बिहार चुनाव के लिए NDA में सीट बंटवारा हो गया है. कई लंबी बैठकों, नाराजगी, जिद, मान-मनुव्वल, वादे आदि के बाद आखिरकार सीटों का बंटवारा तय हो गया और सभी दल फिलहाल तो इससे सहमत दिखाई दे रहे हैं. हालांकि यह इतना आसान नहीं था. जैसे ही चुनाव आयोग ने चुनाव तारीखों का ऐलान किया, बिहार की राजनीति में हलचल तेज हो गई. सभी छोटे दल अपने कलेवर में आ गए.
NDA में चिराग पासवान को लेकर तरह-तरह की अटकलें लगाई गईं. उनकी नाराजगी की खूब खबरें आईं. बताया गया कि चिराग पासवान 40 से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन NDA से इतनी सीटों का मिलना मुश्किल था. बीजेपी के तमाम नेताओं ने उन्हें मनाने, समझाने की कोशिश की, लेकिन चिराग जिद पर अड़े रहे.
विनोद तावड़े के साथ चिराग के घर पहुंचे धर्मेंद्र प्रधान
बीजेपी के बिहार प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान हैं, ऐसे में उनके ऊपर चिराग को मनाने की सबसे बड़ी जिम्मेदारी थी. बताया जा रहा है कि धर्मेंद्र प्रधान ने NDA के लगभग सभी सहयोगियों से बैठक कर ली थी, लेकिन चिराग पासवान दूरी बनाए हुए थे. बात ना बनती देख केंद्रीय मंत्री और बिहार बीजेपी के प्रभावी नेता धर्मेंद्र प्रधान और बीजेपी महासचिव विनोद तावड़े चिराग से मिलने उनके आवास पर गए, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. चिराग अपनी जिद पर अड़े रहे.
बताया जा रहा है कि तनाव तब बढ़ गया था, जब चिराग ने अपने करीबी सांसद अरुण भारती को सीटों पर बातचीत के लिए नियुक्त कर दिया. तब मीडिया में भी खबरें आ गईं कि चिराग NDA से नाराज हैं और पाला बदल सकते हैं. हालांकि इस बीच केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय की एंट्री हुई. चिराग को 25 सीट ऑफर की गईं, लेकिन वे नहीं माने. इसके बाद चिराग के आवास पर एक बड़ी बैठक हुई, जिसमें धर्मेंद्र प्रधान समेत कई नेता शामिल थे.
आखिरकार मान गए चिराग
बताया जा रहा है कि लंबी चली इस बैठक में आखिरकार चिराग पासवान 29 सीटों पर मान गए थे. बैठक खत्म होने के बाद धर्मेंद्र प्रधान और चिराग बाहर निकले, लेकिन मीडिया से कोई बातचीत नहीं हुई. दोनों के हाव-भाव सकारात्मक थे. कयास लगाए जाने लगे कि दोनों की बन गई है. अगले दिन इसका ऐलान भी हो गया और NDA एकजुट दिखाई दे रहा है. बताया जा रहा है कि बिहार चुनाव में सीट बंटवारे की जिम्मेदारी और NDA को एकजुट रखने में धर्मेंद्र प्रधान की बड़ी भूमिका है.
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धर्मेंद्र प्रधान बीजेपी के वरिष्ठ नेता हैं और एक कुशल संगठनकर्ता हैं. बिहार राजनीति में उनकी अच्छी पैठ है और अच्छी समझ रखते हैं. धर्मेंद्र प्रधान एक बार नहीं बल्कि कई बार पार्टी में चल रही क्राइसिस को कंट्रोल कर चुके हैं और कठिन परिस्थितियों से बाहर निकाल चुके हैं. बिहार से पहले वह उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, हरियाणा और ओडिशा के चुनाव में अहम भूमिका निभा चुके हैं. कहा जाता है कि सौम्य व्यवहार, शांत रवैये और संगठन में लंबा अनुभव होने होने की वजह से बीजेपी कई बार उन्हें आगे कर चुकी है.









