Indira Ekadashi 2024: इंदिरा एकादशी को सभी 24 एकादशियों में बेहद महत्वपूर्ण माना गया है, क्योंकि यह एकादशी आश्विन कृष्ण पक्ष में पितृपक्ष के महाअनुष्ठान के दौरान पड़ती है। यह भी एक कारण है कि इस व्रत को करने से इसके पुण्य का एक भाग पितरों और पूर्वजों को समर्पित हो जाता है। इससे पितर बहुत प्रसन्न होते हैं। इस साल इंदिरा एकादशी का व्रत शनिवार 28 सितंबर, 2024 को यानी आज रखा जा रहा है। इस मौके पर इंदिरा एकादशी व्रत कथा सुनने और पढ़ने भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा सदैव घर-परिवार पर बनी रहती है। भगवान विष्णु को समर्पित इंदिरा एकादशी का व्रत बिना कथा पढ़े या सुने अधूरा है, आइए जानते हैं असली कथा।
इंदिरा एकादशी व्रत की असली कथा
धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से अनुरोधपूर्वक पूछा, “हे जनार्दन! आश्विन कृष्ण एकादशी का क्या नाम है? इस व्रत को करने की विधि और फल क्या है? सो कृपा करके कहिए।”
भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा, “हे पांडवश्रेष्ठ! आश्विन कृष्ण एकादशी का नाम ‘इंदिरा एकादशी’ है। यह एकादशी न केवल पापों को नष्ट करने वाली है बल्कि पितरों को अधोगति से मुक्ति देने वाली भी होती है। सो हे राजन, ध्यानपूर्वक इसकी कथा सुनो। इसके सुनने मात्र से ही वायपेय यज्ञ का फल मिलता है।”
प्राचीनकाल में सतयुग के समय में महिष्मति नाम की एक नगरी में इंद्रसेन नाम का एक प्रतापी राजा धर्मपूर्वक अपनी प्रजा का पालन करते हुए शासन करता था। वह राजा पुत्र, पौत्र और धन आदि से संपन्न और भगवान विष्णु का परम भक्त था। एक दिन जब राजा सुखपूर्वक अपनी सभा में बैठा था, तभी आकाश मार्ग से महर्षि नारद उतरकर उसकी सभा में आए। राजा उन्हें देखते ही हाथ जोड़कर खड़ा हो गया और विधिपूर्वक आसन और अर्घ्य दिया।
सुख से आसान पर बैठकर मुनि नारद ने राजा से पूछा, “हे राजन! आपके सातों अंग कुशलपूर्वक तो हैं? तुम्हारी बुद्धि धर्म में और तुम्हारा मन विष्णु भक्ति में तो रहता है?”
देवर्षि नारद की ऐसी बातें सुनकर राजा ने कहा, “हे महर्षि! आपकी कृपा से मेरे राज्य में सब कुशल है और मेरे यहां यज्ञ कर्मादि सुकृत हो रहे हैं। आप कृपा करके अपने आगमन का कारण कहिए।” तब ऋषि नारद कहने लगे, “हे राजन! आप आश्चर्य देने वाले मेरे वचनों को सुनो।”
“मैं एक समय ब्रह्मलोक से यमलोक को गया, वहां श्रद्धापूर्वक यमराज से पूजित होकर मैंने धर्मशील और सत्यवान धर्मराज की प्रशंसा की। उसी यमराज की सभा में महान ज्ञानी और धर्मात्मा तुम्हारे पिता को एकादशी का व्रत भंग होने के कारण देखा।”
“उन्होंने संदेश दिया है, सो मैं तुम्हें कहता हूँ। उन्होंने कहा कि पूर्व जन्म में कोई विघ्न हो जाने के कारण मैं यमराज के निकट रह रहा हूँ, सो हे पुत्र यदि तुम आश्विन कृष्णा इंदिरा एकादशी का व्रत मेरे निमित्त करो तो मुझे स्वर्ग की प्राप्ति हो सकती है।”
इतना सुनकर राजा इंद्रसेन ने नारद मुनि से आग्रह किया, “हे महर्षि! आप इस व्रत की विधि मुझसे कहिए।”
नारदजी कहने लगे, “आश्विन माह की कृष्ण पक्ष की दशमी के दिन प्रात:काल श्रद्धापूर्वक स्नानादि से निवृत्त होकर पुन: दोपहर को नदी आदि में जाकर स्नान करें। फिर श्रद्धापूर्व पितरों का श्राद्ध करें और एक बार भोजन करें। प्रात:काल होने पर एकादशी के दिन दातून आदि करके स्नान करें, फिर व्रत के नियमों को भक्तिपूर्वक ग्रहण करता हुआ प्रतिज्ञा करें कि ‘मैं आज संपूर्ण भोगों को त्याग कर निराहार एकादशी का व्रत करूंगा।”
“हे अच्युत! हे पुंडरीकाक्ष! मैं आपकी शरण हूं, आप मेरी रक्षा कीजिए, इस प्रकार नियमपूर्वक शालिग्राम की मूर्ति के आगे विधिपूर्वक श्राद्ध करके योग्य ब्राह्मणों को फलाहार का भोजन कराएं और दक्षिणा दें। पितरों के श्राद्ध से जो बच जाए, उसको सूंघकर गौ को दें और ध़ूप, दीप, गंध, पुष्प, नैवेद्य आदि सब सामग्री से ऋषिकेश भगवान का पूजन करें।”
“रात में भगवान के निकट जागरण करें। इसके पश्चात द्वादशी के दिन प्रात:काल होने पर भगवान का पूजन करके ब्राह्मणों को भोजन कराएं। भाई-बंधुओं, स्त्री और पुत्र सहित आप भी मौन होकर भोजन करें।”
नारदजी ने फिर कहा, “हे राजन! इस विधि से यदि तुम आलस्य रहित होकर इस एकादशी का व्रत करोगे तो तुम्हारे पिता अवश्य ही स्वर्गलोक को जाएंगे।” इतना कहकर नारदजी अंतर्ध्यान हो गए।
नारदजी के कथनानुसार राजा इंद्रसेन ने अपने बंधू-बांधवों और दासों सहित आश्विन कृष्ण पक्ष के एकादशी व्रत करने से आकाश से पुष्पवर्षा हुई और उस राजा के पिता गरुड़ पर चढ़कर विष्णुलोक को चले गए। राजा इंद्रसेन भी एकादशी के व्रत के प्रभाव से निष्कंटक राज्य करके अंत में अपने पुत्र को सिंहासन पर बैठाकर स्वर्गलोक को गए।
यह कथा सुनाकर भगवान श्रीकृष्ण ने कहा, “हे युधिष्ठिर! यह इंदिरा एकादशी के व्रत का माहात्म्य मैंने तुमसे कहा। इसके पढ़ने और सुनने से मनुष्य सब पापों से छूट जाते हैं और सब प्रकार के भोगों को भोगकर बैकुंठ को प्राप्त होते हैं।”
इति शुभम्!
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