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उत्तर प्रदेश / उत्तराखंड

उत्तर प्रदेश में होती है रावण की पूजा, केवल दशहरे के दिन दशानन मंदिर पहुंचते हैं भक्त

जहां पूरे देश में दशहरे के दिन रावण दहन किया जाता है, वहीं कानपुर के शिवाला में स्थित दशानन मंदिर में रावण की पूजा होती है. यह मंदिर साल में सिर्फ एक दिन—विजयादशमी पर खुलता है. यहां रावण को शक्ति का प्रतीक मानकर उसकी प्रतिमा का श्रृंगार किया जाता है और आरती की जाती है. श्रद्धालु सरसों के दीये जलाते हैं और मन्नतें मांगते हैं.

Author Written By: News24 हिंदी Author Published By : Avinash Tiwari Updated: Oct 2, 2025 13:15
Kanpur Rawan Tample
Kanpur Rawan Tample

देश में जहां रावण दहन कर खुशियां मनाई जाती हैं, वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो रावण के सौ साल पुराने मंदिर में विशेष अराधना करते हैं. यह पूजा केवल दशहरे के दिन ही होती है. कानपुर के शिवाला में स्थित देश के एकलौते दशानन मंदिर में दशहरा के दिन सुबह से भक्त रावण की पूजा-अर्चना करने के लिए आते हैं. यह मंदिर साल में एक बार विजयादशमी के दिन ही खुलता है और लोग सुबह-सुबह यहां रावण की पूजा करते हैं. दशानन मंदिर में शक्ति के प्रतीक के रूप में रावण की पूजा होती है और श्रद्धालु तेल के दीये जलाकर मन्नतें मांगते हैं.

परंपरा के अनुसार, सुबह 9 बजे मंदिर के कपाट खोले जाते हैं और रावण की प्रतिमा का साज-श्रृंगार किया जाता है. इसके बाद आरती होती है. शाम को मंदिर के दरवाजे एक साल के लिए बंद कर दिए जाते हैं. इस मंदिर का निर्माण सौ साल पहले महाराज गुरु प्रसाद शुक्ल ने कराया था. रावण प्रकांड पंडित होने के साथ-साथ भगवान शिव का परम भक्त था. इसलिए शक्ति के प्रहरी के रूप में यहां कैलाश मंदिर परिसर में रावण का मंदिर बनाया गया.

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मां छिन्नमस्तिका ने दियास था वरदान

भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए वह देवी की आराधना भी करता था. बताया जाता है कि उसकी पूजा से प्रसन्न होकर मां छिन्नमस्तिका ने उसे वरदान दिया था कि उनकी की गई पूजा तभी सफल होगी जब भक्त रावण की भी पूजा करेंगे.

यह भी पढ़ें : दिल्ली के इस गांव में नहीं होता है रावण दहन, माना जाता है पूर्वज

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आपको बता दें कि करीब 206 साल पहले संवत 1868 में तत्कालीन राजा ने मां छिन्नमस्तिका का मंदिर बनवाया था और रावण की करीब पांच फुट की मूर्ति उनके प्रहरी के रूप में बनवाई थी. विजयदशमी के दिन मां छिन्नमस्तिका की पूजा के बाद रावण की आरती होती है और मंदिर में सरसों के दीपक और पीले फूल चढ़ाए जाते हैं.

First published on: Oct 02, 2025 12:35 PM

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