Edited By : Rahul Yadav
Updated: Dec 5, 2025 16:38
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Dhurandhar मूवी रिव्यू.

निर्देशक/लेखक: आदित्य धर
कलाकार: रणवीर सिंह, संजय दत्त, अक्षय खन्ना, आर. माधवन, अर्जुन रामपाल, सारा अर्जुन, राकेश बेदी
अवधि: 196 मिनट
रेटिंग – 4

कुछ फिल्में कहानी कहती हैं, और कुछ फिल्में देश के जख्म छूकर उसकी आत्मा तक पहुँच जाती हैं—धुरंधर दूसरी श्रेणी में आती है. यह फिल्म जासूसी, राजनीति और अंडरवर्ल्ड की दुनिया दिखाती है, लेकिन इसका असली प्रभाव तब उभरता है जब स्क्रीन पर कुछ वास्तविक फुटेज की भी झलकियां दिखती है. इन फुटेज को देखकर सिनेमा अचानक वास्तविकता बन जाता है. एक पल को दर्शक भूल जाता है कि वह फिल्म देख रहा है, उसे लगता है जैसे वह खुद इतिहास को अपनी आँखों के सामने दोबारा घटित होते देख रहा हो.

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इस वास्तविकता के बीच IB चीफ़ अजय सान्याल (आर. माधवन) जैसे किरदार उभरते हैं—दृढ़, शांत और रणनीतिक. उनका किरदार दर्शक को यह भरोसा देता है कि अंधेरे में कहीं न कहीं ऐसे लोग मौजूद हैं जो देश की रक्षा के लिए चौबीसों घंटे चुपचाप लड़ते हैं. माधवन की स्क्रीन प्रेज़ेंस हर फ्रेम में विश्वास और गंभीरता भर देती है. इसके ठीक विपरीत, रणवीर सिंह का हमजा, एक जीवित विस्फोट है. उनका किरदार टूटा हुआ भी है, खतरनाक भी, और देश के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार भी. रणवीर का यह परिवर्तन, गुस्से से भरे युवा से लेकर दुश्मन के दिल में घुसने वाले हथियार तक, फिल्म की जान है. दूसरे हाफ में उनका जलवा इतना तीव्र हो जाता है कि थिएटर खुद एक युद्धभूमि जैसा महसूस होने लगता है.

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अक्षय खन्ना का रेहमान डकैत-खतरनाक शांति और जहरीली बुद्धिमत्ता का मिश्रण है. संजय दत्त “द जिन्न” के रूप में अडिग ताकत लेकर आते हैं. अर्जुन रामपाल का मेजर इक़बाल अपने साइलेंट डेंजर के साथ साज़िश का दूसरा अध्याय खोलते हैं. सारा अर्जुन का किरदार कहानी में भावनात्मक परत जोड़ता है. लेकिन फिल्म की असली ताकत है इसका वर्ल्ड-बिल्डिंग और रीएलिज़्म. असली फुटेज को कहानी में जिस तरह पिरोया गया है, उससे यह समझ आता है कि आतंक सिर्फ घटनाएँ नहीं, बल्कि एक जारी युद्ध है, जो कभी खत्म नहीं होता.

2001 का संसद हमला, 26/11 का ताज होटल पर हमला, और वैश्विक आतंक के वीडियो, आदित्य धर ने इस फुटेज को सिर्फ दिखाया नहीं, बल्कि कहानी के भीतर एक भावनात्मक धड़कन की तरह बुना है. संसद हमले की गोलियों की आवाज़, ताज होटल के धुएं से भरे फ्रेम, ये सिर्फ दृश्य नहीं, बल्कि यादें हैं, घाव हैं, और यह चेतावनी भी कि आतंक किसी भी समय हमारे दरवाज़े पर दस्तक दे सकता है. यही कारण है कि फिल्म का तनाव, उसका दर्द और उसका देशभक्ति भाव और भी सच्चा महसूस होता है. इन दृश्यों के कारण फिल्म का हर मोड़, हर योजना और हर खतरा ज्यादा असली, ज्यादा तीव्र और ज्यादा ज़िम्मेदार महसूस होता है.

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आदित्य धर का निर्देशन इस फिल्म की सबसे बड़ी पूँजी है. वह कहानी को भव्यता से शुरू कराते हैं, लेकिन जैसे-जैसे कथा बढ़ती है, वह दर्शक को राजनीति, विश्वासघात, भावनाओं और खुफिया ऑपरेशनों की घुमावदार दुनिया में धीरे-धीरे धकेलते जाते हैं. 196 मिनट की लंबाई के बावजूद फिल्म का प्रवाह लगातार बना रहता है. हर दृश्य सावधानी से रचा गया है एऔर कई दृश्य तो सीधे रोंगटे खड़े कर देते हैं.

‘धुरंधर’ का बैकग्राउंड स्कोर

फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर भी अद्भुत है. यह सिर्फ संगीत नहीं, बल्कि एक भावनात्मक चीख है जो आतंक, डर और उम्मीद को एक साथ जगाती है. खासकर वे फुटेज सीक्वेंस जहाँ वास्तविक आतंक की छवियाँ दिखाई जाती हैं, BGM वहां अंगारों की तरह भड़क उठता है.

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हिंसा सीमित है, पर दर्द गहरा फिल्म दर्शक को यह दिखाती है कि देश की सुरक्षा की इस लड़ाई में हर निर्णय की कीमत होती है. यही भावनाएं इंटरवल तक आते-आते गले में एक गांठ बांध देती हैं. दूसरा हाफ राजनीतिक चालों, अंडरवर्ल्ड की ताकत और हमज़ा की हौसलेमंद योजनाओं के साथ और भी तीव्र हो जाता है. निर्माण स्तर पर ज्योति देसपांडे, लोकेश धर और आदित्य धर ने B62 Studios और Jio Studios के साथ मिलकर एक ऐसा संसार रचा है जो बड़े पर्दे पर ठोस, सजीव और प्रामाणिक महसूस होता है. सेट्स, एक्शन, जासूसी तकनीक और भावनात्मक टोन, सब कुछ शानदार तालमेल में है.

‘धुरंधर’ पर फाइनल वर्डिक्ट

अंत में, धुरंधर सिर्फ एक फिल्म नहीं बल्कि यह वह स्मरण है जो हमें बताता है कि भारत ने क्या सहा है और उसके वीर कैसे लड़ते हैं. असली फुटेज ने इसे एक ऐसी ताकत दे दी है कि इसे एक बार नहीं… दो बार देखना बिल्कुल बनता है. पार्ट-2 का इंतजार अब सिर्फ उत्सुकता नहीं, एक जरूरत जैसा लगता है.

First published on: Dec 05, 2025 04:38 PM

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