Petrol Pump: क्या आपने कभी सोचा है कि फ्यूल बेचने वाले स्टेशन को “पेट्रोल पंप” क्यों कहा जाता है, “डीजल पंप” क्यों नहीं, जबकि वहां डीजल भी बेचा जाता है? यह सवाल सुनने में साधारण लगता है, लेकिन इसका जवाब दिलचस्प है। इसके पीछे कई ऐतिहासिक कारण छिपे हैं, जिनसे समझ आता है कि इस नाम का चलन कैसे शुरू हुआ। आइए विस्तार से जानते हैं इसके पीछे की वजहें।
इतिहास के कारण
जब “पेट्रोल पंप” की शुरुआत हुई, उस समय पेट्रोल मुख्य ईंधन हुआ करता था जिसे अधिकतर वाहन इस्तेमाल करते थे। 20वीं सदी की शुरुआत में, ज्यादातर गाड़ियां पेट्रोल से चलती थीं, जबकि डीजल का इस्तेमाल कम होता था। उस दौर में डीजल इंजन वाले वाहन केवल भारी मशीनों या ट्रकों तक ही सीमित थे। इसलिए, जब इन स्टेशनों की शुरुआत हुई, तो उन्हें “पेट्रोल पंप” कहा गया और यही नाम प्रचलित हो गया।
पेट्रोल से चलने वाली गाड़ियों की संख्या
आज भी, सड़कों पर पेट्रोल से चलने वाली गाड़ियों की संख्या डीजल वाहनों से अधिक है। कार, बाइक और स्कूटर जैसे निजी वाहनों में पेट्रोल का ही ज्यादा इस्तेमाल होता है। इसी वजह से “पेट्रोल पंप” शब्द आम बोलचाल में अधिक इस्तेमाल होने लगा और यह नाम लोकप्रिय हो गया। ठीक वैसे ही जैसे हम “कोलगेट” को टूथपेस्ट और “फेविकोल” को किसी भी चिपकने वाली चीजों के लिए इस्तेमाल करते हैं।
कुछ देशों में पेट्रोल पंप के अलग-अलग नाम
एक और दिलचस्प तथ्य यह है कि पेट्रोल और डीजल, दोनों ही कच्चे तेल (पेट्रोलियम) से बनाए जाते हैं। इसीलिए, इसे “पेट्रोल पंप” कहा जाता है, क्योंकि दोनों ईंधन पेट्रोलियम से निकलते हैं। हालांकि, कुछ देशों में इसे “गैस पंप” या “फ्यूल स्टेशन” के नाम से भी जाना जाता है, लेकिन भारत में पेट्रोल पंप नाम इस कदर प्रचलित हो गया है कि इसे बदलना मुश्किल हो गया है।
क्या कभी पेट्रोल पंप का नाम बदल सकता है
पेट्रोल पंप नाम न केवल ऐतिहासिक कारणों से बना रहा, बल्कि आज भी यह हमारे दिमाग में बसा हुआ है। पेट्रोल से जुड़े स्टेशनों को “डीजल पंप” या “फ्यूल स्टेशन” कहना शायद प्रैक्टिकल हो सकता है, लेकिन पेट्रोल पंप का नाम ऐसा स्थापित हो चुका है कि इसे बदलना अब लगभग असंभव है।
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