वक्फ कानून को लेकर सत्तापक्ष और विपक्ष में लगातार बयानबाजी का सिलसिला जारी है। महाराष्ट्र में शिंदे गुट के नेता संजय निरुपम ने शिवसेना यूबीटी को घेरते हुए मुस्लिम समुदाय पर गंभीर आरोप लगाए हैं। UBT गुट के नेताओं का यह कहना है कि वक्फ बोर्ड का किसी धर्म या जाति से लेना-देना नहीं है, यह जनता की आंखों में धूल झोंकने जैसा है। यह विषय सिर्फ रियल एस्टेट या जमीन-जायदाद का नहीं, बल्कि देश की जमीन और जनभावनाओं से जुड़ा मुद्दा है। UBT नेताओं की संपत्ति और जमीनों में गहरी दिलचस्पी जगजाहिर है। इसी कारण वे वक्फ मुद्दे को केवल प्रॉपर्टी विवाद बताकर सच्चाई से भाग रहे हैं। क्या UBT वाकई वक्फ बोर्ड की जमीनों में रुचि ले रही है? आज वक्फ की जमीनें कोई गल्फ कंट्री से नहीं आई हैं। ये भारत की जमीनें हैं और जब इनका दुरुपयोग होता है, तो सरकार का कर्तव्य है कि वह निगरानी रखे और जरूरी कदम उठाए। अगर UBT इस पर चुप्पी साधती है, तो यह आम जनता के साथ विश्वासघात है।
मुस्लिम वोटबैंक की राजनीति
मुस्लिम वोटबैंक की राजनीति के लिए अगर UBT बालासाहेब ठाकरे के सिद्धांतों की बलि चढ़ा रही है, तो यह गद्दारी उन्हें महंगी पड़ेगी। UBT जिसका पूरा नाम कुछ इस तरह समझा जा सकता है कि U मतलब Use, B (Baap), T मतलब Throw, यह पार्टी आज अपने ही आदर्शों को तिलांजलि दे चुकी है। खुलताबाद का नाम रक्तपुरी रखने की बात मंत्री शिर्साट ने पहले ही उठाई थी। अब जब जनता का दबाव बढ़ा है, तो UBT “चलती ट्रेन” में चढ़कर उसका समर्थन कर रही है। इस दौरान उन्होंने सवाल उठाया कि 22 महीनों के कार्यकाल में ये कहां थे?
महंगाई एक गंभीर मुद्दा बन चुकी है
महंगाई आज एक गंभीर मुद्दा बन चुकी है। डीजल और पेट्रोल के दामों में बढ़ोतरी से आम आदमी की कमर टूट रही है। हालांकि सरकार का दावा है कि ऑयल मार्केटिंग कंपनियों पर 41,000 करोड़ रुपये का कर्ज है और उससे कुछ भार जनता पर आया है, लेकिन सुधार की जिम्मेदारी भी सरकार की ही है।
इन मुद्दों पर भी उठाए सवाल
मुद्रा योजना के तहत युवाओं को स्वरोजगार के लिए मदद दी जा रही है। पंजाब की सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल उठते हैं। जहां शाम 6 बजे के बाद भगवंत मान सरकार निष्क्रिय हो जाती है और अपराधियों, गुंडों और आतंकवादियों को खुला मैदान मिल जाता है। दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल पर भी गंभीर आरोप लगे हैं कि उन्होंने दूसरे देश के आतंकवादी संगठनों से पैसा लेकर चुनाव लड़ा है।
वक्फ बोर्ड से जुड़े संशोधन बिल पर संसद में UBT की भूमिका पूरी तरह उजागर हो चुकी है। मुस्लिम संगठनों से दबाव में आकर संशोधन का विरोध करना और अब पीछे हट जाना यह साफ दिखाता है कि UBT की नीति और नीयत में फर्क है। जब INDIA गठबंधन सुप्रीम कोर्ट जा रहा है, तो UBT किनारा कर रही है, क्या यह उनका दोहरा रवैया नहीं दिखाता?
कुनाल कामरा के मुद्दे पर क्या बोले
कुनाल कामरा जैसे लोगों को लेकर भी सवाल उठते हैं। अगर वह किसी नेता पर टिप्पणी करते हैं, तो उन्हें उसके कानूनी परिणामों के लिए तैयार रहना होगा। अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर चरित्र हनन स्वीकार्य नहीं है।
मनसे द्वारा महाराष्ट्र में रहने वाले लोगों से मराठी बोलने का आग्रह कोई नई बात नहीं है। महाराष्ट्र की माटी से जुड़े होने के नाते मराठी भाषा का सम्मान करना हर किसी का कर्तव्य है चाहे वह औपचारिक स्थिति हो या अनौपचारिक। इसका मतलब यह नहीं है कि जो लोग हाल ही में शहर में आए हैं या जिन्हें मराठी बोलनी नहीं आती, उन पर दबाव बनाया जाए या उनके साथ मारपीट की जाए। किसी भी भाषा को सिखाने का रास्ता प्रेम और संवाद से होकर जाता है, न कि हिंसा और धमकी से होनी चाहिए। हाल ही में कुछ बैंकों में कर्मचारियों के साथ हुई मारपीट जैसी घटनाएं निंदनीय हैं।
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