Track and Field Event: ओलंपिक से लेकर विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप तक सभी टूर्नामेंट में रनर एंटीक्लॉक दिशा में ही दौड़ते हुए नजर आते हैं. ये नियम कोई परंपरा की कारण नहीं है, बल्कि इसके पीछे साइंस और प्रकृति का बड़ा नियम है. पहले खिलाड़ी क्लॉक वाइज ही दौड़ते थे, लेकिन कई समस्याओं के कारण साल 1913 में इस नियम को बदलना पड़ा. ट्रैक पर क्लॉक वाइज दौड़ने पर कई खिलाड़ियों को इंजरी की समस्या से जूझना पड़ रहा था. जिसके कारण ही खिलाड़ियों के हिट में नया नियम बनाना पड़ा.
खिलाड़ियों को हो रही थी इंजरी
एथलेटिक्स ट्रैक पर क्लॉक वाइज दौड़ने की स्थिति में सभी एथलीट बिल्कुल भी सहज नहीं थे. इसके अलावा खिलाड़ी दर्द की भी शिकायत कर रहे थे. जिसको ध्यान में रखते हुए ही इंटरनेशनल स्पोर्ट्स काउंसिल ने 1913 में ट्रैक पर एंटी क्लॉक दौड़ने का नियम बनाया, इसके पीछे साइंस है. मानव शरीर की संरचना ऐसी है कि अधिकतर लोग दाएं पैर की तुलना में बाएं पैर पर ज्यादा जोर डालते हैं. ऐसे में जब वो बाईं ओर मुड़ते हैं, तो उनका बैलेंस सही रहता है. इसके अलावा बाएं ओर मुड़ने पर एथलीट को संतुलन ओर गति बेहतर होती है. ह्रदय भी शरीर के बाएं हिस्से में होता है. जिसके कारण शरीर में रक्त प्रवाह भी बांए से दांए बहता है. जिसके कारण लोग ज्यादा सहज होते हैं.
From NCAA D3 to D1 Champion!!
— Track & Field Gazette (@TrackGazette) June 8, 2024
Cheickna Traore (Penn) 🇨🇮 was untouchable in the NCAA men 200m final, winning in a time of 19.95s (-0.1).pic.twitter.com/suSQ2vvMGL
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शरीर की संरचना का है असली खेल
रिसर्च के मुताबिक लगभग 90 प्रतिशत लोग अपने दाएं पैर और हाथ का अधिक उपयोग करते हैं. एंटी क्लॉक वाइज दिशा में दौड़ते समय दाएं पैर को अधिक थक्का देने का मौका मिलता है, जिससे स्पीड अपने आप ही बेहतर होती है. प्रकृति भी एंटी क्लॉक वाइज चलती है. अगर हम ब्रह्मांड पर नजर डाले तो एंटी क्लॉक वाइज पर घूमना कोई अपवाद नहीं, बल्कि एक तरह से नियम है. पृथ्वी अपनी धुरी पर भी एंटी क्लॉक वाइज घूमती है. इसके अलावा चंद्रमा भी पृथ्वी के एंटी क्लॉक वाइज ही घूमता है. सूर्य और सौरमंडल भी आकाशगंगा के चारों ओर एंटी क्लॉक वाइज घूमता है. जिसके कारण ही एथलीट के लिए भी इसी दिशा में दौड़ना सबसे लाभदायक होता है. स्पीड के मामले में तो उसैन बोल्ट का तो कोई तोड़ नहीं है.
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