Aurangabad East Constituency Profile (इंद्रजीत सिंह, मुंबई) : महाराष्ट्र की औरंगाबाद पूर्व विधानसभा सीट पर सबकी निगाहें टिकी हैं। वैसे तो यहां कुल 29 उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं, लेकिन मुकाबला त्रिकोणीय होने की संभावना है। बीजेपी के अतुल सावे इस सीट से दो बार से चुनाव जीत रहे हैं, लेकिन पिछले दो चुनावों से उनको AIMIM में रहकर कड़ी टक्कर देने वाले डॉ. अब्दुल कादरी इस बार समाजवादी पार्टी से चुनावी रण में हैं और एमआईएमआईएम ने इस बार पूर्व सांसद इम्तियाज जलील को चुनावी मैदान में उतारा है। दोनों नेता कह रहे हैं कि उनकी लड़ाई बीजेपी से है और एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं कि वो बीजेपी की मदद के लिए लड़ रहे हैं।
औरंगाबाद पूर्व विधानसभा क्षेत्र में कुल 3,54,000 मतदाता हैं। यह पूरी तरह से शहरी सीट है, लेकिन यहां की सबसे बड़ी समस्या पानी की है। यहां की ज्यादातर इलाकों में 6 से 7 दिन में एक बार पानी आता है। इसके अलावा यहां की तंग गालियां और कुछ जगहों पर गंदगी का भी अंबार है। छोटे रोड और शकरी गलियों के चलते यहां ट्रैफिक की भारी समस्या है।
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2014 से इस सीट पर बीजेपी का कब्जा
फिलहाल, भारतीय जनता पार्टी के अतुल सावे इस सीट पर 2014 से काबिज हैं। 2019 में अतुल सावे यहां से लगातार दूसरी बार चुनाव जीते थे। इसके पहले यह सीट कांग्रेस के खाते में थी। 2004 और 2009 में यहां से कांग्रेस के उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की थी। हालांकि, इस विधानसभा सीट को बीजेपी का गढ़ कहना गलत नहीं होगा, क्योंकि यहां 1985 से लेकर 1999 तक हरिभाऊ बागडे बीजेपी से विधायक रह चुके हैं। महाविकास अघाड़ी से कांग्रेस यह सीट मिली है। AIMIM उम्मीदवार इम्तियाज जलील का कहना है कि अतुल सावे को जिताने के लिए एमवीए ने इस सीट से मराठा कैंडिडेट बदला।
AIMIM उम्मीदवार ने बीजेपी पर लगाया बड़ा आरोप
इम्तियाज जलील कहते हैं कि बीजेपी नफरत की राजनीति करती है। बंटेंगे तो कटेंगे की बात करती है। ना हम बटेंगे, ना हम कटेंगे। इस बार हम बीजेपी को यहां से भगाएंगे। अतुल सवेरे चुनाव जीतकर चले जाते हैं और यहां की समस्याएं जैसी की तैसी बनी रहती हैं। इस बार लोग हिंदू मुस्लिम नहीं होने देंगे और विकास पर वोट करेंगे। वहीं, अतुल सावे का कहना है कि उन्होंने यहां करोड़ों रुपये का फंड लाया और रोड के लिए बहुत काम किया। वह पानी की समस्या को दूर करने के लिए भी काम कर रहे हैं।
अब्दुल गफ्फार ने दी थी अतुल सावे को कड़ी टक्कर
अगर 2019 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो औरंगाबाद पूर्व से बीजेपी के अतुल सावे को खड़ा किया गया था। इस चुनाव में उन्हें कड़ी टक्कर देने के लिए एआईएमआईएम के अब्दुल गफ्फार कादरी ने पर्चा भरा था। दोनों उम्मीदवारों के बीच कड़ी टक्कर देखने को मिली थी। हालांकि, अतुल सावे को 93966 वोट मिले थे, जबकि एआईएमआईएम के अब्दुल गफ्फार 80036 वोट प्राप्त किए थे। 2014 के चुनाव में बीजेपी के अतुल सावे को 64,528 और उनके प्रतिद्वंद्वी अब्दुल गफ्फार कादरी को 60,268 वोट मिले, जबकि कांग्रेस के राजेंद्र जवाहरलाल दर्डा ने 21,203 वोट प्राप्त किए थे। अगर चुनावी परिणामों के आंकड़ों पर गौर करें तो बहुत कम वोटों से हारने वाले कादरी इस बार समाजवादी पार्टी से चुनावी मैदान में हैं।
जानें क्या है जातिगत समीकरण?
अगर इस सीट पर जातिगत समीकरणों की बात की जाए तो यहां मुस्लिम समुदाय काफी ज्यादा है। इनका वोट शेयर करीब 40 प्रतिशत है। वहीं, दलित समाज यहां 16% के आसपास है और आदिवासी समुदाय डेढ़ प्रतिशत के करीब है। शहरी और ग्रामीण वोटरों के बीच तुलना की जाए तो इस विधानसभा में ग्रामीण वोटर हैं ही नहीं, सिर्फ शहरी वोटर हैं।
सपा-AIMIM उम्मीदवारों ने एक दूसरे पर वोट कटवा का लगाया आरोप
महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में यह सीट स्थित है। यह औरंगाबाद लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र का हिस्सा है, जिसमें अन्य पांच विधानसभा सीटें वैजापुर, गंगापुर, औरंगाबाद मध्य, कन्नड़ और औरंगाबाद पश्चिम (एससी) भी शामिल हैं। औरंगाबाद को आधिकारिक तौर पर छत्रपति संभाजी नगर जिले के रूप में जाना जाता है। इस जिले का क्षेत्रफल 10,100 वर्ग किमी है। औरंगाबाद जिला मराठवाड़ा का एक प्रमुख पर्यटन क्षेत्र है, जिसमें अजंता और एलोरा गुफाएं शामिल हैं। इस विधानसभा क्षेत्र में इस बार दो बड़े मुस्लिम कैंडिडेट हैं, जिसका फायदा अतुल सावे को मिल सकता है, इसलिए दोनों नेता एक दूसरे को वोट कटवा बता रहे हैं।
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एमवीए ने बदला उम्मीदवार
2011 की जनगणना के अनुसार, औरंगाबाद जिले की जनसंख्या 3,701,282 है। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की आबादी क्रमशः 14.57 प्रतिशत और 3.87 प्रतिशत है। यहां पर मराठा आरक्षण बड़ा फैक्टर है, लेकिन AIMIM का आरोप है कि महाविकास आघाड़ी से कांग्रेस ने इस सीट से उम्मीदवार बदल दिया और मधुकर किशनराव देशमुख की जगह लहू एच शेवाले को टिकट दिया।