Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक अहम फैसला सुनाया। शीर्ष न्यायालय ने कहा कि ब्रेकअप करना या शादी से इनकार करना आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं हो सकता है। शादी से इनकार करना या किसी वादे को तोड़ने पर इंसान इमोशनली परेशान हो सकता है। अगर वह अपनी जान दे देता है तो इसके लिए किसी दूसरे आदमी को कैसे जिम्मेदार ठहराया जा सकता है? न्यायालय कर्नाटक के मामले की सुनवाई कर रहा था। कर्नाटक हाई कोर्ट ने एक युवक को इस मामले में दोषी करार दिया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उसे दोष मुक्त करते हुए फैसला पलट दिया। हाई कोर्ट ने आरोपी को 5 साल की जेल की सजा सुनाते हुए उस पर 25 हजार रुपये जुर्माना लगाया था।
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मामले की सुनवाई जस्टिस उज्जल भुयान और पंकज मित्तल की खंडपीठ ने की। दोनों जजों ने इसे क्रिमिनल केस मानने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने मामले को नॉर्मल ब्रेकअप केस करार दिया और आरोपी को बरी कर दिया। कर्नाटक हाई कोर्ट में मामला आने से पहले ट्रायल कोर्ट में सुनवाई के दौरान आरोपी बरी हो चुका था। मामले के अनुसार 2007 में एक लड़की ने आत्महत्या कर ली थी। वह कमरुद्दीन नाम के शख्स के साथ 8 साल से रिलेशनशिप में थी। कमरुद्दीन पर 21 साल की लड़की शादी के लिए दबाव बना रही थी। लेकिन आरोपी कमरुद्दीन ने उससे शादी से इनकार कर दिया था।
Refusal to marry doesn’t amount to abetment of suicide: Supreme Court
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— Bar and Bench (@barandbench) November 29, 2024
फिजिकल रिलेशन की बात नहीं हो पाई साबित
इसके बाद लड़की की मां ने कमरुद्दीन के खिलाफ पुलिस को शिकायत दी थी। ट्रायल कोर्ट से आरोपी छूट गया था। लेकिन हाई कोर्ट ने आरोपी को सेक्शन-417 (चीटिंग) और 306 (आत्महत्या के लिए मजबूर करना) के तहत दोषी पाया था। जिसके बाद उसे सजा सुनाई गई। सजा के खिलाफ युवक ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी।सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आरोपी से साथ लड़की के शारीरिक संबंध थे। यह साबित नहीं हो सका है। न ही कोई ऐसा सबूत मिला, जिससे सिद्ध हो सके कि उसने लड़की को मरने के लिए मजबूर किया हो। ऐसे में उसे सजा देना किसी भी सूरत में ठीक नहीं है।