Laxmi Ganesh Idol for Diwali: दिवाली सिर्फ रोशनी और मिठाइयों का त्योहार नहीं है, बल्कि यह उन शक्तियों को प्रसन्न करने का समय है जो हमारे जीवन में धन, ज्ञान और समृद्धि लाती हैं. इसलिए लक्ष्मी-गणेश की पूजा का विशेष महत्व होता है. लेकिन बहुत से लोग यह भूल जाते हैं कि पूजा में उपयोग की जाने वाली मूर्ति का चयन भी उतना ही जरूरी है जितना पूजन विधि. आइए जानते हैं कि दिवाली पर लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति कैसी होनी चाहिए और उनके सही स्वरूप से क्या लाभ मिल सकता है.
लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति क्यों है खास?
दिवाली पर मां लक्ष्मी को धन और समृद्धि की देवी माना जाता है, जबकि भगवान गणेश विघ्नहर्ता और शुभारंभ के देवता हैं. जब आप इनकी पूजा करते हैं, तो उनके स्वरूप के माध्यम से दिव्य ऊर्जा आपके घर में आती है. इसलिए अगर मूर्ति का स्वरूप अनुकूल न हो, तो उसका प्रभाव कम हो सकता है.
कैसी होनी चाहिए मूर्ति की मुद्रा?
लक्ष्मी जी को पद्मासन यानी बैठी मुद्रा में होना चाहिए, जो स्थिर धन और घर में टिकाव का प्रतीक है. गणेश जी भी बैठे हों, खासकर दाहिने हाथ की ओर मुंह हो तो शुभ माना जाता है. इसके साथ ही, दोनों मूर्तियों के चेहरे पर मुस्कान और शांति झलकनी चाहिए.
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किस सामग्री की मूर्ति है सबसे शुभ?
हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, मिट्टी की मूर्ति सबसे पवित्र मानी जाती है. कहते हैं, यह पृथ्वी तत्व से जुड़ी होने के कारण सकारात्मक ऊर्जा बढ़ाती है. वहीं, पीतल, तांबे या चांदी की मूर्तियां भी उत्तम होती हैं. लेकिन, प्लास्टिक या सिंथेटिक मूर्तियों से बचना चाहिए, क्योंकि ये शुभ ऊर्जा को अवरुद्ध करती हैं.
मूर्ति का रंग आकार और स्वरूप कैसा हो?
प्रचलित रिवाजों के अनुसार, सफेद, हल्का पीला या सुनहरा रंग शांतिपूर्ण ऊर्जा और समृद्धि का प्रतीक है. अत्यधिक चमकदार, काले या डरावने चेहरे वाली मूर्तियाँ नकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न कर सकती हैं. पूजा स्थान के अनुसार मध्यम आकार की मूर्ति चुनें. मूर्ति संतुलित और पूर्ण होनी चाहिए. टूटी, खंडित या झुकी हुई मूर्तियों घर लाने से बचें.
ये भी ध्यान में रखें
एक साथ बैठी हुई मूर्ति या जोड़ी शुभ मानी जाती है. हर साल नई मूर्ति लेना अच्छा माना जाता है. इससे नयी ऊर्जा और नयी शुरुआत का संकेत मिलता है. यदि परंपरा अनुसार मिट्टी की मूर्ति ली हो, तो पूजा के बाद मूर्ति को सम्मानपूर्वक रखें या विसर्जन करें.
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