वरिष्ठ पत्रकार प्रभाकर मिश्रा का लेख।
Supreme Court on Places of Worship Act 1991: सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने अयोध्या पर फैसला सुनाते समय ‘प्लेसेज ऑफ वरशिप एक्ट’ का सम्मान करने की सलाह दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा था कि ” यह कानून देश में संविधान के मूल्यों को मजबूत करता है। देश ने इस एक्ट को लागू करके संवैधानिक प्रतिबद्धता को मजबूत करने और सभी धर्मों को समान मानने और सेक्युलरिज्म को बनाए रखने की पहल की है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट की राय को किया दरकिनार
सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों वाली बेंच ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस डीवी शर्मा की उस राय को भी दरकिनार कर दिया था, जिसमें कहा गया था कि धार्मिक स्थलों को लेकर सभी तरह के विवाद कोर्ट में लाए जा सकते हैं। जस्टिस शर्मा इलाहाबाद हाईकोर्ट की उस बेंच में शामिल थे, जिन्होंने 2010 में अयोध्या मामले पर फैसला दिया था। उन्होंने कहा था कि प्लेसेज ऑफ वरशिप एक्ट लागू होने से पहले के भी धार्मिक स्थल से जुड़े विवाद की इस कानून के तहत सुनवाई की जा सकती है।”( ‘एक रूका हुआ फ़ैसला: अयोध्या विवाद के आख़िरी चालीस दिन’ पुस्तक से )।
प्लेसेज़ ऑफ वर्शिप एक्ट को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती
सुप्रीम कोर्ट ने अपनी तरफ से देश में अयोध्या की तरह किसी और मंदिर – मस्जिद विवाद की गुंजाइश पर विराम लगाने की कोशिश की थी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। अयोध्या पर फैसले के तत्काल बाद ही प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी गई। मामला कोर्ट में आज भी लंबित है, प्लेसेज ऑफ वरशिप एक्ट आज भी यथावत है लेकिन रोज नए नए धार्मिक विवाद खड़े हो रहे हैं। काशी, मथुरा, धार को भोजशाला, क़ुतुब मीनार, संभल और अब अजमेर.. धार्मिक विवाद के दर्जनों मामले अदालतों में पहुंच चुके हैं।
क्या है प्लेसेज ऑफ वरशिप एक्ट 1991?
प्लेसेज ऑफ वरशिप एक्ट 1991 के मुताबिक 15 अगस्त 1947 को जिस धार्मिक स्थल का जो चरित्र होगा उसमें बदलाव नहीं किया जा सकता। उसमें एक अपवाद ये भी है कि जो इमारतें और धार्मिक स्थल, ऐतिहासिक महत्व की होंगी और
प्राचीन स्मारक तथा पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 (The Ancient Monuments And Archaeological Sites And Remains Act, 1958) के तहत संरक्षित होंगी, वहां प्लेसेज ऑफ वरशिप एक्ट लागू नहीं होगा। यानी ASI संरक्षित इमारतें और धार्मिक स्थल प्लेसेज ऑफ वरशिप एक्ट के दायरे से बाहर हैं। यही हिंदू पक्ष की दलील है, संभल की मस्जिद ASI संरक्षित है।
प्लेसेज ऑफ वरशिप एक्ट 1991 के प्रावधान?
ऐसे में यह जानना जरूरी है कि प्राचीन स्मारक तथा पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 में पूजा स्थल या श्राइन को लेकर क्या प्रावधान है? इस एक्ट के मुताबिक, ASI संरक्षित पूजा स्थल या श्राइन के धार्मिक चरित्र में बदलाव नहीं किया जा सकता। मतलब जो बात धार्मिक स्थलों के बारे में प्लेसेज ऑफ वरशिप एक्ट 1991 कहता है कमोबेश वही बात 1958 के एक्ट में भी है।
- ये दोनों कानून, किसी धार्मिक स्थल के चरित्र के बदलाव को रोकते तो हैं लेकिन उनका धार्मिक चरित्र पता लगाने से नहीं रोकते! यही वजह है कि जब हिन्दू पक्ष किसी धार्मिक स्थल के सर्वे की मांग के साथ अदालत जा रहा है, अदालतें सर्वे का आदेश दे दे रही हैं! इस लिहाज से देखा जाए तो सर्वे के आदेश क़ानून सम्मत हैं।
- वाराणसी के ज्ञानवापी परिसर से जुड़े मामले में सर्वे के आदेश के खिलाफ मस्जिद पक्ष ने जब सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, तब जस्टिस चंद्रचूड़ की बेंच ने सर्वे के आदेश पर रोक लगाने से ये कहते हुए मना कर दिया था कि इससे किसी क़ानून का उल्लंघन नहीं हो रहा है। प्लेसेज ऑफ वरशिप एक्ट, किसी संरचना के धार्मिक चरित्र का पता लगाने पर रोक नहीं लगाता। जस्टिस चन्द्रचूड़ की यह टिप्पणी मौखिक थी, लेकिन सर्वे को मिली हरी झंडी के साथ सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी निचली अदालतों के लिए नजीर बन गई। मस्जिदों के सर्वे के आदेश आ रहे हैं.. अल्लाह के घर में ईश्वर को ढूंढने की कोशिश हो रही है, समाज बंट रहा है और सियासत अपनी रोटियां सेंक रही है।
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