Mokama assembly seat: बिहार की मोकामा विधान सभा सीट से नव निर्वाचित विधायक अनंत सिंह की जमानत याचिका कोर्ट ने ख़ारिज कर दी है. दुलारचंद यादव हत्या मामले में जेल में बंद अनंत सिंह ने सिविल कोर्ट में जमानत याचिका दाखिल की थी. याचिका में अनंत सिंह ने खुद को निर्दोष बताया था. ऐसी स्थिति में अब नवनिर्वाचित विधायक अनंत सिंह का क्या होगा, आपको बताते हैं कि कानून क्या कहता है?
क्या कहता है नियम?
जन सुराज पार्टी के समर्थक दुलार चंद यादव की हत्या के मामले में अनंत सिंह का नाम सामने आया था. हालाकि अभी तक इस मामले में पुलिस की तरफ से कोई चार्जशीट पेश नहीं की गई है, लिहाजा वह ज्यूडिशियल कस्टडी में हैं, न कि सजायाफ्ता कैदी हैं. उन्होंने मौजूदा बिहार विधानसभा के चुनावों में मोकामा विधान सभा सीट पर जीत दर्ज की थी और आरजेडी की वीणा देवी को 28,000 से अधिक वोटों से हराया. वैसे भारतीय संविधान और बिहार विधानसभा के नियमों के अनुसार, नव-निर्वाचित विधायक को शपथ लेने की कोई सख्त समय-सीमा नहीं है, लेकिन अगर छह महीने तक शपथ नहीं ली गई या विधायक सदन की कार्यवाही में 6 महीने तक पेश नहीं हुआ तो उसकी सदस्यता चली जाती है. अनंत सिंह इस समय हत्या के आरोप में बेउर जेल में बंद हैं.
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5 साल पहले भी चुनाव जीतने के दौरान जेल में थे अनंत सिंह
वैसे अनंत सिंह बिहार और देश के अकेले ऐसे जनप्रतिनिधि होंगे जो पांच साल पहले भी चुनाव जीतने के समय जेल में थे. जेल में बंद नेता के लिए शपथ ग्रहण के नियमों के अनुसार, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 188 के अनुसार, राज्य विधानसभा के प्रत्येक सदस्य को अपना पद ग्रहण करने से पहले निर्धारित शपथ लेना जरूरी है. जेल में बंद निर्वाचित व्यक्ति अगर सजायाफ्ता नहीं है तो उसके लिए शपथ लेने की प्रक्रिया के लिए जेल में बंद उम्मीदवार को शपथ ग्रहण के लिए अदालत से अस्थायी जमानत यानि अंतरिम जमानत या पैरोल लेनी पड़ती है. इससे वो विधानसभा पहुंचकर शपथ ले सकते हैं. शपथ के बाद वापस उन्हें जेल लौटना पड़ता है. यदि पैरोल न मिले, तो कुछ मामलों में स्पीकर या अधिकृत अधिकारी जेल में जाकर ही शपथ दिला सकते हैं, लेकिन ऐसा आमतौर पर होता नहीं. इसके अलावा अगर अदालती कार्यवाही के बाद उन्हें दोषी पाया गया और दो साल या इससे अधिक की सजा सुनाई गई तो प्रतिनिधित्व ऑफ द पीपल एक्ट, 1951 के तहत उन्हें अयोग्य मान लिया जाएगा. तब उनकी विधायकी चली जाएगी.
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