Ravindra Singh Bhati Contest Election Barmer Jaisalmer Seat: राजस्थान में लोकसभा चुनाव 2024 के पहले चरण का मतदान हो चुका है। पहले चरण में पिछली बार की तुलना में 5 प्रतिशत वोटिंग कम हुई। सियासी जानकारों ने अपने-अपने तरीके से इसका विश्लेषण करना शुरू कर दिया। इस बीच दूसरे चरण के प्रचार को लेकर नेताओं के बयान सियासी गर्मी बढ़ा रहे हैं। प्रदेश में 26 अप्रैल को 13 लोकसभा सीटों पर दूसरे चरण का मतदान होना है। इसमें बाड़मेर सीट भी शामिल हैं।
बाड़मेर-लोकसभा संसदीय सीट पर भाजपा ने केंद्रीय मंत्री कैलाश चौधरी को दोबारा उम्मीदवार बनाया है। वहीं कांग्रेस ने इस सीट पर हनुमान बेनीवाल की पार्टी आरएलपी से गठबंधन किया है। ऐसे में यहां दोनों के संयुक्त उम्मीदवार उम्मेदाराम बेनीवाल मैदान में है। वहीं एक और प्रत्याशी है जिसने भाजपा और कांग्रेस दोनों का सिरदर्द बढ़ा दिया है। इस निर्दलीय प्रत्याशी का नाम है रविंद्र सिंह भाटी। रविंद्र सिंह भाटी फिलहाल बाड़मेर की शिव सीट से विधायक है।
भाटी क्यों लड़ रहे चुनाव?
बाड़मेर की शिव सीट से निर्दलीय चुनाव जीतकर विधायक बने रविंद्र सिंह भाटी लोकसभा चुनाव में भाजपा के लिए चुनौती नहीं बनना चाहते थे। लेकिन भजनलाल सरकार के एक आदेश ने उनके आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाई और वे निर्दलीय पर्चा भरकर लोकसभा के चुनावी समर में कूद गए। लोकसभा चुनाव से पहले बाड़मेर की प्यासी सियासत में हैंडपंप लगाने का मुद्दा उठा। राज्य सरकार ने 14 मार्च को सिंचाई महकमे ने बाड़मेर जिले में जारी किए हैंडपंप को मंजूर किए जाने को लेकर एक परिपत्र जारी किया। इसमें भाटी के शिव विधानसभा में 22 हैंडपंप मंजूर किए गए। इसमें भाटी की अनुशंसा पर सिर्फ 2 और उनसे चुनाव हार चुके भाजपा के स्वरूप सिंह खारा की अनुशंसा पर 20 हैंडपंप लगवाए जा रहे थे।
सियासी सफर की शुरुआत में नवनिर्वाचित विधायक भाटी के लिए यह फैसला हैरान करने वाला था। इसके बाद उन्होंने उसे एक चुनौती के तौर पर स्वीकार किया। इससे पहले भाटी जेएनयू छात्रसंघ चुनाव, गोवंश बचाओ अभियान के दौरान सक्रिय रहे जिससे उनकी लोकप्रियता दिन दौगुनी रात चौगुनी गति से आगे बढ़ी। इसका फायदा उन्हें विधानसभा चुनाव 2023 में मिला। जब उन्होंने चुनाव लड़ने का ऐलान किया तो भाजपा उनको अपने साथ लाने में सफल रही। भाजपा में आने के बाद भी उन्होंने आलाकमान से शिव सीट पर टिकट मांगा लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिला। इसके बाद वे निर्दलीय ही मैदान में उतर गए। इस चुनाव में उन्होंने कांग्रेस से बागी होकर चुनाव लड़ रहे फतेह खान को 3 हजार से अधिक वोटों से हराया।
सोशल इंजीनियरिंग के फाॅर्मूले में फंस सकते हैं
2009 में परिसीमन से पहले इस सीट पर राजपूतों का हमेशा से वर्चस्व रहा। लेकिन जीत हमेशा जाट उम्मीदवार की होती आई है। ऐसे में राजस्थान का जाट वोट बैंक कभी कांग्रेस तो कभी भाजपा के पक्ष में नजर आया है। कांग्रेस प्रत्याशी उम्मेदाराम के उतरने से जाट वोट का बंटना तय है। वहीं राजपूत भाजपा का परंपरागत वोट बैंक रहा है, लेकिन रविंद्र सिंह के निर्दलीय लड़ने से राजपूतों के कुछ वोट भाटी के समर्थन में जा सकते हैं। युवा वोटर भी इस सीट पर निर्णायक साबित होंगे। भाटी को युवाओं का अच्छा खासा समर्थन हासिल है। इसके अलावा इस सीट पर चारण, सुनार, सुथार, बिश्नोई, कुम्हार, राजपुरोहित, वैश्य आदि वोट भी ठीक-ठाक संख्या में हैं। ऐसे में इस समाज को साधना भाटी के लिए बड़ी चुनौती है। क्योंकि ये सभी भाजपा के परंपरागत वोटर रहे हैं। हालांकि बेरोजगारी और पेपरलीक जैसे मुद्दों के जरिए उन्होंने विधानसभा में तो वोट बटोर लिए लेकिन लोकसभा में राष्ट्रीय मुद्दों के बीच स्थानीय मुद्दे कितने हावी रहते हैं ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा।
भाजपा में नेताओं का एक तबका भाटी के राजनीति में बढ़ते कद को पचा नहीं पा रहे थे। ऐसे में उन्होंने भाटी को पार्टी में शामिल करवा लिया। पार्टी में शामिल होने के बाद भी भाटी की चुनाव लड़ने की महत्वाकांक्षा खत्म नहीं हो रही थी। पार्टी कैसे भी करके अनुशासन के नाम पर उनको रोकना चाहती थी, लेकिन उन्होंने पार्टी के खिलाफ जाकर निर्दलीय ही ताल ठोंक दी।
लोकसभा चुनाव में जीत मुश्किल
भाटी की लोकप्रियता को देखकर हर कोई यही कह रहा है कि वे चुनाव जीत जाएंगे। लेकिन शिव जैसी छोटी विधानसभा से निकलकर जैसलमेर और बाड़मेर के सभी मतदाताओं को लुभा पाना उनके लिए मुश्किल नजर आ रहा है। विशेषतौर से शहरी वोटर्स को। शहरी वोटर भाजपा का परंपरागत है इसलिए ये वोट भाजपा को ही जाएगा। वहीं बाड़मेर में विधानसभा की 7 सीटें हैं उसमें शिव को छोड़कर बाकी सभी सीटों पर वे इतना ही लोकप्रिय हैं ये जरूरी नहीं। रैलियों में उमड़ी भीड़ जरूरी नहीं आपको ईवीएम में भी सपोर्ट करें ऐसे में भाटी के लिए यह बड़ी चुनौती है।
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