Rath Yatra 2025: भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा के बारे में तो आपने सुना ही होगा। यह विश्व की सबसे बड़ी और पवित्र यात्रा मानी जाती है। यह सिर्फ हिंदू नहीं बल्कि हर धर्म के लोगों के लिए निकाली जाने वाली यात्रा होती है। दरअसल, भगवान जगन्नाथ का पुरी धाम कुछ धर्मों व जातियों के लिए प्रतिबंधित है। ऐसे में रथयात्रा इकलौता समय होता है, जब हर कोई इनके दर्शन कर सकता है। इनके रथ को अपने हाथों से छू सकता है और खींच सकता है। भगवान जगन्नाथ, जो कलियुग में भगवान विष्णु के अवतार है, उनकी पत्नी माता लक्ष्मी ही होती है। मगर कुछ ऐसी दासियां भी थी, जो खुद को इनकी पत्नी माना करती थी। इन्हें देवदासियां कहा जाता हैं, जो गीता-गोविंदा के गीत गाती थी और नृत्य किया करती थी। इन्हें महारी कहा जाता हैं। आइए जानते हैं इनके बारे में।
क्या है महारी?
महारी यानी महान नारियां। दरअसल, महारी ओडिशा का एक नृत्य होता है, जो ओडिशा राज्य में किया जाता है। बता दें कि यहां की महिलाओं जो खुद को भगवान जगन्नाथ को समर्पित कर देती है, वे महारी देवदासियां कहलाती हैं। इन्हें एक खास रसम साड़ी बंधन के जरिए भगवान जगन्नाथ की पत्नी का दर्जा दिया जाता है। ये जीवनभर भगवान जगन्नाथ की दुल्हन के रूप में रहती है और ब्रह्मचर्य का पालन करती है। हालांकि, अब यह देवदासी प्रथा अब पुरी में समाप्त हो गई है क्योंकि अंतिम देवदासी की साल 2021 में मृत्यु हो गई थी।
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बेहद पुराना है इनका इतिहास
महारी देवदासियों का इतिहास 800 से 1000 साल पुराना कहा जाता है। इनका नृत्य भगवान के मंदिर के रोजमर्रा के अनुष्ठानों में भी खास भूमिका अदा करता है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक, प्रसाद देते समय, खास पर्वों एकादशी या अन्य धार्मिक दिनों पर ये जरूर नृत्य करती हैं। रथयात्रा में भी प्रभु के रथ के आगे ये नृत्य करती थीं। एक कथा के अनुसार, ऐसा भी माना जाता है कि ये दुखी होती हैं, इसलिए रात को मंदिर के बंद होने के बाद ये नृत्य करती थीं। मगर ऐसा कहना सही नहीं है।
दरअसल, देवदासियं दुखी नहीं होती है। इनका प्रभु के प्रति प्रेम और अपनी निष्ठा को दर्शाना ही उनकी सेवा होती है। इस सेवा को भी धार्मिक सेवा में गिना जाता है, जो उत्साह और भक्ति से भरा होता है। कहते हैं देवदासियां भक्तीमय होकर नृत्य करती हैं, तो प्रभु प्रसन्न होते हैं।
कब-कब करती हैं नृत्य?
देवदासियों के हर शुभ कार्यक्रम और उत्सव में शामिल किया जाता था। रोजाना जगन्नाथ मंदिर में तीनों समय प्रभु को जब भोग लगता है, जैसे कि ‘सकल धूप’ (भगवान के नाश्ते के समय), ‘संध्या धूप’ (शाम के नाश्ते के समय) और ‘बदसिंगार धूप’ (रात के खाने के समय) महारी नृत्य किया जाता था।
कैसे शुरु हुई ये प्रथा?
पौराणिक कथाओं के अनुसार, कई वर्षों पहले पद्मावती, जो पहली देवदासी थी और जयदेव गोस्वामी, एक संस्कृत महाकवि, जो गीत गाया और श्लोक लिखते थें। दोनों ही मंदिर में अपनी-अपनी सेवाएं देते थें, इन दोनों ने प्रभु की इच्छा से विवाह किया था। जयदेव ने ‘गीतो-गोविंदों’ नाम से श्लोकों को लिखा और देवदासी इस पर ही मनमोहक नृत्य करती थी। माना जाता है कि रात को निद्रा अवस्था में जाने से पहले प्रभु इनका नृत्य जरूर देखते थें। ये उन्हें राधा-कृष्ण की लीलाओं के भांती लगती थी और वे उन भावों को याद किया करते थे।
अंतिम महारी कौन थीं?
लगभग 8 दशकों तक महारी प्रथा चलने के बाद साल 2020 में यह प्रथा समाप्त हो गई थी। आखिरी देवदासी वृद्धावस्था के कारण 92 वर्ष में अंतिम सांस ली। उनका नाम शशि मणी देवी था। दरअसल, ये देवदासियां कुंवारी कन्याएं होती थी, उन्हें गोद लिया जाता था। मगर किसी कारण वश शशि मणी किसी भी कन्या को गोद नहीं ले पाई थीं। इसलिए, प्रथा आगे नहीं बढ़ पाई।
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