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बिहार

जाति जनगणना का मुद्दा बिहार चुनाव से पहले क्यों हावी? नीतीश के इस फैसले के क्या हैं मायने

Caste Census Effect Bihar Elections: बिहार में जाति जनगणना का मुद्दा 2025 के विधानसभा चुनाव से पहले प्रमुखता से उभरा है। नीतीश सरकार ने बिहार में सवर्ण आयोग का गठन किया है, इससे पहले कांग्रेस ने बिहार में दलित प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव किया था। चुनावी साल में हर पार्टी इसी जातीय फैक्टर को ध्यान में रखकर अपने मुद्दे तय करती है। प्रधानमंत्री के भाषण में ऑपरेशन सिंदूर तो था ही, लेकिन जातीय जनगणना का मुद्दा छेड़कर प्रधानमंत्री ने चुनावी मुद्दों पर मोहर लगा दी।

Author Written By: News24 हिंदी Author Edited By : Vijay Updated: May 31, 2025 17:23
BJP caste census decision
BJP caste census decision

Caste Census Effect Bihar Elections: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जातीय जनगणना के मायने समझते हैं, इसी सियासी लाभ कैसे लिया जाना है, इसकी उन्हें अच्छी खासी समझ है। यही वजह है कि प्रधानमंत्री मोदी ने वर्ग विशेष की बात की तो नीतीश कुमार ने इसके लिए विशेष आभार जताया। क्योंकि, जिस पिछड़े और दलित वर्ग की बात पीएम मोदी ने की है। वही वर्ग महागठबंधन का मजबूत वोटबैंक रहा है और जातीय जनगणना के जरिये इसी वोटबैंक में सेंध लगाने की तैयारी है। 2023 में नीतीश कुमार के नेतृत्व में हुए बिहार जाति सर्वेक्षण के अनुसार, राज्य की जनसंख्या में 63.1% ओबीसी (पिछड़ा वर्ग) और अति पिछड़ा वर्ग (EBC) हैं, जिसमें EBC 36% और यादव 14.3% हैं। बिहार की राजनीति में जाति आधारित गठबंधन और वोटबैंक महत्वपूर्ण हैं।

बिहार में सिंदूर, लेकिन जाति से कितनी दूर?

बिहार में सिंदूर, लेकिन जाति से कितनी दूर? बिहार जहां चुनाव आते आते मुद्दे गौण हो जाते हैं और जाति हावी हो जाती है। नीतीश सरकार के एक फैसले ने इसे फिर साबित कर दिया। दरअसल बिहार चुनाव से पहले नीतीश ने सवर्ण आयोग का गठन किया जो उच्च जातियों के विकास के लिए काम करेगा, हालांकि ये अलग बात है कि बिहार में सवर्ण आयोग पहले भी हुआ करता था, लेकिन हाल के सालों में उसी भूमिका ना के बराबर थी, लेकिन अब फिर इस दिशा में ठीक चुनाव के पहले सोचा गया है। अब कुछ महीने पहले याद कीजिए, जब कांग्रेस ने बिहार में दलित प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव किया था। मायने ये हुआ कि चुनावी साल में हर पार्टी इसी जातीय फैक्टर को ध्यान में रखकर अपने मुद्दे तय करती है। बहरहाल प्रधानमंत्री ने बिहार के दो दिवसीय दौरे पर बीजेपी कार्यकर्ताओं को उत्साह से भर दिया। ऐसे में सवाल ये कि क्या इस बार बिहार चुनाव को सिंदूर, जाति से दूर ले जाने में सक्षम होगा?

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राहुल गांधी ने लोकसभा में उठाया था मुद्दा

लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी बीते करीब दो वर्षों से जातीय जनगणना के मुद्दे को उठा रहे थे। उन्होंने संसद में भी इस मांग को जोरशोर से उठाया। उसमें राहुल गांधी को समाजवादी पार्टी, आरजेडी, बीजेडी, बीएसपी और एनसी जैसे दलों का साथ भी मिला और 30 अप्रैल 2025 को केंद्र सरकार को जातीय जनगणना कराने का ऐलान करना पड़ा। यह फैसला बिहार चुनाव से ठीक पहले लिया गया, जिसे राजनीतिक विश्लेषकों ने एक रणनीतिक कदम माना है। यह विपक्ष, खासकर कांग्रेस और राजद की लंबे समय से चली आ रही मांग को कमजोर करने का प्रयास है, जो इसे सामाजिक न्याय के लिए जरूरी बता रहे थे।

राहुल गांधी को दलित छात्रों से मुलाकात से रोका

इसी महीने 15 मई को राहुल गांधी दरभंगा दौरे पर गए थे। तब वो हाथ में संविधान की कॉपी लिए सामाजिक न्याय और सिस्टम में आबादी के मुताबिक दलितों पिछड़ों को हिस्सेदारी देने की बात कही। तब पुलिस प्रशासन ने राहुल गांधी को ये कहकर दलित छात्रों से मुलाकात की इजाजत नहीं दी थी कि राहुल ने इसकी परमिशन नहीं ली थी। हालांकि तमाम झंझावातों से दो दो हाथ करते हुए राहुल ने छात्रों से संवाद कर ही लिया। पीएम मोदी, नीतीश कुमार, बीजेपी और आरएसएस को अपना संदेश पहुंचाया। राहुल गांधी ने गत 15 मई को कहा था कि जाति जनगणना सही तरीके की जाति जनगणना जो हमने तेलंगाना में किया। दूसरी बात हिंदुस्तान का कानून है कि प्राइवेट कॉलेज और यूनिवर्सिटी में आरक्षण होना चाहिए।

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विपक्ष की रणनीति और दबाव

राजद नेता तेजस्वी यादव और कांग्रेस ने जाति जनगणना को सामाजिक न्याय और आरक्षण विस्तार के लिए एक प्रमुख मुद्दा बनाया है। तेजस्वी ने दावा किया कि बिहार में जाति सर्वेक्षण उनकी पहल थी और केंद्र का फैसला उनकी जीत है। विपक्ष इसे 65% आरक्षण को नौवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग से जोड़ रहा है जो बिहार में पहले ही लागू हो चुका है। केंद्र का जाति जनगणना का फैसला बीजेपी-जदयू गठबंधन के लिए विपक्ष के ‘पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक’ (PDA) नैरेटिव को कमजोर करने का एक प्रयास है, जो 2024 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में प्रभावी रहा था।

नीतीश के फैसले के मायने

जाति जनगणना का मुद्दा बिहार चुनाव से पहले इसलिए हावी है, क्योंकि यह सामाजिक न्याय, आरक्षण, और जातिगत वोटबैंक की राजनीति से सीधे जुड़ा है। नीतीश कुमार का 2023 का जाति सर्वेक्षण और केंद्र का हालिया फैसला इस मुद्दे को और गरम कर रहा है। यह बीजेपी-जदयू गठबंधन के लिए एक रणनीतिक कदम है, जिसका उद्देश्य विपक्ष के सामाजिक न्याय के एजेंडे को कमजोर करना और ओबीसी-दलित वोटों को अपने पक्ष में करना है। नीतीश का यह कदम उनकी राजनीतिक प्रासंगिकता को बनाए रखने और गठबंधन को मजबूत करने में महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। नीतीश कुमार ने बिहार में जाति सर्वेक्षण करवाकर सामाजिक न्याय के मुद्दे पर अपनी स्थिति मजबूत की। केंद्र के फैसले ने उनकी इस पहल को राष्ट्रीय स्तर पर वैधता दी, जिससे उनकी छवि एक दूरदर्शी नेता के रूप में उभरी।

बिहार का जातीय समीकरण

बिहार में जाति आधारित वोटबैंक, जैसे यादव-मुस्लिम (राजद का आधार), कुर्मी-कोइरी (जदयू का आधार) और महादलित समुदाय, चुनावी परिणाम तय करते हैं। बिहार का जातीय समीकरण कुछ इस तरह का है, जिसमें अन्य पिछड़ा वर्ग की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा है और इसी वर्ग को साधकर राजनीतिक दल बिहार की सत्ता हासिल करते रहे हैं। हालांकि, बिहार विधानसभा चुनाव में अभी चार महीने का समय बचा है, लेकिन सीएम फेस को लेकर फाइट एनडीए और इंडिया ब्लॉक दोनों तरफ देखी जा रही है। बिहार में मुख्य मुकाबला एनडीए और इंडिया ब्लॉक के बीच है। लेकिन प्रशांत किशोर की जन सुराज, शिवदीप लांडे की हिंद सेना जैसी पार्टियां तीसरे मोर्चे के तौर पर तैयार हैं। ऐसे में जातीय जनगणना का गणित कितना सटीक बैठेगा, देखना दिलचस्प होगा।

बड़ा सवाल ये है कि जातीय जनगणना से होगा क्या

जातीय जनगणना पर बहुत सोच समझकर औऱ स्ट्रैटजी के तहत उठाया कदम है ये मोदी सरकार का, जिसका सबसे पहला प्रभाव तो ये हुआ है कि सरकार के खिलाफ विपक्ष का सबसे बड़ा मुद्दा अचानक से गौण हो गया है। लेकिन इसके साथ समझना ये भी जरूरी हो जाता है कि जातीय जनगणना क्यों जरूरी? क्योंकि, बड़ा सवाल ये है कि जातीय जनगणना से होगा क्या ।

जातीय जनगणना क्यों जरूरी ?

  • जाति के आधार पर आबादी की गिनती होगी
  • किसकी कितनी हिस्सेदारी, कौन वंचित रहा इसका पता चलेगा
  • जातियों की उपजातियों का भी पता लगेगा
  • जातियों की सामाजिक-स्थिति का पता लगेगा

अगले साल जातीय जनगणना होने का अनुमान

मोदी सरकार की मंजूरी के बाद वर्ष 2026 में जातीय जनगणना होने का अनुमान है। हालांकि, इसके लिए तैयारियों में समय लगेगा। कयास लगाए जा रहे हैं कि जाति जनगणना की शुरुआत सितंबर में की जा सकती है। हालांकि जनगणना की प्रोसेस पूरी होने में एक साल लगेगा। ऐसे में जनगणना के फाइनल आंकड़े 2026 के अंत या 2027 की शुरुआत में मिल सकेंगे। हालांकि, इससे पहले भी भारत में जातीय जनगणना हो चुकी है।

कहां और कब जातीय जनगणना ?

UPA सरकार ने साल 2011 में जनगणना के दौरान आधारित आंकड़े जुटाए थे, लेकिन सर्वे के बाद इन आंकड़ों पर रोक यह कहते हुए लगा दी गई कि इसमें खामियां है। बाद में इसे सार्वजनिक भी नहीं किया गया। हालांकि इसी साल राजस्थान में जातीय जनगणना पर रोक के बाद भी सामाजिक-आर्थिक आंकड़े ही सार्वजनिक किये गये। हालांकि OBC की रिपोर्ट सार्वजनिक करने की मांग की गई।

साल 2015 कर्नाटक में जातिगत आधार पर जनगणना हुई और सामाजिक-शैक्षणिक सर्वेक्षण नाम दिया गया। लेकिन फिर नाराजगी से बचने के लिए आंकड़े जारी नहीं किये गये। तब भी OBC की रिपोर्ट सार्वजनिक करने की मांग हुई थी। अब किसी राज्य में नहीं बल्कि देशभर में जातीय जनगणना होगी। जिसका ऐलान बिहार की धरती से प्रधानमंत्री मोदी ने एक बार फिर किया है। माना यही जा रहा है कि इसके जरिये बिहार में सियासी समीकरण साधने की तैयारी है।

First published on: May 31, 2025 05:04 PM

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