---विज्ञापन---

‘हम दो, हमारे दो’ सोच को क्यों चुनौती दे रहे CM?

Bharat Ek Soch : दक्षिण भारत के दो मुख्यमंत्री 'हम दो, हमारे दो' सोच को चुनौती दे रहे हैं। आंध्र प्रदेश के सीएम एन. चंद्रबाबू नायडू ने युवाओं से दो से अधिक बच्चे पैदा करने की अपील की तो तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने कहा कि हम 16 बच्चों का लक्ष्य क्यों न रखें?

Edited By : Deepak Pandey | Updated: Oct 27, 2024 19:06
Share :
Bharat Ek Soch
Bharat Ek Soch

Bharat Ek Soch : एक ऐसा मुद्दा, जिसका ताल्लुक हर महिला या पुरुष से है। हर समाज, शहर, राज्य, देश और दुनिया से है। दरअसल, ये मुद्दा है खुशहाल भविष्य के लिए कितने बच्चे अच्छे? इसका ट्रिगर प्वाइंट है- दक्षिण भारत के राज्यों से आने वाले दो मुख्यमंत्रियों का बयान। एक हैं आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू, जो युवाओं से दो से अधिक बच्चे पैदा करने की अपील कर रहे हैं तो दूसरे हैं तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन, जो कह रहे हैं कि हम 16 बच्चों का लक्ष्य क्यों न रखें? अब सवाल उठता है कि दक्षिण भारत के दो मुख्यमंत्री दशकों से चली आ रही ‘हम दो, हमारे दो, वाली सोच को चुनौती क्यों दे रहे हैं? आखिर दक्षिण भारत के राज्य आबादी बढ़ाने के मामले में चाइना जैसी बातें क्यों कर रहे हैं? जनसंख्या बढ़ोतरी के मुद्दे पर दक्षिण भारत के राज्यों की चुनौतियां चाइना जैसी हैं या उससे अलग? कभी सख्ती से वन चाइल्ड पॉलिसी लागू करने वाला चाइना पिछले कुछ वर्षों से आबादी बढ़ाने पर जोर क्यों दे रहा है? आबादी में बढ़ोतरी के मोर्चे पर उत्तर भारत और दक्षिण भारत दोनों अलग ध्रुवों पर खड़े क्यों दिख रहे हैं? क्या भविष्य में जनसंख्या के मामले में भारत की स्थिति भी चीन, जापान और यूरोपीय देशों जैसी हो सकती है, जो युवा आबादी के लिए तरस रहे हैं? कुछ अपनी बुजुर्ग आबादी के बोझ से बेहाल तो कुछ युवा बेरोजगारों से परेशान, इस Demographic Imbalance का इलाज क्या है?

यह भी पढ़ें : बीजेपी-शिवसेना राज में मातोश्री कैसे बना महाराष्ट्र का पावर सेंटर?

---विज्ञापन---

दक्षिण भारत में नए तरह के संकट की आहट

कभी बुजुर्ग महिलाएं नई दुल्हन को आशीर्वाद दिया करती थीं- दूधो नहाओ, पूतो फलो। मतलब दूध से नहाएं और संतान सुख भोगें। दूध से कोई तभी नहाएगा, जब संपन्न होगा और संपन्नता तभी आएगी, जब संतान यानी काम करने वाले हाथ अधिक होंगे। ये पुराने दौर की सोच थी। आजादी के बाद बड़ी आबादी को बोझ की तरह देखा गया और परिवार नियोजन पर जोर दिया गया। इमरजेंसी के दौर को अपवाद की तरह लिया तो परिवार नियोजन को लेकर हमारे देश में कभी जोर-जबरदस्ती नहीं हुई। बाद में नारा दिया गया- छोटा परिवार, सुखी परिवार, हम दो, हमारे दो। मिडिल क्लास और अपर मिडिल क्लास ने छोटा परिवार में अपनी खुशहाली देखी। दक्षिण भारत के राज्यों ने परिवार नियंत्रण से पूरी शिद्दत के साथ काम किया, जिसका नतीजा रहा है कि दक्षिण भारत के राज्यों में जन्म दर राष्ट्रीय औसत से नीचे आ गई। इससे दक्षिण में एक नए तरह के संकट की आहट महसूस की जा रही है। एक-दो वर्षों में परिसीमन यानी Delimitation होना है, जिसमें बड़ा आधार आबादी रहती है। Delimitation के बाद संसद में दक्षिण भारत का पलड़ा हल्का और उत्तर भारत का पलड़ा बहुत भारी होने की भविष्यवाणी की जा रही है। ऐसे में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन अधिक बच्चे पैदा करने की अपील कर रहे हैं। अब ये समझना जरूरी है कि दक्षिण भारत के राज्यों को जन्म दर में गिरावट की वजह से कहां-कहां नुकसान महसूस हो रहा है।

---विज्ञापन---

लोकसभा में दक्षिण भारत का कम है दबदबा

भले ही छोटा परिवार और कम आबादी को अर्थशास्त्री खुशहाली की गारंटी मानते हों, लेकिन लोकतांत्रिक राजनीति में सत्ता संतुलन बनाए रखने में कम आबादी को एक कमजोरी की तरह देखा जाता है। 543 सीटों वाली लोकसभा में दक्षिण भारत से सिर्फ 131 सांसद आते हैं। वहीं, यूपी, बिहार और झारखंड तीन राज्यों की लोकसभा सीटों को जोड़ दें तो 134 हो जाता है। अनुमान लगाया जा रहा है कि Delimitation के बाद हिंदी पट्टी के राज्यों की सीटों में भारी इजाफा होगा तो दक्षिण भारत का संसद में राजनीतिक वर्चस्व कम होगा। अर्थशास्त्रियों की सोच है कि एन चंद्रबाबू नायडू और एमके स्टालिन दोनों का अधिक बच्चा पैदा करने से जुड़ा बयान पूरी तरह से राजनीतिक है। क्योंकि, शायद ही कोई पति-पत्नी किसी नेता की अपील या सरकार से मिलने वाली मामूली इंसेंटिव (Incentive) की वजह से परिवार बढ़ाने से जुड़ा फैसला लेता है। भारत में आखिरी जनगणना 2011 में हुई थी। जनसंख्या बढ़ोत्तरी का जो ट्रेंड है, उसके हिसाब से 25 वर्षों यानी 2011 से 2036 के बीच भारत की आबादी में 31 करोड़ से अधिक लोग जुड़ने का अनुमान है, जिसमें से 17 करोड़ सिर्फ 5 राज्य यूपी, बिहार, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश से होंगे। वहीं, दक्षिण के पांच राज्य आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, तेलंगाना और तमिलनाडु मिलकर आबादी में 3 करोड़ भी नहीं जोड़ पाएंगे। ऐसे में आशंका जताई जा रही है कि कहीं आबादी कंट्रोल करने वाले दक्षिण भारत के राज्यों की स्थिति चाइना या जापान जैसी न हो जाए, जहां युवा कम और बुजुर्ग बढ़ते जा रहे हैं।

युवाओं को स्किल्ड करना बड़ी चुनौती

दुनिया में सबसे अधिक युवा भारत में हैं। एक अरब चालीस करोड़ की आबादी में करीब 48 करोड़ युवा हैं। लेकिन, दुनिया के विकसित देशों की तरह भारतीय युवा शक्ति स्किल्ड (Skilled) नहीं है। कम स्किल्ड होने की वजह से युवा आबादी का पूरा फायदा यानी डेमोक्रेटिक डिविडेंड (Democratic Dividend) भारत को नहीं मिल पा रहा है। ऐसे में युवा आबादी को स्किल्ड करना एक बड़ी चुनौती है। पिछले कुछ दशकों में भारत ने जो रास्ता चुना है, उसमें लोगों का जीवन स्तर सुधरा और लाइफ एक्सपेंटेंसी (Life Expectancy) बढ़ी है। ऐसे में धीरे-धीरे युवाओं की संख्या कम और बुजुर्गों की बढ़ने का ट्रेंड दिखने लगा है। यूनाइटेड नेशंस पॉपुलेशन फंड (United Nations Population Fund) की इंडिया एजिंग रिपोर्ट 2023 में अनुमान लगाया गया है कि आज का युवा भारत आने वाले दशकों में तेजी से बूढ़ा होता जाएगा। एक जुलाई 2022 तक देश में 60 साल से अधिक उम्र वाले लोगों की तादाद 10.5% है, जिसके 2036 तक बढ़कर 15 फीसदी और 2050 तक 20.8% तक पहुंचने की भविष्यवाणी की गई है। मतलब, भारत जब आजादी की 100वीं सालगिरह की ओर बढ़ रहा होगा, तब देश में हर पांचवां व्यक्ति बुजुर्ग होगा। उसमें बढ़ी तादाद ऐसे बुजुर्गों की हो सकती है, जिनके पास सोशल सिक्युरिटी के नाम पर कुछ खास नहीं होगा, जिनके सामने अपनी रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने के लिए 70-75 साल की उम्र में भी काम करने की मजबूरी होगी।

कई देशों ने आबादी बढ़ाने के लिए नई योजना शुरू की

दुनिया के नक्शे पर कई ऐसे देश हैं, जो युवा आबादी के लिए तरस रहे हैं। दुनिया के दूसरे हिस्सों के युवाओं को अपने यहां बुला रहे हैं। तरह-तरह के इंसेंटिव ऑफर करते हैं। करीब साल भर पहले की बात है दक्षिणी इटली के कैलाब्रिया क्षेत्र में आबादी बढ़ाने के लिए एक योजना शुरू की गई। इसमें 40 साल से कम के युवाओं को क्षेत्र में बसने और बिजनेस करने के लिए अर्जी मांगी गई। इस योजना के लिए चुने गए युवाओं को 26 हजार पाउंड यानी करीब 26 लाख रुपये मिलना था। ऐसी योजना इसलिए लाई गई थी, जिससे दूसरे क्षेत्र के युवा कम आबादी वाले क्षेत्र की लोकल इकोनॉमी (Local Economy) में योगदान दे सकें। इसी तरह 6 महीना पहले जापान ने नई वीजा पॉलिसी को लागू किया, जिसमें विदेशी युवाओं को रियायत दी गई। जापान की नई वीजा नीति का मकसद है- युवा श्रमिकों की कमी को पूरा करना। जापान की नई नीति को ब्रीडिंग वीजा का नाम देकर सोशल मीडिया पर मजाक उड़ाया गया। जर्मनी, इटली, ऑस्ट्रेलिया यहां तक की खाड़ी देश भी कई दुनिया के दूसरे हिस्सों से युवा आबादी के अपने यहां बुलाने के लिए नियम-कायदों में बदलाव कर रहे हैं।

यह भी पढ़ें : ‘महाराष्ट्र में ललकार’ : सियासी बिसात पर कौन राजा, कौन प्यादा?

जापान को भी युवा कामगारों की जरूरत

ये सौ फीसदी सच है कि पिछले कुछ वर्षों में विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में गजब की तरक्की हुई है। इंसान के काम को मशीन ने बहुत आसान कर दिया है, लेकिन मशीन को चलाने के लिए भी इंसानी दिमाग और कमांड की जरूरत पड़ती है। जेनरेटिव AI बहुत हद तक इंसानी दिमाग जैसा काम करने लगा है। लेकिन, इसके बावजूद विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में अच्छा दखल रखने वाले जापान को युवा कामगारों की जरूरत महसूस हो रही है। क्योंकि, उसकी आबादी का बड़ा हिस्सा बूढ़ा हो चुका है। चीन की सेना से लेकर उद्योग तक एक ओर युवा श्रमिकों की कमी से जूझ रहे हैं तो दूसरी ओर युवा बेरोजगारों की भी कतार लंबी है। इसे दो तरह से देखा जा सकता है- एक यूथ वर्क फोर्स (Youth Work Force) की कमी और दूसरी हाईली स्किल्ड यूथ वर्क फोर्स (Highly Skilled Youth Work Force) की कमी। इसी तरह यूरोपीय देशों में बच्चा पैदा करने को लेकर अलग सोच है। वहां, कमाई की तुलना में खर्च अधिक है, ज्यादातर युवा कमाई से सिर्फ अपना ही खर्च मुश्किल से चला पाते हैं। ऐसे में बच्चों पर होने वाले खर्च का खौफ उन्हें परिवार बढ़ाने से रोकता है। आबादी के मामले में भारत की तुलना यूरोपीय देशों से करना ठीक नहीं है। उत्तर भारत में अगर आबादी बढ़ने की रफ्तार अधिक है और दक्षिण भारत के राज्यों में कम तो आबादी बढ़ाने की जगह Internal Migration को बढ़ावा देकर Demographic Imbalance को ठीक किया जा सकता है। जिस तरह से यूपी-बिहार के लोग पंजाब की अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभा रहे हैं, जिस तरह से दक्षिण भारत के लोग उत्तर भारत के अस्पताल से लेकर कारखानों तक में काम करते मिल जाएंगे। उसी तरह से उत्तर भारतीय युवा भी दक्षिण भारत के राज्यों में अपने लिए रोजगार की संभावना तलाश रहे हैं। यही वजह है कि तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्रा, तेलंगाना और केरल में लिट्टी-चोखा की दुकान और भोजपुरी बोलने वाले दिख जाएंगे। दक्षिण भारत के राज्यों में अब पहले जैसा हिंदी विरोध नहीं रहा। एक नए तरह की साझी आर्थिक-सामाजिक व्यवस्था आगे बढ़ रही है, जिसमें बसावट और रिश्तों का आधार स्किल और एक-दूसरे की जरूरत बन रहा है। ऐसे में ये बहस बेमानी है कि खुशहाल भविष्य के लिए एक बच्चा बेहतर रहेगा या दो बच्चा? बच्चा कितना काबिल बनेगा, उस पर ही परिवार और देश का भविष्य निर्भर करेगा?

HISTORY

Edited By

Deepak Pandey

First published on: Oct 27, 2024 07:06 PM

Get Breaking News First and Latest Updates from India and around the world on News24. Follow News24 on Facebook, Twitter.

संबंधित खबरें