Rajasthan Assembly Election Results 2023: कांग्रेस ने दो राज्य छत्तीसगढ़ और राजस्थान खो दिए जबकि, तेलंगाना में जीत दर्ज की। 199 सीटों वाली राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी ने रिकॉर्ड 115 सीटों पर कब्जा जमाया और बहुमत का आंकड़ा पार लिया। विधानसभा चुनाव से पहले और चुनाव के दौरान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और कांग्रेस नेता सचिन पायलट की अनबन की खबरें चर्चा में बनी रही। ऐसा कहा जा रहा था 2023 में अगर राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बनती है तो इस बार मुख्यमंत्री सचिन पायलट को बनाया जा सकता था। लेकिन, अशोक गहलोत अक्सर खुद को मुख्यमंत्री बने रहने पर जोर देते थे।अब, राजस्थान में भाजपा की जीत होने के बाद ये मामला ही खत्म हो गया कि अशोक गहलोत सीएम बनेंगे या सचिन पायलट। दोनों घर बैठ गए। लेकिन, अब सवाल ये उठना शुरू हो गया कि आखिर अब कांग्रेस में अशोक गहलोत और सचिन पायलट का क्या? चलिए राजस्थान विधानसभा चुनाव के नतीजों पर और दिग्गजों के प्रदर्शन के साथ-साथ सचिन-गहलोत के अनबन के बारे में विस्तार से बात करते हैं।
कैसा रहा कांग्रेस के दिग्गजों का प्रदर्शन?
नतीजे कांग्रेस के लिए चौंकाने वाले नहीं हो सकते क्योंकि कई एग्जिट पोल ने राजस्थान में उसकी हार का संकेत दिया था। लेटेस्ट अपडेट पर नजर डालें तो राजस्थान में भाजपा को 115 सीटें मिली हैं तो वहीं कांग्रेस महज 69 सीटों पर जीत दर्ज करते दिखाई दे रही है। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने 26396 वोटों से जीत दर्ज करने में कामयाब रहे। उन्होंने भाजपा प्रत्याशी डॉ. महेंद्र राठौड़ को हराया। गहलोत सरदारपुरा विधानसभा से चुनाव लड़ रहे थे। वहीं, सचिन पायलट ने टोंक निर्वाचन क्षेत्र से भाजपा के अजीत सिंह मेहता को 29,000 से अधिक मतों के अंतर से हराया है।
गहलोत-पायलट में अनबन से हुआ नुकसान
गहलोत ने राज्य में तीन बार मुख्यमंत्री पद संभाला है। जब 2018 में कांग्रेस राजस्थान में सत्ता में आई, तो पायलट राज्य इकाई के पार्टी प्रमुख थे। हालांकि, पार्टी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर अशोक गहलोत को बैठाया जबकि पायलट को डिप्टी बनाया था। गहलोत के कार्यकाल के दौरान दोनों नेताओं के बीच मतभेद अक्सर केंद्र में रहे। अशोक गहलोत ने सचिन पायलट के लिए ‘निकम्मा’ और ‘गद्दार’ जैसे शब्द तक बोले थे। पायलट, शुरुआत से ही सीएम बनना चाहते थे। 200 सदस्यों की विधानसभा में 30 विधायकों के समर्थन का दावा करते हुए पायल ने 2020 में गहलोत सरकार के खिलाफ विद्रोह किया था। लेकिन, कांग्रेस नेता राहुल गांधी राज्य में अपनी सरकार बचाने में कामयाब रहे थे। विद्रोह के कारण पायलट को अपना डिप्टी सीएम पद और राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में अपनी भूमिका से हाथ धोना पड़ा था।
ऐसा कहा जाता है कि कांग्रेस के आलाकमान भी राजस्थान के मुख्यमंत्री के रूप में सचिन पायलट को बनाना चाहती थी। इसके लिए पिछले साल सितंबर में, कांग्रेस ने कोशिश भी लेकिन गहलोत अपनी कुर्सी बचाने में सफल रहे। उस दौरान गहलोत खेमे के 80 से अधिक विधायकों ने इस्तीफे की धमकी दी थी, जिससे पार्टी को गहलोत को कांग्रेस अध्यक्ष बनाने के बजाय राजस्थान में बनाए रखने के लिए मजबूर होना पड़ा।
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चुनावों से पहले दोनों नेताओं के बीच सार्वजनिक कलह पीछे छूट गई और कांग्रेस एकजुट होकर राज्य में बेहतर प्रदर्शन करने के लिए कोशिश कर रही थी। लेकिन अब नतीजे आने के बाद , माना जा रहा है कि उनकी खींचतान का असर राजस्थान में कांग्रेस की ताकत पर पड़ा।
दोनों नेताओं के लिए आगे क्या है?
जैसे ही गहलोत और पायलट ने चुनावों के लिए अपने मतभेदों को भुला दिया, राजस्थान के मौजूदा मुख्यमंत्री ने राज्य को फिर से जीतने के लिए स्वास्थ्य बीमा योजना सहित अपनी सरकार की कल्याणकारी पहलों पर दांव लगाया। राज्य में कांग्रेस के अभियान का नेतृत्व करने वाले गहलोत ने वह हासिल करने की कोशिश की जो लगभग तीन दशकों में नहीं हुआ था – सत्ता में वापसी। लेकिन ऐसा नहीं हो सका। अब सवाल एक ही कि अशोक गहलोत और सचिन पायलट के लिए कांग्रेस में अब क्या भूमिका रहेगी।
कहा जा रहा है कि, राजस्थान में हार के बाद गहलोत राष्ट्रीय भूमिका पर विचार कर सकते हैं। हालांकि, दिग्गज नेता ने चुनाव से पहले एक इंटरव्यू के दौरान कहा था, “मैं अपनी आखिरी सांस तक अपना जीवन राजस्थान के लोगों को समर्पित करना चाहता हूं।”
वहीं, सचिन पायलट को लेकर कहा जा रहा है कि कांग्रेस आलाकमान पायलट को राजस्थान में बड़ी जिम्मेदारी दे सकती है। हालांकि, अब देखना होगा कि कांग्रेस नेतृत्व अशोक गहलोत और सचिन पायलट को कहां फिट करती है।