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Magnetogenetics: माइंड कंट्रोल करने वाली दुनिया की पहली टेक्नोलॉजी! कैसे करती है काम?

What Is Magnetogenetics: वैज्ञानिकों ने एक नई टेक्नोलॉजी डेवलप की है जिसे लेकर दावा किया जा रहा है कि इससे दिमाग कंट्रोल किया जा सकता है। इस तकनीक को नाम दिया गया है मैग्नेटोजेनेटिक्स। इस रिपोर्ट में जानिए कि यह टेक्नोलॉजी क्या है और कैसे काम करती है?

Edited By : Gaurav Pandey | Updated: Jul 24, 2024 20:26
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Brain Circuits
Representative Image (Pixabay)

Mind Control Technology : दिमाग किस तरह काम करता है इससे जानने की उत्सुकता इंसानों में हमेशा से रही है। यह सीक्रेट जानने के लिए वैज्ञानक 2 तरह के एक्सपेरिमेंट्स करते रहे हैं। इनमें से पहला एक्सपेरिमेंट ब्रेन एक्टिविटीज को रिकॉर्ड करता है और दूसरा उन्हें मैनिपुलेट करता है। न्यूरोसाइंस से जुड़ी शुरुआती स्टडीज में न्यूरॉन्स की एक्टिविटीज को बदलने के लिए इलेक्ट्रिसिटी का इस्तेमाल किया जाता था। इसके करीब 2 दशक बाद वैज्ञानिकों ने एक नई टेक्नोलॉजी विकसित की जिसमें लाइट का यूज किया गया। अब, इसके लिए साइंटिस्ट मैग्नेट्स यानी चुंबकों का इस्तेमाल कर रहे हैं।

जानें कैसे काम करती है ये टेक्नोलॉजी?

लेकिन क्या इस टेक्नोलॉजी से माइंड कंट्रोल भी किया जा सकता है? मैग्नेटोजेनेटिक्स समेत अन्य ब्रेन सिमुलेशन टेक्नोलॉजीज के जरिए वैज्ञानिकों ने जानवरों के व्यवहार को तो इंफ्लुएंस कर लिया है। हालांकि, इंसानों अभी इसके असर से अछूते हैं। यह टेक्नोलॉजी दिमाग में मैग्नेटिक नैनोपार्टिकल्स और क्लोज रेंज वाली मैग्नेटिक फील्ड्स पर निर्भर करती है। इस नई टेक्नोलॉजी के काम करने का तरीका भी काफी अनोखा है। इसमें एक मैग्नेटिक नैनोपार्टिकल के साथ पिएजो नाम का एक मेकेनिकोसेंसिटिव प्रोटीन होता है। इस नैनोपार्टिकल का आकार 200 नैनोमीटर यानी 0.0002 मिलीमीटर होता है ।

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पिएजो एक ग्रीक शब्द है जिसका अर्थ प्रेशर यानी दबाव होता है। यह एक चैनल प्रोटीन है जो मेकेनिकली सिमुलेट किए जाने पर एक कोशिका को एक्टिवेट कर सकता है। इसी से आपको हल्के स्पर्श का अहसास होता है। एक रोटेटिंग मैग्नेटिक फील्ड मैग्नेटिक नैनोपार्टिकल को मूव कराती है। इससे टॉर्क जेनरेट होता है जो पिएजो चैनल्स को मेकेनिकली सिमुलेट कर सकता है। नैनोपार्टिकल्स केवल उसी पिएजो वेरिएंट को एक्टिवेट करते हैं जिसे वैज्ञानिक कोशिका में डिलिवर करते हैं। पहले से मौजूद पिएजो प्रोटीन्स पर इनका असर नहीं पड़ता। चूहों पर किए गए इसके एक्सपेरिमेंट काफी सफल रहे हैं।

इंसानों पर काम करेगी ये टेक्नोलॉजी?

एक्सपेरिमेंट के दौरान देखने को मिला कि चूहे उतना ही खा रहे थे जितना कि वैज्ञानिक चाहते थे। इसके अलावा उन्होंने उनके गुणों में भी बदलाव करने में सफलता पाई। यह टेक्नोलॉजी सुनने में तो किसी साई-फाई फिल्म की कहानी लगती है लेकिन इससे वैज्ञानिक जानवरों में ब्रेन एक्टिविटी को हाई टेंपरल सटीकता के साथ मैनिपुलेट कर सकेंगे और इसके लिए उन्हें जानवरों के सिर पर कोई भारी-भरकम मशीन भी नहीं लगानी होगी। इससे न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर्स के लिए नए ट्रीटमेंट डेवलप किए जा सकते हैं। इंसानों पर इस टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल की बात करें तो फिलहाल ऐसा होना संभव नहीं है।

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Edited By

Gaurav Pandey

First published on: Jul 24, 2024 08:26 PM

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