अमिताभ ओझा, पटना: बिहार में आज से जातीय जनगणना शुरू हो गई। पहले चरण में कर्मी लोगों से नाम और उनके मकान के बारे में जानेंगे। बता दें कि जनगणना के लिए पांच लाख सरकारी कर्मचारियों को लगाया गया है। इस पूरे कार्यक्रम में 500 करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे। इस दौरान लोगों की जातियों और उनके स्किल के बारे में भी जानकारी जुटाई जाएगी।
आज से जातिगत जनगणना का पहला चरण
बिहार में आज से जातीय जनगणना का पहला चरण शुरू हो गया है जो 21 जनवरी तक चलेगा। पहले चरण में करीब पांच लाख कर्मी घर-घर जाकर घर के मुखिया के नाम से लेकर परिवार के सदस्यों के बारे मे पूछेंगे। दूसरे चरण में हर घर में मौजूद परिवार की जाति और स्किल के बारे में जानकारी जुटाई जाएगी।
दूसरे चरण में 1 अप्रैल से 30 अप्रैल तक स्किल के साथ लोगों की जाति की गिनती की जाएगी। दोनों चरणों की रिपोर्ट जून 2023 में जारी की जाएगी। बता दें कि दोनों चरणों में मिलाकर बिहार में रहने वाली 204 जातियों की गिनती की जाएगी।
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गणना कर्मियों के पास 10 सवालों वाला फॉर्मेट
गणना कर्मियों के अनुसार उनके पास जो फॉर्मेट है, उसमे 10 कॉलम हैं। इन कॉलम में दिए गए सवाल पूछकर लोगों के जवाब के अनुसार उसे भरना है। हालांकि, अभी ये काम मैन्युअली किया जा रहा है। इसमें एक अपार्टमेंट को एक भवन और उसमे फ्लैट को मकान माना जाएगा। कर्मियों के अनुसार यदि एक फ्लैट मे दो परिवार है और दोनों का दरवाजा अलग है तो उन्हें दो मकान माना जायेगा।
पटना के जिलाधिकारी डॉक्टर चंद्रशेखर सिंह के अनुसार यदि कोई नौकरी करने के लिए बाहर गया है और उसका मकान पटना में है तो उनकी गिनती भी की जाएगी। कॉलम मे ऐसे लोगों के बारे में भी जानकारी लिखी जाएगी।
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बिहार में 1931 में आखिरी बार हुई थी जातिगत जनगणना
बिहार में इससे पहले ब्रिटिश शासन काल में 1931 में जाति गणना हुई थी। इसके बाद बिहार में ऐसी कोई गणना नहीं हुई है। केंद्र सरकार के द्वारा 2011 में जनगणना कराई गई थी। उसके बाद आर्थिक-सामाजिक सर्वेक्षण हुआ था। लेकिन, इसका डेटा जारी नहीं किया गया।
जातिगत जनगणना की जरूरत क्या है?
देश को 1947 को मिली आजादी के बाद पहली बार 1951 में जनगणना हुई थी। आजादी के बाद से लेकर अब तक की जनगणना में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों का आंकड़ा बताया जाता है लेकिन बाकी जातियों का डेटा नहीं पब्लिश किया जाता। ऐसे में देश की OBC आबादी और अन्य जातियों का अनुमान नहीं लगाया जा सकता है।
एक्सपर्ट्स की मानें तो देश में SC और ST वर्ग को जो आरक्षण मिलता है, उसका आधार उनकी जनसंख्या है, लेकिन डेटा नहीं होने से OBC आरक्षण का कोई मौजूदा आधार नहीं है। वहीं, जातिगत जनगणना की मांग करने वालों का दावा है कि आंकड़ों के आने के बाद पिछड़े-अति पिछड़े वर्ग के लोगों की शैक्षणिक, सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक स्थिति का पता चलेगा। फिर उनकी बेहतरी के लिए नीतियों का निर्धारण किया जा सकेगा।
बिहार सरकार क्यों करा रही जातिगत जनगणना?
बिहार सरकार का कहना है कि जातिगत जनगणना के डेटा से कल्याणकारी नीतियां तैयार करने में मदद मिलेगी। बिहार सरकार का कहना है कि गैर-एससी और गैर-एसटी से संबंधित आंकड़ों के अभाव में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की जनसंख्या का सही अनुमान लगाना मुश्किल है।
बता दें कि 1931 की जनगणना में ओबीसी की आबादी 52 फीसदी आंकी गई थी। केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने 2011 में सामाजिक-आर्थिक और जातिगत जनगणना कराई थी, लेकिन जाति के आंकड़े जारी नहीं किए गए थे।
बिहार विधान सभा ने जातिगत जनगणना के पक्ष में 2018 और 2019 में दो सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित किए। जून 2022 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में बिहार में एक सर्वदलीय बैठक हुई, जिसमें सर्वसम्मति से इसे आगे बढ़ाया गया।
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जातिगत जनगणना पर केंद्र सरकार का क्या रुख है?
गृह मंत्रालय ने पिछले साल राज्यसभा और मानसून सत्र में जातिगत जनगणना से इनकार किया था। एक सवाल के जवाब में गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने कहा था कि हर बार की तरह इस बार भी केवल SC और ST कैटेगरी की ही जातिगत जनगणना होगी।
जातिगत जनगणना पर उठ रहे सवाल
वैसे तो बिहार में जातीय जनगणना को लेकर बिहार विधान सभा मे दो बार सर्वसम्मति से प्रस्ताव पास किया गया, तब बीजेपी भी सरकार में थी, लेकिन अब बीजेपी के नेता इस पर सवाल उठा रहे हैं। बिहार विधानसभा मे नेता प्रतिपक्ष विजय सिन्हा के अनुसार ये सोचने की बात है कि 1931 के बाद आजाद भारत के किसी सरकार ने जातीय जनगणना की आवश्यकता क्यों नहीं समझी? मोदी सरकार बनने के बाद मानो जैसे जाति फैक्टर धीरे-धीरे कमजोर होने लगा, लोग विकास की बात करने लगे। तब क्षेत्रीय दलों का जातीय आधारित राजनीति खतरे में पड़ गयी और वो फिर से समाज को आपस में लड़ाकर अपना उल्लू सीधा करना चाहते हैं।
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