---विज्ञापन---

किस श्राप के कारण भगवान विष्णु को बनना पड़ा शालिग्राम पत्थर? जानिए देवउठनी एकादशी के दिन क्या है सूप पीटने की परंपरा

Dev Uthani Ekadashi 2023: कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवउठनी एकादशी का व्रत रखा जाता है। इस साल देवउठनी एकादशी का व्रत 23 नवंबर को रखा जाएगा। आइए जानते हैं कि भगवान विष्णु को शालिग्राम पत्थर क्यों बनना पड़ा और इस दिन सूप क्यों पीटा जाता है।

Edited By : Dipesh Thakur | Updated: Nov 14, 2023 14:55
Share :
Devuthani Ekadashi 2023
Devuthani Ekadashi 2023

Dev Uthani Ekadashi 2023 Kab Hai: सनातन धर्म की परंपरा के अनुसार, कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवउठनी एकदशी का व्रत रखा जाता है। पौराणिक मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु चार महीने के बाद योगनिद्रा से जागते हैं। जिसके बाद से ही शादी-विवाह समेत अन्य शुभ और मांगलिक कार्य शुरू होते हैं। इस साल देवउठनी एकादशी 23 नवंबर को है। जिसका पारण 24 नवंबर को सुबह 6 बजकर 51 मिनट के बाद किया जाएगा। आइए जानते हैं कि किसके श्राप की वजह से भगवान विष्णु को शालीग्राम पत्थर बनना पड़ा और देवउठनी एकादशी के दिन सूप पीटने की क्या परंपरा है?

देवउठनी एकादशी 2023 शुभ मुहूर्त

पंचांग के अनुसार, साल 2023 में देवउठनी एकादशी 23 नवंबर, गुरुवार को है। कार्तिक शुक्ल एकादशी तिथि की शुरुआत 22 नवंबर को रात 11 बजकर 3 मिनट से शुरू होगी। जबकि इस तथि की समाप्ति 23 नवंबर को सुबह 9 बजकर 01 मिनट पर होगी। ऐसे में उदया तिथि के मुताबिक देवउठनी एकादशी का व्रत 23 नवंबर को रखा जाएगा और पारण 24 नवंबर को सुबह 7 बजकर 06 मिनट से बाद किया जाएगा।

---विज्ञापन---

देवउठनी एकादशी पर क्यों पीटा जाता है सूप?

धार्मिक मान्यता के अनुसार, देवउठनी एकादशी के दिन से ही समस्त मांगलिक और धार्मिक कार्य शुरू हो जाते हैं। चूंकि मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु चार महीने के बाद योग निद्रा से जागते हैं, इसलिए देवउठनी एकादशी के दिन पूजन के बाद सूप पीटकर भगवान विष्णु को जगाया जाता है। इस अद्भुत परंपरा को लेकर मान्यता यह भी है कि ऐसा करने से घर से दरिद्रता बाहर चली जाती है।

यह भी पढ़ें: छठ पूजा का प्रसाद बनाने के दौरान भूलकर भी न करें ऐसी गलतियां, छठी मैया हो सकती हैं नाराज!

---विज्ञापन---

भगवान विष्णु को किसने दिया शालीग्रम पत्थर बनने का श्राप?

सनातन धर्म ग्रंथों के मुताबिक, पौराणिक काल में वृंदा नामक एक कन्या थी। कहते हैं कि वृंदा का विवाह जलंधर के साथ हुआ, जो कि समुद्र मंथन से उत्पन्न हुआ था। कहा जाता है कि वृंदा भगवान विष्णु की परम भक्त होने के साथ-साथ पतिव्रता स्त्री भी थी। जिसकी वजह से उसका पति जलंधर और भी अधिक बलशाली हो गया। कहते हैं कि जलंधर इतना अधिक शक्तिशाली था कि स्वयं महादेव भी उसको परास्त नहीं कर पा रहे थे। जिसके बाद भगवान शिव समेत सभी देवी-देवताओं ने जलंधर का नाश करने के लिए भगवान विष्णु से विनती की। जिसके बाद भगवान विष्णु ने जलंधर का वेष धारण करके पतिव्रता स्त्री वृंदा की पवित्रता को खत्म कर दिया।

जब वृंदा की पवित्रता नष्ट हो गई तो जलंधर की भी ताकत खत्म हो गई। जिसके बाद भगवान शिव ने जलंधर को मार दिया। वृंदा को जब भगवान विष्णु की माया का पता चला तो वह अत्यंत क्रोधित हो उठी। जिसके बाद उसने भगवान विष्णु को शालिग्राम पत्थर बनने का श्राप दे दिया। इतना ही नहीं, वृंदा ने भगवान विष्णु को अपनी पत्नी से अलग होने का भी श्राप दिया। इधर जब भगवान विष्णु वृंदा के श्राप से पत्थर बन गए तो सभी देवी-देवताओं में हहाकार मच गया। जिसके बाद माता लक्ष्मी ने वृंदा से प्रार्थना की। जिसके बाद सृष्टि के कल्याण के लिए वृंदा ने अपना श्राप को वापस लेकर खुद जलंधर के साथ सती हो गई।

जब वृंदा जलंधर के साथ सती हुई तो उसकी चिता की राख से एक तुलसी का पौधा उत्पन्न हुआ, जिसे भगवान विष्णु ने तुलसी का नाम दिया। सात ही इसके बाद वे स्वयं एक रूप को पत्थर में समाहित करते हुए यह कहा कि आगे तुलसी के बिना वे प्रसाद ग्रहण नहीं करेंगे। भगवान विष्णु ने यह भी कहा कि शालिग्राम के नाम से उनकी पूजा तुलसी के साथ होगी। यही वजह है कि कार्तिक मास में तुलसी विवाह संपन्न कराया जाता है।

डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी ज्योतिष पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है। किसी भी उपाय को करने से पहले संबंधित विषय के एक्सपर्ट से सलाह अवश्य लें।

HISTORY

Edited By

Dipesh Thakur

First published on: Nov 14, 2023 02:55 PM

Get Breaking News First and Latest Updates from India and around the world on News24. Follow News24 on Facebook, Twitter.

संबंधित खबरें