Politics on Reservation: बिहार में 75 फीसदी आरक्षण का मार्ग खुल गया है। इस वजह से मराठा आरक्षण को लेकर जल रहे महाराष्ट्र का क्या होगा, ऐसा सवाल उठ रहा है। बिहार में तमिलनाडु की तर्ज पर आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से 65 फीसदी हो गई, उसमें आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को 10 फीसदी आरक्षण देने से कुल आरक्षण 75 फीसदी हो गया है। बिहार के नव ‘मंडल’ नीति का महाराष्ट्र पर क्या परिणाम होगा? महाराष्ट्र में ओबीसी (OBC) कोटे से मराठा समाज को आरक्षण देने पर छगन भुजबल जैसे नेताओं ने जमकर विरोध किया है। लेकिन आरक्षण का ‘कोटा’ बढ़ाने को लेकर कोई विरोध नहीं है। इसका साफ मतलब है कि जैसा बिहार ने किया, वही महाराष्ट्र को करना होगा। जाति के आधार पर आरक्षण की आग पूरे देश में लगी हुई है और पिछले 10 सालों में आरक्षण की यह आग कुछ ज्यादा ही भड़क गई है। जिसकी एक वजह देश में बढ़ती बेरोजगारी भी है।
The Bihar Legislative Council passed an amendment bill to increase the reservation quota from 50 percent to 65 percent #Bihar https://t.co/Nst3PXmt55
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कृषि पर निर्भर रहनेवाला समाज
मोदी के दौर में लगभग सभी सार्वजनिक उपक्रमों को बंद करके उनका निजीकरण कर दिया गया। इनमें से ज्यादातर सार्वजनिक उपक्रमों का स्वामित्व अब भाजपा के पास अर्थात गौतम अडानी के पास है। ये ऐसा करने की वजह से हजारों सरकारी नौकरियां हम खो चुके हैं। हर तरफ ठेका पद्धति पर नौकरी में भर्ती की बयार बहने लगी है। इस भर्ती से सेना और पुलिस दल भी बचा नहीं है। किसानी भी अब रोजी-रोटी का उद्योग नहीं रह गई है। प्रकृति के अनियमित स्वभाव के कारण यह जोखिमभरा काम हो गया है। इसलिए कृषि पर निर्भर रहनेवाला बड़ा समाज उनकी भावी पीढ़ी शहरों में आकर रोजगार ढूंढ़ने लगी है। इनमें कल तक गांवों में जागीरदार-जमींदार रहे लोगों के बच्चे भी शामिल हैं।
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मराठा समाज का आक्रोश
पीढ़ी दर पीढ़ी भूमि का बंटवारा होने से एक दो एकड़ से गुजारा होना कठिन हो गया है। इस पर कर्ज, प्राकृतिक आपदा आदि के कारण खेती करने में अब काफी परेशानियां बढ़ गई हैं। महाराष्ट्र के मराठा समाज का आक्रोश इस तरह से बाहर निकला है कि पूरा राज्य आज अस्थिर हो गया है। महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण का आंदोलन व्यथित करने वाला है। महाराष्ट्र का सहकार आंदोलन सहकारी कारखानों, बैंकों की कमान परंपरा के अनुसार मराठा समाज के पास है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था यही लोग चलाते हैं। बड़े प्रमाण में रोजगार उपलब्ध करानेवाला यही नेतृत्व है।
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मुफ्त राशन देने की योजना
क्योंकि बहुसंख्य मराठा समाज में आर्थिक पिछड़ापन बढ़ गया है और उन्हें सहारा देने में सियासी नेतृत्व असफल साबित हुआ है। आरक्षण का मुद्दा जाति आधारित न होकर आर्थिक है और उस आर्थिक पिछड़ेपन का समाधान ढूंढ़ना जरूरी है। शत-प्रतिशत आरक्षण दे दिया जाए, तब भी इस समस्या का हल नहीं निकलेगा। प्रधानमंत्री मोदी ने 80 करोड़ जनता को मुफ्त राशन देने की योजना और 5 वर्षों के लिए बढ़ा दी। इसका अर्थ यही है कि मोदी के शासनकाल में भी गरीबी खत्म नहीं हुई है और रोजगार बढ़ा नहीं है। साल में दो करोड़ लोगों को रोजगार देने का वचन 2014 से मोदी और उनके लोग दे रहे हैं। परंतु बीते 10 वर्षों में मोदी सरकार द्वारा लिए गए नोटबंदी जैसे निर्णयों के कारण जो थे, वो रोजगार भी हम गवां बैठे हैं। इसलिए जो नौकरियां और रोजगार उपलब्ध नहीं हैं, उसके लिए सर्वत्र संघर्ष चल रहा है और वह चरम पर पहुंच गया है। महाराष्ट्र जैसा राज्य उसमें झुलस रहा है।
Hear my views on #MarathaReservation; I am not against the reservation, but….
Do watch the video to know my views. #Reservation #maratha pic.twitter.com/xIFpXtSmLK
— Dr Vikas Mahatme (Modi Ka Parivar) (@MPvikasmahatme) November 11, 2023
महाराष्ट्र का रोजगार
पहले ही महाराष्ट्र के उद्योग और रोजगार के अवसर मोदी सरकार गुजरात भगा ले गई। मोदी का महत्व कम करके राज्य की आर्थिक रीढ़ ही तोड़ दी है। मुंबई की ‘एयर इंडिया’ इमारत कहा जा रहा है कि राज्य सरकार 1600 करोड़ रुपए में खरीदकर वहां सरकारी कार्यालय बनाएगी। लेकिन उस 22 मंजिलों वाली इमारत में हजारों लोगों को जो रोजगार मिल रहा था, उसे कौन उठा ले गया। एयर इंडिया का मुख्यालय मुंबई से दिल्ली ले जाकर महाराष्ट्र के रोजगार पर कुल्हाड़ी चलाई गई, यह अन्याय है। यह मुद्दा जातीय आरक्षण से आगे का है। 75 फीसदी आरक्षण का फॉर्मूला देने के बाद भी अब एयर इंडिया पर ‘मराठी’ प्रभाव नहीं रहेगा, क्योंकि एयर इंडिया को खींचकर राज्य के बाहर ले गए। पिछड़े वर्ग, अति पिछड़े वर्ग, अनुसूचित जाति-जनजाति, ओबीसी, मराठा, इन सभी को विचार करना चाहिए, ऐसा यह विषय है। आरक्षण का आंकड़ा बढ़ जाएगा, अध्यादेश निकलेंगे, परंतु देश को नौकरी देनेवाले महाराष्ट्र को कमजोर किया जा रहा है। इसे रोकना चाहिए।