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Religion

Rath Yatra 2025: क्या है ‘अधर पना’ रस्म? क्यों प्रसाद में नहीं मिलता पुरी में भगवान जगन्नाथ को लगने वाला यह विशेष भोग

Rath Yatra 2025: जगन्नाथ रथयात्रा के पावन पर्व पर पुरी में महाप्रभु के दर्शन के लिए लाखों भक्त पहुंच रहे हैं। कल सुनाबेश की रस्म निभाई गई थी, जिसमें तीनों भाई-बहनों को सोने के आभूषणों और वस्त्रों से सजाया जाता है। आज पुरी में अधर पना की रस्म मनाई जाएगी, जो इंसानों से नहीं बल्कि प्रेत-आत्माओं से संबंधित होती है।

Author Written By: Namrata Mohanty Author Edited By : Namrata Mohanty Updated: Jul 7, 2025 08:35

Rath Yatra 2025: हिंदुओं का पावन पर्व जगन्नाथ रथयात्रा ओडिशा के पुरी राज्य में धूम-धाम से मनाया जाता है। यह उत्सव कलियुग के देवता महाप्रभु जगन्नाथ से जुड़ा हुआ है। इस रथयात्रा को दुनिया की सबसे बड़ी यात्रा माना जाता है, जिसमें एकसाथ लाखों की संख्या में भक्त प्रभु के दर्शन के लिए आते हैं। 27 जून को रथयात्रा थी, जिसके बाद 5 जुलाई को बाहुड़ा यात्रा मनाई जा चुकी है। कल यानी 6 जुलाई को सुनाबेष की रस्म की गई थी। अब इस पावन त्योहार की समाप्ति होने वाली है। आज पुरी में अधर पना की रस्म होगी। यह रस्म इंसानों और भगवान के बीच नहीं बल्कि प्रभु के अदृश्य भक्तों के लिए मनाई जाती है। चलिए जानते हैं इस रस्म के बारे में।

अधर पना की रस्म क्या है?

अधर पना रथयात्रा के दौरान मनाई जाने वाली एक रस्म है। इसे रथयात्रा के 10वें दिन मनाई जाती है। अधर पना की रस्म में एक खास पेय पदार्थ उर्फ शरबत का भोग लगाया जाता है, जिसके बाद इस शरबत को अदृश्य भक्तों यानी भूत-प्रेत, रंक, गण, भटकती आत्माओं और जानवरों को दिया जाता है। दरअसल, इसके पीछे मान्यता यह है कि रथयात्रा के समय ब्रह्मांड में मौजूद सभी जीवित और मृत को हिस्सा लेने का अवसर मिलता है। इंसानों में हर धर्म, वर्ग और प्रांत के लोग आते हैं। मगर क्या आपको पता है रथयात्रा में महाप्रभु के दर्शन के लिए देवता, असुर, भूत-प्रेत, आत्मा से लेकर जानवर भी आते हैं। देवताओं को महाप्रभु के भोग के साथ भोग अर्पित किया जाता है, लेकिन इन लोगों को प्रभु के भोग के रूप में अधर पना में बनाया जाने वाला शरबत समर्पित किया जाता है। माना जाता है कि ये सभी रथ की सुरक्षा करते हैं।

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क्या है अधर पना?

अधर पना एक ऐसा शरबत होता है, जिसे बनाने के लिए दूध, छेना, मिठाई, गुड़, फल और कुछ मसाले जैसे काली-मिर्च, इलायची आदि का इस्तेमाल किया जाता है। इन सभी चीजों को मिलाकर तीनों रथों पर बड़ी-बड़ी मटकियों में भरकर रखा जाता है। अधर यानी की होंठ। मटकियों का साइज प्रभु की मूर्तियों के होठों तक होना चाहिए, ताकि भोग उन्हें चढ़ाया जाए, तो वे उसे ग्रहण कर सकें। इसके कुछ देर बाद एक-एक कर तीनों रथों से मटकियों को पलट कर चपट यानी तोड़ा जाता है। यह काम रथ पर मौजूद दैत्य पति और सेवायत द्वारा किया जाता है। दरअसल, मटकियों को इसलिए तोड़ा जाता है ताकि उनके दूसरी दुनिया वाले भक्त उसका सेवन कर सके।

क्या है इसका महत्व?

कथाओं के अनुसार, इस भोग का सेवन किसी भी जीवित इंसान द्वारा नहीं किया जातै है। ये सिर्फ उन्हीं के लिए हैं, जो मनुष्य नहीं है यानी कि भूत-प्रेत, राक्षस गण, आत्मा, पितृों और जानवरों को दिया जाता है। रथयात्रा में यह भगवान के द्वारा उनके इन भक्तों के लिए एक प्रकार से आशीर्वाद होता है, ताकि वे मुक्ति पा सके।

आज मनाई जाएगी

पुरी में आज अधर पना की रस्म मनाई जाएगी। रस्म के लिए इस शरबत को शाम 5 बजे से बनाया जाएगा। इसके कुछ देर बाद मटकियों को तोड़कर रस्म का समापन होगा। कल निलाद्री बिजे पर्व मनाया जाएगा। इस दिन मां लक्ष्मी को रसगुल्ले का भोग लगाया जाता है। वहीं, ओडिशा में कल का दिन रसगुल्ला दिवस के तौर पर मनाया जाता है।

ये भी पढ़ें- Rath Yatra 2025: मौसी के घर से श्रीमंदिर पहुंचे महाप्रभु जगन्नाथ; सोने से होगा तीनों भाई-बहन का श्रृंगार

डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी ज्योतिष शास्त्र की मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।

First published on: Jul 07, 2025 08:30 AM

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