नोएडा: नोएडा के ट्विन टावरों (Twin Towers) को ध्वस्त कर दिया गया है। सुपरटेक ट्विन टावर गिराने के लिए 3700 किलोग्राम विस्फोटक का उपयोग किया गया था। 9 साल तक चले कानूनी लड़ाई के बाद ये टावर आज मात्र 15 सेकंड में धाराशायी हो गया। ट्विन टावर के गिरने के बाद आसपास धुएं का गुब्बार फैल गया।
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ध्वस्त किए गए टावरों में एपेक्स (32 मंजिला) और सेयेन (29 मंजिला) शामिल था, जो एमराल्ड कोर्ट का हिस्सा था। दोनों टावरों के निर्माण के संबंध में कई नियमों का उल्लंघन पाया गया था जिसके बाद मामला पहले इलाहाबाद हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। लंबी कानूनी लड़ाई के बाद फैसला रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन के पक्ष में गया। आइए समझते हैं कि ट्विन टावर मामले में कब-कब क्या-क्या हुआ?
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कहानी शुरू होती है 2004 से। इसी साल न्यू ओखला इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट अथॉरिटी (नोएडा) ने 2004 में हाउसिंग सोसाइटी सुपरटेक लिमिटेड को एक प्लॉट आवंटित किया जिसे एमराल्ड कोर्ट के नाम से जाना जाने लगा।
एक साल बाद 2005 में न्यू ओखला औद्योगिक विकास क्षेत्र भवन विनियम और निर्देश 1986 के अनुसार, सुपरटेक को 10 मंजिलों के साथ 14 टावरों के निर्माण की अनुमति दी गई थी। इसमें ग्रीन पार्क भी बनाया जाना था।
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जून 2006 में नई योजना के मुताबिक, ग्रीन पार्क वाले जमीन पर दो नए टावर बनाने की बात कही गई। इसके बाद टावरों की संख्या 16 हो गई। इन दो नए टावरों का एपेक्स और सेयेन रखा गया। 2009 में नोएडा अथॉरिटी ने इन दोनों टावरों की ऊंचाई को 40 मंजिल तक करने की बात कही गई। उधर, ट्विन टावर के पास मौजूद लोगों को जब इसकी जानकारी हुई तो उन्होंने आपत्ति जताई।
2011 में इलाहाबाद हाई कोर्ट पहुंचा था मामला
2011 में रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दायर की। आरोप लगाया गया था कि टावरों के निर्माण के दौरान यूपी अपार्टमेंट मालिक अधिनियम, 2010 का उल्लंघन किया गया है। मकान मालिकों ने दावा किया कि दोनों टावरों के बीच 16 मीटर से कम की दूरी थी जो कानून का उल्लंघन था। मूल योजना में संसोधन करके ग्रीन पार्क की जगह दोनों नए टावर का निर्माण किया गया था।
नोएडा में 'Twin Towers' को गिरा दिया गया है, अधिकारियों ने कहा "गिराने का काम सुरक्षा के साथ पूरा किया गया।"#TwinTowers #Noida #TwinTowersDemolition pic.twitter.com/aSaXHZiFyC
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उधर, मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट में सुनवाई शुरू होने से पहले 2012 में प्राधिकरण ने 2009 में प्रस्तावित नई योजना को मंजूरी दी, यानी ट्विन टावर को 40 मंजिल तक बनाने की मंजूरी मिल गई।
2014 में इलाहाबाद ने टावरों को गिराने का दिया था आदेश
अप्रैल 2014 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन के पक्ष में फैसला सुनाया, जबकि ट्विन टावरों को ध्वस्त करने का आदेश दे दिया। साथ ही सुपरटेक को अपने खर्च पर टावरों को ध्वस्त करने और घर खरीदारों के पैसे 14 प्रतिशत ब्याज के साथ वापस करने को कहा।
मई 2014 में नोएडा प्राधिकरण और सुपरटेक ने यह कहते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया कि ट्विन टावरों का निर्माण नियमों के अनुसार किया गया है।
अगस्त 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश को सही बताया और टावरों को ध्वस्त करने का आदेश दिया और कहा कि टावरों के निर्माण के नियमों में उल्लंघन किया गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि तकनीकी कारणों या मौसम की स्थिति के कारण किसी भी मामूली देरी को ध्यान में रखते हुए 29 अगस्त से 4 सितंबर के बीच टावरों को गिरा दिया जाए।
टावरों के गिरने के बाद डस्ट से लोगों को क्या परेशानी होगी
ट्विन टावरों को गिराए जाने के बाद डस्ट का स्थानीय लोगों के स्वास्थ्य पर कोई असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि टावरों के ध्वस्तीकरण विशेषज्ञों की निगरानी में किया जा रहा है। ध्वस्तीकरण के बाद होने वाले प्रदूषण की निगरानी के लिए अधिकारियों ने खास तरह की मशीनें लगाई हैं। इनसे प्रदूषण के स्तर को जांचा जाएगे। वहीं मलबे और डस्ट को काबू करने लिए अलग-अलग स्थानों पर फॉग गन भी लगाई गई हैं।
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