---विज्ञापन---

Religion

मृत्युभोज में भोजन करना सही या गलत, जानिए क्या कहते हैं शास्त्र?

सनातन धर्म में मृत्यु के बाद होने वाले रीति-रिवाज और कर्मकांड विशेष महत्व रखते हैं। इनमें से एक है मृत्युभोज, जिसे अधिकतर किसी व्यक्ति की मृत्यु के 13वें के दिन आयोजित किया जाता है। यह परंपरा लंबे समय से चली आ रही है, लेकिन इसे लेकर समाज में कई सवाल उठते हैं। जैसे क्या मृत्युभोज खाना सही है? क्या मृत्युभोज से पाप लगता है? आइए जानते हैं कि मृत्युभोज को लेकर शास्त्र क्या कहते हैं?

Author Written By: News24 हिंदी Author Edited By : Mohit Tiwari Updated: Jun 16, 2025 23:49
Funeral Feast
मृत्युभोज सही या गलत?

मृत्युभोज, जिसे ब्रह्मभोज या तेरहवीं भोज भी कहा जाता है। मृतक की आत्मा की शांति के लिए मृत्यु के तेरहवें दिन आयोजित किया जाता है। यह एक सामूहिक भोज है। हिंदू धर्म में 16 संस्कारों में अंत्येष्टि (अंतिम संस्कार) सबसे लास्ट माना जाता है। अंतिम संस्कार के बाद 13 दिनों तक संबंधित परिवार शोक में रहता है। इसमें दशगात्र, एकादशी और द्वादशी जैसे कर्मकांड किए जाते हैं। वहीं, म मृत्यु के तेरहवें दिन ब्राह्मणों, रिश्तेदारों और समाज के लोगों को भोजन कराया जाता है। इस भोजन में मृतक की पसंद की चीजें बनाई जाती हैं और इसे मृतक की स्मृति में आयोजित किया जाता है। आइए जानते हैं कि इसको लेकर शास्त्र क्या कहते हैं?

क्या कहता है गरुड़ पुराण?

गरुड़ पुराण में मृत्युभोज का सीधा उल्लेख नहीं मिलता है, लेकिन तेरहवें दिन ब्रह्मभोज और दान का विधान बताया गया है। गरुड़ पुराण में कहा गया है कि मृत्यु के बाद 13 दिनों तक आत्मा अपने परिवार और घर के बीच विचरण करती है। तेरहवें दिन ब्रह्मभोज और दान से आत्मा को पुण्य प्राप्त होता है, जो उसे परलोक में सहायता प्रदान करता है। हालांकि, यह भोज केवल गरीब और विद्वान ब्राह्मणों के लिए होना चाहिए न कि सामाजिक प्रदर्शन के लिए किया जाना चाहिए। गरुड़ पुराण के अनुसार यदि संपन्न व्यक्ति मृत्युभोज ग्रहण करते हैं तो यह गरीबों का हक छीनने जैसा पाप है।

---विज्ञापन---

भगवान श्रीकृष्ण ने बताया अनुचित

महाभारत के अनुशासन पर्व में श्रीकृष्ण ने कहा है कि ‘सम्प्रीति भोज्यानि आपदा भोज्यानि वा पुनैः’। इसका मतलब है कि भोजन तभी ग्रहण करना चाहिए, जब खिलाने और खाने वाले दोनों का मन प्रसन्न हो। दुख और वेदना की स्थिति में भोजन करना उचित नहीं है। इसके अनुसार जब परिवार शोक में डूबा हो तब भोजन करना नैतिक रूप से गलत है। श्रीकृष्ण ने दुर्योधन के आग्रह पर युद्ध से पहले भोजन करने से इनकार कर दिया था, क्योंकि उस समय उनका मन प्रसन्न नहीं था।

क्या कहती है मनुस्मृति?

मनुस्मृति में श्राद्ध और भोजन के नियमों का उल्लेख है। मनु महाराज कहते हैं कि श्राद्ध में विषम संख्या में विद्वान ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए और यह भोजन शुद्ध मन से होना चाहिए। मनुस्मृति में यह भी कहा गया है कि शोक में आंसू बहाना निषिद्ध है, क्योंकि यह आत्मा को परलोक में कष्ट देता है। मृत्युभोज को सामाजिक दिखावे के लिए आयोजित करना शास्त्रों में निषेध है और इसे कर्ज लेकर करना तो और भी गलत है।

---विज्ञापन---

मृत्युभोज का क्या है सामाजिक महत्व?

मृत्युभोज की शुरुआत का उद्देश्य सामाजिक और मनोवैज्ञानिक था। पुराने समय में, जब चिकित्सा सुविधाएं सीमित थीं और मृत्यु के बाद रोगाणुओं के फैलने का खतरा रहता था। इस कारण दशगात्र और गंगाजल छिड़काव जैसे कर्मकांड घर को शुद्ध करने के लिए किए जाते थे। तेरहवें दिन भोजन का आयोजन मृतक के परिवार को सामाजिक सपोर्ट देने और उनके दुख को कम करने के लिए था। रिश्तेदार अनाज, सब्जियां और अन्य सामग्री लाकर परिवार की मदद करते थे। यह एकजुटता का प्रतीक था।

हालांकि समय के साथ यह परंपरा विकृत हो गई है। आज के समय में मृत्युभोज में हजारों लोगों को बुलाना भारी खर्च करना और सामाजिक दबाव के कारण कर्ज लेना आम हो गया है। यह शास्त्रों के खिलाफ है और गरीब परिवारों के लिए आर्थिक बोझ बनता है। कई विद्वान इसे कुप्रथा मानते हैं, जो सामाजिक और धार्मिक दृष्टिकोण से उचित नहीं है।

डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक शास्त्रों की मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।

ये भी पढ़ें- धनवान बनने से पहले आते हैं ये 5 सपने, जानें क्या कहता है स्वप्न शास्त्र?

First published on: Jun 16, 2025 11:13 PM

संबंधित खबरें