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Religion

Hindu Mythology: रावण को कैसे मिली थी सोने की लंका, जानिए रामायण की यह रहस्यमयी कहानी

Hindu Mythology: क्या आप जानते हैं कि रावण की सोने की लंका का निर्माण वास्तव में विश्वकर्मा जी ने किनके लिए किया था. फिर कैसे रावण ने छल से उस दिव्य नगरी को हासिल कर लिया. जानिए उस रहस्यमयी लंका की कथा, जिसमें भक्ति, अहंकार और श्राप तीनों एक साथ जुड़े हैं.

Author Written By: Shyamnandan Updated: Nov 1, 2025 20:47
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Hindu Mythology: कहते हैं, जब एक दिन भगवान शिव और माता पार्वती कैलाश पर्वत पर विचरण कर रहे थे, तब पार्वती जी ने इच्छा जताई, ‘हे महादेव! काश हमारे लिए भी एक ऐसा महल होता जो सदा सोने की तरह चमकता रहता.’ देवी पार्वती के ये वचन सुनकर महादेव ने मुस्कुराते हुए विश्वकर्मा को बुलाया. विश्वकर्मा, जो देवताओं के दिव्य शिल्पी थे, उन्होंने अपनी कला से एक अनुपम नगरी का निर्माण किया, जो सोने की बनी थी और इसे नाम दिया गया लंका. यह नगरी अद्भुत थी. उसकी दीवारें स्वर्णमयी थीं और गलियों से दिव्य सुगंध बहती थी.

लंका देख मोहित हो गया रावण

समय बीतता गया. एक दिन लंका में महादेव की पूजा के लिए रावण पहुंचा. उस समय वह भगवान शिव का परम भक्त था. जब उसकी दृष्टि उस सोने की लंका पर पड़ी, तो वह मोहित हो गया.
रावण के मन में लालच जाग उठा. उसके मन में विचार आया, ‘ऐसा महल यदि मेरे पास हो, तो मैं तीनों लोकों में सर्वोच्च हो जाऊँ.’

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रावण का छलपूर्ण वेश

अपनी योजना को पूरा करने के लिए रावण ने एक ब्राह्मण का रूप धारण किया. वह विनम्र स्वर में भगवान शिव के पास पहुंचा और बोला, ‘भगवन, मुझे आपसे एक भिक्षा चाहिए. यदि आप कृपा करें तो मुझे यह स्वर्ण लंका भिक्षा में दे दें.’ महादेव सब जानते थे. वे रावण के मन के छल को समझ चुके थे, परंतु अपने भक्त को निराश करना उन्हें उचित नहीं लगा. उन्होंने रावण की भक्ति की लाज रखते हुए लंका दान में दे दी.

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देवी पार्वती का क्रोध और श्राप

जब माता पार्वती को यह बात पता चली, तो वे अत्यंत दुखी और क्रोधित हुईं. उन्होंने कहा, ‘यह लंका मेरे लिए प्रेम का प्रतीक थी, अब यह छल से ली गई है. यह कभी किसी के सुख का कारण नहीं बनेगी.’ क्रोधावेश में माता पार्वती ने लंका को श्राप दिया, ‘जब-जब अधर्म बढ़ेगा, यह लंका अग्नि में भस्म हो जाएगी.’

हनुमान द्वारा लंका दहन

सदियों बाद, जब रावण ने सीता माता का हरण किया, तब भगवान श्रीराम के दूत हनुमान जी लंका पहुंचे. लंका के स्वर्ण द्वारों से लेकर उसकी गलियों तक हनुमान जी का तेज फैल गया. जब रावण ने उनका अपमान किया, तब हनुमान जी ने अपनी पूंछ में आग लगाई और लंका को जला दिया.
कहते हैं, यही वह क्षण था जब पार्वती के श्राप का प्रभाव साकार हुआ. सोने की लंका राख बन गई.

रावण और सोने की लंका की यह कथा हमें बताती है कि धन और वैभव छल से प्राप्त हो सकते हैं, पर स्थायी नहीं होते हैं. रावण जितना महान ज्ञानी था, उतना ही उसके भीतर अभिमान भी था. और यही अभिमान उसकी हार का कारण बना था.

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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी ज्योतिष शास्त्र की मान्यताओं पर आधारित है और केवल सूचना के लिए दी जा रही है. News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है.

First published on: Nov 01, 2025 08:47 PM

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