Rath Yatra 2025: पुरी में भगवान जगन्नाथ का प्रमुख मंदिर है। इस मंदिर में सृष्टि के रचयिता महाप्रभु अपने भाई-बहन और माता लक्ष्मी के साथ रहते हैं। हर साल आषाढ़ के महीने में भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकाली जाती है। यह ओडिशा राज्य का सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है। इस पर्व के लिए रथों को 3 महीने पहले से ही बनाना शुरू कर दिया जाता है। माना जाता है कि यदि इस रथ की रस्सी को भी छू ले, तो उसे भगवान का आशीर्वाद प्राप्त हो जाता है। रथयात्रा इसलिए खास होती है क्योंकि इस दिन भगवान के दर्शन के लिए हर जाती, हर धर्म और हर संप्रदाय के लोग शामिल हो सकते हैं।
इसका मतलब यह भी है कि रथ की मान्यता बहुत ज्यादा है। जी हां, पौराणिक कथाओं के मुताबिक, रथ के हर हिस्से की कुछ न कुछ विशेषता है। चलिए आपको बताते हैं इन सभी भागों के बारे में।
1. रस्सी बनाने वाले
इन्हें शोला-शासन ब्राह्मण कहते हैं, जो पंडाओं का एक विशेष वर्ग होता है। रथों को खींचने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली पवित्र रस्सियों को बनाने की जिम्मेदार इनकी होती हैं।
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2. रथ खींचने वाले
इन लोगों को जयगीर-भोगी कालबेदिया ब्राह्मण कहते हैं, जो विशेष रूप से रथों को खींचने का काम करते हैं। हालांकि ऐसा माना जाता है कि रथ मानव बल से नहीं बल्कि दैवीय इच्छा से चलता है। रथ खींचने के लिए अन्य भक्तों की भी जरूरत होती है, मगर रिवाजों के मुताबिक, इनके द्वारा ही कार्य शुरू होता है।
3. रथ चलने वाले रास्ता
पुरी में रथयात्रा में रथ जिस रास्ते से निकलकर जाता है, उसे “बड़ा दांड” कहा जाता है। इसका अर्थ होता है, रथ खींचने के लिए बड़ा रास्ता जो मंदिर के पूर्वी दरवाजे यानी सिंह द्वार के सामने से निकलता है। इस बड़े रास्ते की मदद से रथ यहां से सीधा गुंडिचा मंदिर जातास है।
4. पवित्र ध्वनि (शब्द)
इस ध्वनि के बजने के बाद से ही हर साल अक्षय तृतीया के शुभ दिन पर सिर्फ और सिर्फ नीम के पेड़ की लकड़ी का उपयोग करके नए रथों का निर्माण शुरू किया जाता है।
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5. स्वर्ण आभूषण
हालांकि, प्रभु का रथ और देवता, दोनों लकड़ी के बने होते हैं। मगर भगवान जगन्नाथ और उनके भाई-बहन की यात्रा के दौरान उन्हें 208 किलो सोना पहनाया जाता हैं। यहां तक कि पुरी के महाराज गजपति जब झाड़ू लगाते हैं यानी छेरा पन्हारा की रस्म के दौरान भी सोने की झाड़ू का उपयोग किया जाता है।
6. रस्सियों की दिव्यता
पौराणिक कथाओं का मानना है कि रथयात्रा के रथों की रस्सियां वासुकी नाग और दिव्य नाग का प्रतिनिधित्व करते हैं। रस्सी को पकड़ने से और खींचने से भक्तों को दिव्य आशीर्वाद और आध्यात्मिक गुण प्राप्त होते हैं।
7. रथ खींचना
हर किसी के लिए रथ खींचना मुमकिन नहीं होता है। मगर भक्तों का मानना है कि रथ खींचने से उन्हें अपार पुण्य मिलता है। मगर जो लोग इसे खींच नहीं पाते हैं, उन्हें भी प्रभु का आशीर्वाद मिलता है।
8. पवित्र चक्र चिह्न
रथ यात्रा में जब रथ रास्ते से निकलते हैं, तो सड़क पर छोड़े गए पहिये के निशान गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों के समान पवित्र माने जाते हैं। माना जाता है कि इन पटरियों की धूल लेने से पवित्र नदियों में स्नान करने के जितना समान पुण्य मिलता है।
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