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Vaikunth Chaturdashi 2025: वैकुंठ चतुर्दशी कब है? एक साथ करें विष्णु-शिव आराधना, खुलेंगे मोक्ष के द्वार; जानें शुभ मुहूर्त

Vaikunth Chaturdashi 2025: इस साल बैकुंठ चतुर्दशी 4 नवंबर 2025 को मनाई जाएगी. इस दिन भगवान विष्णु और शिव की संयुक्त पूजा होती है. आइए जानते हैं, आखिर क्यों है यह दिन इतना खास और कैसे खोलता है मोक्ष के द्वार?

Author Written By: Shyamnandan Author Published By : Shyamnandan Updated: Nov 2, 2025 21:22
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Vaikuntha Chaturdashi 2025 इस वर्ष 4 नवंबर, मंगलवार को मनाई जाएगी. कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाने वाला यह पर्व भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों की संयुक्त पूजा का दिन माना जाता है. इसे वैकुंठ चौदस के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन के बाद कार्तिक पूर्णिमा आती है, जिसे देव दीपावली के रूप में मनाया जाता है. आइए जानते हैं, वैकुंठ चतुर्दशी का महत्व, इस दिन पूजा का शुभ मुहूर्त और इससे जुड़ी पौराणिक कथा क्या है?

वैकुंठ चतुर्दशी का महत्व

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु काशी (वाराणसी) में भगवान शिव की आराधना करने पहुंचे थे. उन्होंने एक हजार कमल के फूलों से शिवजी की पूजा की थी. उनकी भक्ति देखकर भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न हुए और वरदान दिया कि जो भी भक्त इस दिन विधिवत पूजा करेगा, उसे मोक्ष और वैकुंठ धाम की प्राप्ति होगी.

इसी कारण इस तिथि पर विष्णु और शिव दोनों की पूजा करने की परंपरा है. विशेष बात यह है कि इस दिन शिव को तुलसी दल और विष्णु को बेलपत्र अर्पित किया जाता है — यह अद्भुत विधान वर्ष में केवल इसी दिन मान्य है.

वैकुंठ चतुर्दशी 2025: पूजा का शुभ मुहूर्त

  • तिथि: 4 नवंबर 2020, मंगलवार
  • चतुर्दशी तिथि प्रारंभ: सुबह 2:05 AM बजे
  • चतुर्दशी तिथि समाप्त: रात 10:36 PM बजे
  • निशीथकाल पूजा: रात 11:39 से 12:31 (5 नवंबर) – इस समय विष्णु पूजा की जाती है.
  • अरुणोदयकाल पूजा: यह पूजा सूर्योदय से पूर्व शुभ मानी गई है और इस समय शिव पूजा की जाती है.

ऐसे करें विष्णु और शिव की पूजा

सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें. घर या मंदिर में पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें. भगवान विष्णु और भगवान शिव की प्रतिमाएं या चित्र सामने रखें. निशीथ काल में पहले भगवान विष्णु जलाभिषेक करें, कमल या गेंदा के पुष्प अर्पित करें, बेलपत्र चढ़ाएं और दीप जलाएं. इसके बाद भगवान शिव की पूजा करें. उनका शुद्ध जल, गंगाजल या पंचामृत से अभिषेक करें, तुलसी दल अर्पित करें, धूप और दीप अर्पित करें. यह मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु शिवजी को बेलपत्र अर्पित करते हैं और शिवजी विष्णु को तुलसी. अंत में आरती कर प्रसाद वितरित करें और जरूरतमंदों को अन्न या वस्त्र दान करें.

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करें ये उपाय

इस अवसर पर नर्मदेश्वर शिवलिंग की पूजा का विशेष महत्व है. कहा जाता है कि जहां नर्मदेश्वर शिवलिंग की स्थापना होती है, वहां यम और काल का भय नहीं रहता. इस दिन तुलसी दल से नर्मदेश्वर शिवलिंग की आराधना करने से जीवन में सुख-समृद्धि, वैवाहिक सुख और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है.

वैकुंठ चतुर्दशी की पौराणिक कथा

शिवपुराण की एक कथा के अनुसार, एक बार कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु भगवान शिव की पूजा करने के लिए काशी गए थे। उन्होंने संकल्प लिया था कि वे भगवान शिव की पूजा 1000 कमल के फूलों से करेंगे। जब वे पूजा कर रहे थे, तो उन्हें पता चला कि उनके पास एक फूल कम है। तभी उन्हें याद आया कि उनके नेत्रों को कमल के समान कहा जाता है, इसलिए उन्होंने बिना सोचे अपना एक नेत्र निकालकर उसे अंतिम कमल की जगह भगवान शिव को अर्पित कर दिया।

भगवान विष्णु की यह सच्ची भक्ति देखकर भगवान शिव बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने विष्णु जी को उनका नेत्र वापस दे दिया और साथ ही उन्हें सुदर्शन चक्र का वरदान भी दिया। यही सुदर्शन चक्र आगे चलकर भगवान विष्णु का सबसे शक्तिशाली अस्त्र बना। यह कहानी भगवान विष्णु की गहरी भक्ति और भगवान शिव की कृपा का सुंदर उदाहरण है।

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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी ज्योतिष शास्त्र की मान्यताओं पर आधारित है और केवल सूचना के लिए दी जा रही है. News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है.

First published on: Nov 02, 2025 09:22 PM

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