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नए प्रभारी, नए अध्यक्ष और तेवर भी नया! बिहार चुनाव से पहले कांग्रेस की क्या है रणनीति?

बिहार में साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। इसे लेकर सभी राजनीतिक पार्टियों ने अपनी-अपनी तैयारी तेज कर दी है। नए प्रभारी और नए अध्यक्ष के साथ बिहार में कांग्रेस का तेवर भी नया नजर आ रहा है। आइए जानते हैं कि कांग्रेस की क्या है रणनीति?

Author Edited By : Deepak Pandey Updated: Mar 23, 2025 18:01
KANHIYA KUMAR
बिहार चुनाव से पहले कांग्रेस की क्या है रणनीति?

अमिताभ कुमार ओझा, बिहार

नए प्रभारी, नए अध्यक्ष और तेवर भी नया नया! जी हां बिहार कांग्रेस इन दिनों नए अंदाज में खुद को पेश कर रही है। कांग्रेस के इस बदले तेवर से यदि कोई सकते में है तो वो है आरजेडी। और हो भी क्यों नहीं। नए प्रभारी बनने के बाद कांग्रेस के मिजाज में जो बदलाव आया है वो सहज भी नहीं है। कांग्रेस के बिहार प्रभारी बनने के बाद कृष्ण अल्लावारू दो महीने बीत जाने के बाद भी आरजेडी प्रमुख से मिलने तक नहीं गए, यहां तक कि तेजस्वी यादव से भी उनकी मुलाकात नहीं हुई तो प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद राजेश कुमार भी राजद अध्यक्ष के पास नहीं गए। इससे ये कयास भी लगाए जा रहे हैं कि कही अब कांग्रेस दिल्ली और हरियाणा की तरह बिहार में भी तो अकेले चलने की तैयारी में तो नहीं है।

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बिहार में पिछले दो महीनों के दौरान कांग्रेस पार्टी में कई बदलाव आए। जनवरी में प्रदेश प्रभारी को बदल दिया गया। कृष्णा अल्लावारू को नया प्रदेश प्रभारी बनाया गया। प्रभारी बनने के बाद बिहार आए कृष्णा अल्लावारू ने साफ कर दिया कि कांग्रेस पार्टी में रेस के घोड़े को रेस के मैदान में और शादी के घोड़े को शादी में ही दौड़ाया जाएगा। चरण वंदना करने वालों की कोई जगह नहीं होगी। कृष्णा अल्लावारू की सक्रियता बढ़ने के साथ ही प्रदेश अध्यक्ष रहे अखिलेश प्रसाद सिंह असहज होने लगे। इसी बीच कन्हैया कुमार की पलायन रोको, नौकरी दो पदयात्रा से अखिलेश सिंह की नाराजगी भी दिखी। पटना में हुए प्रेस कॉन्फ्रेंस में अखिलेश सिंह की गैर मौजूदगी ने कई सवाल खड़े किए। हालांकि, जब बेतिया से यात्रा की शुरुआत हुई तो अखिलेश सिंह मौजूद रहे, लेकिन इसके बाद अचानक प्रदेश अध्यक्ष के पद से अखिल प्रसाद सिंह की छुट्टी कर दी गई। कुटुम्बा से पार्टी के विधायक और दलित चेहरे राजेश कुमार को नया प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। नए अध्यक्ष के साथ मीडिया के सामने आए कृष्णा अल्लावारू ने कहा कि बिहार कांग्रेस अब एक्शन मूड में है। अब एक्स रे भी होगा और इलाज भी होगा।

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गठबंधन पर बोले- समय आने पर जवाब देंगे

कृष्णा अल्लावारू ने रविवार को पटना में पार्टी प्रवक्ता पवन खेड़ा और प्रदेश अध्यक्ष राजेश कुमार के साथ प्रेस कॉन्फ्रेस की। इस दौरान उनसे यही सवाल किया गया कि क्या इस बार कांग्रेस गठबंधन में रहेगी या अकेले चुनाव में जाएगी, लेकिन इन तमाम सवालों के जवाब में बस यही कहा गया कि समय आने पर जवाब दिया जाएगा।

क्यों हटाए गए अखिलेश प्रसाद सिंह?

अब गठबंधन को लेकर इसलिए सवाल उठ रहे हैं, क्योंकि नए प्रभारी कृष्णा अल्लावारू के आने के बाद से ही पार्टी के स्टैंड में कई बदलाव आए हैं। पार्टी प्रदेश अध्यक्ष पद से अखिलेश प्रसाद सिंह को हटाया जाना भी इसी का हिस्सा है। अखिलेश प्रसाद सिंह लालू परिवार के बेहद करीबी माने जाते हैं। अखिलेश सिंह कन्हैया कुमार की पदयात्रा को लेकर नाराज थे। यही नहीं इससे पहले पप्पू यादव की पार्टी में जॉइनिंग के बाद भी अपनी नाराजगी दिखाई थी।

लालू-तेजस्वी से अबतक नहीं मिले कृष्णा अल्लावारू

कांग्रेस के बदलते तेवर को इससे भी जोड़कर देखा जा रहा है कि ऐसा पहली बार हुआ है कि प्रदेश प्रभारी बनने के बाद अब तक कृष्णा अल्लावारू 10 बार से ज्यादा बिहार आए, लेकिन उनकी राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव से मुलाकात तक नहीं हुई है। प्रदेश अध्यक्ष भी उनसे मिलने नहीं गए। कांग्रेस प्रभारी ने इस सवाल को टाल दिया। कांग्रेस नेताओं ने रविवार को भी गठबंधन को लेकर तो कोई जवाब नहीं दिया, लेकिन यह भी सीधे तौर पर नहीं कहा कि गठबंधन में रहेंगे।

बिहार में अपनी शर्तों पर राजनीति करना चाहती है कांग्रेस

राजनीतिक विश्लेषक डॉ. संजय कुमार के अनुसार, कांग्रेस पार्टी अब बिहार में अपनी शर्तों पर राजनीति करना चाहती है। विधानसभा चुनाव के दौरान सीटों का समझौता भी कांग्रेस पार्टी अपनी शर्तों पर करेगी। अखिलेश सिंह को हटाने के पीछे भी उद्देश्य यही है कि कांग्रेस बिहार में राष्ट्रीय जनता दल की बी टीम बनाकर रहना नहीं चाहती है। इसके अलावा अखिलेश सिंह की पप्पू यादव और कन्हैया कुमार से अदावत भी एक प्रमुख वजह रही।

1990 के बाद सत्ता में नहीं लौटी कांग्रेस

वैसे देखा जाए तो बिहार में 1990 में सत्ता से बाहर हुई कांग्रेस फिर कभी अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो सकी। पिछले चार विधानसभा चुनावों की बात करें तो 2020 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 70 सीटों पर लड़ी और 19 सीट पर जीत मिली। इससे पहले 2015 में कांग्रेस ने 41 सीट पर उम्मीदवार उतारा था, जिनमें से 27 पर पार्टी के उम्मीदवार जीते। वहीं, 2010 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ी थी और सभी 243 सीट पर उम्मीदवार उतारकर सिर्फ 4 पर जीत हासिल कर सकी थी जबकि 2005 के नवंबर में हुए चुनाव में 51 सीट पर चुनाव लड़कर सिर्फ 9 सीट जीत सकी थी। आंकड़ों से साफ है कि जब भी कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ी, उसकी स्थिति खराब रही।

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Edited By

Deepak Pandey

First published on: Mar 23, 2025 06:00 PM

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