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दिल्ली सरकार ने पूछा- सरकार के प्रस्ताव में संशोधन के लिए एलजी के पास क्या अधिकार?

नई दिल्ली: दिल्ली सरकार ने फ़िनलैंड शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम पर एलजी के फ़ैसले को संविधान और सुप्रीम कोर्ट के साथ धोखाधड़ी बताया है। सरकार ने कहा कि एलजी ने एक छोटे तानाशाह की तरह काम किया है। एलजी द्वारा फिनलैंड शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम के संशोधित प्रस्ताव को चार महीने बाद वापस करने पर दिल्ली सरकार […]

Edited By : Amit Kasana | Updated: Mar 4, 2023 23:07
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AAP Vs LG

नई दिल्ली: दिल्ली सरकार ने फ़िनलैंड शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम पर एलजी के फ़ैसले को संविधान और सुप्रीम कोर्ट के साथ धोखाधड़ी बताया है। सरकार ने कहा कि एलजी ने एक छोटे तानाशाह की तरह काम किया है। एलजी द्वारा फिनलैंड शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम के संशोधित प्रस्ताव को चार महीने बाद वापस करने पर दिल्ली सरकार ने हमला बोला है। क्योंकि दिसंबर 2022 और मार्च 2023 में यह प्रशिक्षण आयोजित होने थे, लेकिन अब यह प्रस्ताव निरर्थक हो गया।

फ़ाइल पहली बार 25 अक्टूबर 2022 को एलजी कार्यालय में भेजी गई थी

सरकार का कहना है कि फिनलैंड शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम के लिए फ़ाइल पहली बार 25 अक्टूबर 2022 को एलजी कार्यालय में भेजी गई थी, ताकि वह इस बात पर विचार कर सकें और इसे 15 दिनों के भीतर भारत के राष्ट्रपति के पास भेज सकें। लेकिन नियमों का उल्लंघन करते हुए एलजी ने तीन आपत्तियां जताते हुए 10 नवंबर 2022 को फाइल दिल्ली के मुख्य सचिव को लौटा दी। शिक्षक प्रशिक्षण संबंधी गतिविधियों की देखने वाली संस्था एससीईआरटी ने उन बिंदुओं को स्पष्ट किया और 14 दिसंबर 2022 को एलजी को फाइल फिर से सौंपी। इसके बाद, एलजी ने दो और स्पष्टीकरण मांगते हुए 9 जनवरी 2023 को फाइल सीएम को वापस कर दी। तत्कालीन डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने 20 जनवरी 2023 को सीएम के माध्यम से एलजी को विस्तृत जवाब भेजा।

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आदेशों का उल्लंघन किया

सरकार के अनुसार फाइल को 4 महीने तक लटकाने के बाद संविधान और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन कर एक बार फिर प्रस्ताव वापस कर दिया है। एलजी ने अपने संशोधित प्रस्ताव में आगे के प्रशिक्षण के लिए भेजे जाने वाले शिक्षकों की संख्या को संशोधित करने की मांग की है। भविष्य में इस तरह के अंतरराष्ट्रीय प्रशिक्षण कार्यक्रमों को कम करने की भी मांग की है। एलजी की हरकतें एससीईआरटी दिल्ली की सलाह के प्रति पूरी तरह अवहेलना और अनादर दिखाती हैं।

स्थानांतरित विषय पर कोई स्वतंत्र निर्णय नहीं ले सकते हैं

सरकार ने कहा कि उपराज्यपाल की कार्यप्रणाली यह भी प्रदर्शित करती है और वह बार-बार कहते रहे हैं कि वे संविधान और उच्चतम न्यायालय के आदेशों से बंधे नहीं हैं। फाइल पर एलजी की टिप्पणी सीधे तौर पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश और संविधान का उल्लंघन करती है। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने 4 जुलाई 2018 को स्पष्ट रूप से यह कानून निर्धारित किया था कि दिल्ली के उपराज्यपाल शिक्षा सहित चुनी हुई सरकार के अधिकार क्षेत्र में आने वाले किसी भी स्थानांतरित विषय पर कोई स्वतंत्र निर्णय नहीं ले सकते हैं।

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मतभेद को दूर करने का प्रयास करना चाहिए

सरकार के अनुसार फिनलैंड शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम की फ़ाइल एलजी को अक्टूबर 2022 में यह तय करने के लिए भेजी गई थी कि क्या वह मंत्री के निर्णय से अलग राय रखना चाहते हैं। जीएनसीटीडी के संशोधित कार्य संचालन नियम 2021 के नियम 49 के अनुसार उपराज्यपाल और मंत्री के बीच किसी मामले को लेकर मतभेद होने की स्थिति में उपराज्यपाल को 15 दिनों के भीतर चर्चा के माध्यम से मतभेद को दूर करने का प्रयास करना चाहिए। यदि राय में अंतर बना रहता है तो मामला मंत्रिपरिषद को भेजा जाना है। मंत्रिपरिषद को 10 दिनों के भीतर इस मुद्दे पर विचार-विमर्श करना चाहिए और निर्णय लेना चाहिए। यदि मामला अभी भी अनसुलझा रहता है या मंत्रिपरिषद द्वारा निर्धारित समय अवधि के भीतर कोई निर्णय नहीं लिया जाता है तो नियम 50 के अनुसार अंतिम निर्णय के लिए इस मामले को एलजी द्वारा राष्ट्रपति को भेजा जाना चाहिए।

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Amit Kasana

First published on: Mar 04, 2023 11:05 PM

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