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आखिर क्यों नहीं मिला Vinesh Phogat को सिल्वर मेडल? इन 10 प्वाइंट में समझें फैसला

Paris Olympics 2024 में कुश्ती की स्पर्धा में फाइनल मैच से पहले 100 ग्राम ज्यादा वजन होने के चलते भारत की स्टार पहलवान विनेश फोगाट को अयोग्य घोषित कर दिया गया था, जिसके खिलाफ विनेश फोगाट ने खेल पंचाट न्यायालय में अपील दायर की थी। खेल पंचाट न्यायालय ने भारतीय पहलवान के केस को खारिज कर दिया था। अब इस पर सीएएस ने विस्तृत जानकारी दी है कि आखिर क्यों उनकी अपील को खारिज किया गया। 

Edited By : Mashahid abbas | Updated: Aug 20, 2024 11:02
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vinesh phogat
Vinesh Phogat.

Paris Olympics 2024 में भारत की स्टार महिला पहलवान विनेश फोगाट ने लगातार 3 मैच जीतकर कुश्ती की 50 किग्रा फ्रीस्टाइल वर्ग की स्पर्धा में फाइनल तक का सफर तय किया था और अपना सिल्वर मेडल पक्का कर लिया था। विनेश फोगाट का फाइनल मैच अगले दिन होना था, जिसमें सुबह उनका वजन किया गया और उन्हें 100 ग्राम ज्यादा वजन का पाए जाने पर उन्हें पेरिस ओलंपिक के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया। इस फैसले के खिलाफ विनेश फोगाट ने खेल पंचाट न्यायालय में अपील की थी कि उन्हें इस स्पर्धा में संयुक्त रूप से सिल्वर मेडल दिया जाना चाहिए।

लेकिन, सीएएस ने विनेश फोगाट की इस अपील को खारिज कर दिया था। हालांकि सीएएस ने अपील को खारिज किए जाने की वजह नहीं बताई थी, लेकिन अब सीएएस ने बताया है कि विनेश फोगाट की अपील को क्यों खारिज किया गया। खेल पंचाट न्यायालय ने विनेश फोगाट के पक्ष में फैसला क्यों नहीं दिया, इसको लेकर सीएएस ने 10 प्वाइंट्स में अपना फैसला दिया है। यहां उन सभी 10 प्वाइंट्स को आप देख सकते हैं।

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1. इस बात में तो कोई विवाद नहीं है कि आवेदक (विनेश फोगाट) दूसरी बार (फाइनल से पहले) वजन मापने के दौरान असफल साबित हुईं। उनका वजन 50 किग्रा भार वर्ग से ज्यादा पाया गया। इसमें उनका (विनेश) मानना ये था कि ये एक छोटी सी अधिकता (100 ग्राम वजन) है। इसके कारण के रूप में उन्होंने मासिक धर्म, वॉटर रेटेन्सन, हाइड्रेट की जरूरत और ओलंपिक विलेज की यात्रा को गिनाया था।

2. एथलीट्स के लिए समस्या ये है कि वजन को लेकर नियम साफ हैं और सभी के लिए समान भी हैं। वजन कितना ज्यादा है, ये देखने के लिए कोई सहनशीलता प्रदान नहीं की गई है। ये सिंगलेट (कुश्ती के दौरान पहनने वाली जर्सी) के वजन की भी अनुमति नहीं देता है। ये साफ है कि एथलीट को ही ये देखना होगा कि उसका वजन नियम के अनुसार ही रहे।

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3. नियमों में कोई विवेकाधिकार नहीं दिया गया है। इसे लागू करने के लिए Sole Arbitrator पूरी तरह से बाध्य हैं। Sole Arbitrator इस दलील में भी दम देखता है कि फाइनल से पहले जो वजन माप किया गया था क्या वो नियम के खिलाफ था। ऐसे में आवेदक को सिर्फ फाइनल के लिए अयोग्य माना जाना चाहिए। यानी उन्हें सिल्वर दिया जाना चाहिए, लेकिन दुर्भाग्य से आवेदक के लिए नियमों में ये भी सुविधा भी प्रदान नहीं की गई है।

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4. एथलीट की ओर से ये अनुरोध किया गया कि अपील किए गए निर्णय को इस तरह से अलग रखा जाए कि नियमों के अनुच्छेद 11 में दिए गए परिणाम लागू न हों या अनुच्छेद 11 को इस तरह से समझा जाए कि ये सिर्फ टूर्नामेंट के आखिरी दौर पर लागू हो और यह टूर्नामेंट के शुरुआत से ही लागू न हो। ये विवाद का विषय नहीं है कि एथलीट दूसरे वजन माप में असफल रहीं। आवेदक ने नियमों के अनुच्छेद 11 को चुनौती नहीं दी। इसका मतलब ये है कि फैसला कानूनी रूप से लिया गया था और अनुच्छेद 11 इस मामले पर लागू होता है।

5. एथलीट की ओर से कहा गया था कि वजन के नियमों में दी गई लिमिट को उस दिन की उसकी व्यक्तिगत परिस्थितियों के अनुसार बदला जाए और उस लिमिट पर सहनशीलता लागू की जाए। यानी 100 ग्राम वजन को ज्यादा न समझा जाए और उन्हें फाइनल में खेलने की अनुमति दी जाए। लेकिन नियमों को देखा जाए तो उसमें ऐसी कोई छूट देने का प्रावधान ही नहीं है। नियम साफ हैं कि 50 किग्रा एक लिमिट है। इसमें किसी भी तरह की सहूलियत देने या विवेकाधिकार प्रदान करने का कोई प्रावधान ही नहीं है।

6. एथलीट का पहले दिन वजन हुआ जिसमें वह सफल रहीं थीं। यानी वजन नियम के अनुसार था। दूसरे दिन भी उनका वजन होना था, जिसमें वो असफल हुईं और नियमों के अनुच्छेद 11 के लागू होने के कारण वो टूर्नामेंट के लिए अयोग्य घोषित हो गईं और बिना किसी रैंक के आखिरी स्थान पर पहुंच गई, जिससे उनका सिल्वर मेडल भी छीन लिया गया। जो उन्होंने सेमीफाइनल जीतने के साथ ही पक्का कर लिया था। अब एथलीट की ओर से दलील दी गई कि वो पहले दिन सफल रहीं और सिल्वर मेडल तक पहुंची इसलिए उनके पहले दिन के परिणाम को देखते हुए सिल्वर मेडल दिया जाए।

7. एथलीट ने ये भी माना कि नियमों के लिहाज से वो अयोग्य हो गई हैं। इस कारण सेमीफाइनल में उनसे हारने वाली एथलीट फाइनल खेलने के लिए योग्य हो गई हैं। उन्हें ही सिल्वर या गोल्ड मेडल प्रदान किया गया। एथलीट ये नहीं चाहती कि कोई अन्य पहलवान अपना मेडल खो दे। वो संयुक्त रूप से दूसरा सिल्वर मेडल चाहती हैं, जिसका कोई नियम ही नहीं है।

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8. यूनाइटेड वर्ल्ड रेसलिंग के नियमों में साफ दिया गया है कि पहलवान को न सिर्फ टूर्नामेंट के शुरुआत में खेलने के योग्य होना चाहिए, बल्कि पूरे टूर्नामेंट के दौरान ही उसे योग्य होना चाहिए। यानी एंट्री से लेकर फाइनल तक। ऐसे में नियमों में जरा भी अधिकार नहीं दिया गया है कि आंशिक भी छूट दी जा सकती है।

9. इन सभी नियमों और बातों का मतलब है कि Sole Arbitrator एथलीट की ओर से मांगी गई राहत को देने से इनकार करता है और उनका यह आवेदन खारिज करता है।

10. Sole Arbitrator ने ये पाया है कि एथलीट ने खेल के मैदान में एंट्री की और पहले ही दिन 3 राउंड के मुकाबले में जीत हासिल की। इसके दम पर फाइनल में पहुंचीं। मगर दूसरे दिन वजन माप में वो असफल रहीं और फाइनल के लिए अयोग्य हो गईं। नियमों के अनुसार ये बिल्कुल भी गैरकानूनी नहीं है।

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Edited By

Mashahid abbas

First published on: Aug 20, 2024 11:02 AM

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